कलकत्ता हाईकोर्ट ने NDPS मामले में आरोपी को कानूनी सहायता प्रदान करने में विफल रहने के लिए न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया

Update: 2025-06-13 07:08 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने दो न्यायिक अधिकारियों, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और जिला एवं सत्र न्यायाधीश (NDPS) के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया, क्योंकि वे NDPS के एक आरोपी को कानूनी सहायता वकील प्रदान करने में विफल रहे, जिसका न्यायालय के समक्ष कार्यवाही में कोई प्रतिनिधित्व नहीं था।

आरोपी को जमानत देते हुए जस्टिस कृष्ण राव ने कहा कि आरोपी को गिरफ्तारी के बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायाधीश के समक्ष पेश किया गया था लेकिन किसी भी न्यायिक अधिकारी ने उसे कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान नहीं किया।

पीठ ने निर्देश दिया कि यह आदेश माननीय चीफ जस्टिस की जानकारी के लिए हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भेजा जाए और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और जिला एवं सत्र न्यायाधीश (NDPS), अलीपुरद्वार के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाए, क्योंकि पेशी के समय याचिकाकर्ता का बचाव नहीं किया गया था।

न्यायालय ने पाया कि राज्य यह दिखाने के लिए कोई सबूत पेश करने में विफल रहा कि अभियुक्त को उसकी गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित किया गया।

न्यायालय ने माना,

"3 दिन की पुलिस रिमांड पूरी होने पर याचिकाकर्ता को 1 अप्रैल, 2024 को जज, न्यायालय NDPS कोर्ट के समक्ष पेश किया गया और उस दिन याचिकाकर्ता को न्यायिक हिरासत में ले लिया गया लेकिन जज ने याचिकाकर्ता का बचाव करने के लिए कानूनी सहायता से कोई वकील उपलब्ध नहीं कराया, क्योंकि याचिकाकर्ता का बचाव नहीं किया जा सका। उपरोक्त पर विचार करते हुए यह न्यायालय पाता है कि याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करते समय गिरफ्तारी अधिकारी ने याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के समय याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी के आधार की जानकारी न देकर भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) और NDPS Act 1985 की धारा 52(1) के प्रावधानों का उल्लंघन किया।"

तदनुसार न्यायालय ने यह देखते हुए जमानत प्रदान की कि अनुच्छेद 22 अभियुक्त को उपलब्ध एक मौलिक अधिकार है। गिरफ्तारी के आधार को उसे उस तरीके से न बताकर जिसे वह समझ सके, राज्य ने उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया।

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