कलकत्ता हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ईद पर कथित तौर पर "भड़काऊ भाषण" देने से रोकने की जनहित याचिका खारिज की
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (निजी प्रतिवादी) के खिलाफ ईद-उ-फितर के अवसर पर "रेड रोड रीलिजियस कांग्रेस" में अगले साल कथित रूप से "भड़काऊ भाषण" देने से रोकने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका खारिज कर दी।
चीफ जस्टिस टी.एस. शिवगणनम और जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की:
“इसी तरह का मामला पहले भी आया... हमने सुनवाई नहीं की... और यह पहले ही खत्म हो चुका है। अब क्या करें? हमें निजी प्रतिवादी के खिलाफ निषेधाज्ञा जारी करनी चाहिए? याचिकाकर्ता कौन है? उन्हें भाषणों के बारे में कैसे पता चला? मीडिया रिपोर्ट से? आह, जनहित याचिका की बुनियाद सिर्फ मीडिया रिपोर्ट है। आपको कुछ शोध करना होगा। अगर आपके अनुसार यह घृणास्पद भाषण है तो सीआरपीसी आपको पर्याप्त उपाय प्रदान करता है।
याचिकाकर्ता ने "मुस्लिम वुमन रेसिस्टेंट कमेटी" और खान लीगल सॉलिसिटर फर्म का अध्यक्ष होने का दावा किया। यह प्रस्तुत किया गया कि निजी प्रतिवादी 2011 से हर साल ईद-उ-फितर के दौरान ईद मिलन समारोह में आती हैं। उनका हालिया "भड़काऊ भाषण", जिसके कारण कथित तौर पर रामनवमी पर हिंसा हुई, उसने यह आशंका पैदा की कि अगर निजी प्रतिवादी ऐसा भाषण फिर देती है तो ऐसी ही स्थिति फिर से हो सकती है। इसलिए उन्हें रोका जाए।
याचिकाकर्ता ने कहा कि निजी प्रतिवादी द्वारा दिए गए कथित 'भड़काऊ भाषण' इस्लाम की मूल भावना के खिलाफ है। अपने तर्कों को प्रमाणित करने के लिए याचिकाकर्ता ने पूरक हलफनामे के माध्यम से पवित्र कुरान की कुछ आयतों का उल्लेख करने की मांग भी की।
इस तरह के अनुरोध को न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया।
इसके साथ ही जनहित याचिका यह कहते हुए खारिज की,
“हमने पाया कि याचिका मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है, और मुख्य सचिव को अभ्यावेदन देने के अलावा, याचिकाकर्ता द्वारा कोई शोध नहीं किया गया। किसी भी स्थिति में जनहित याचिका में मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती। यदि याचिकाकर्ता के अनुसार, कुछ भाषणों से कुछ भावनाएं आहत हुई हैं तो कानून ऐसी शिकायतों के निवारण के लिए पर्याप्त उपाय कर सकता है।
केस टाइटल: नाज़िया इलाही खान बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।
कोरम: चीफ जस्टिस टी.एस. शिवगणनम और जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य