"प्रथम दृष्टया अनुच्छेद 19 के तहत संवैधानिक अधिकार का हनन": कलकत्ता हाईकोर्ट ने राधा के साथ भगवान कृष्ण के 'अंतरंग' चित्र मामले में अन्वेषण पर रोक लगाई

Update: 2022-08-10 05:10 GMT

एक आर्टिस्ट ने उसके फेसबुक पोस्ट (Facebook Post) को लेकर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295ए के तहत दर्ज एफआईआर के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) का रुख किया, जिसमें उसके द्वारा बनाए गए चित्र में भगवान कृष्ण और राधा के बीच एक अंतरंग दृश्य को दर्शाया गया है, जो गीत गोविंदा (जया देवा की प्रेम कविता) से प्रभावित है।

मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने प्रथम दृष्टया उल्लेख किया कि मामले में आपराधिक शिकायत एक संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करती है, और यह कि एफआईआर ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कम किया है।

इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले में जांच पर रोक लगा दी।

क्या है पूरा मामला?

इस चित्र क्रिस्टीज को एक ऑक्शन हाउस में प्रदर्शित किया गया था। बाद में इसे स्वयं ऑर्टिस्ट (जयर्षि भट्टाचार्य) द्वारा फेसबुक पेज पर पोस्ट किया गया था। उसके बाद प्रसून मैत्रा नाम के व्यक्ति द्वारा शिकायत दर्ज की गई जिसमें आरोप लगाया गया कि पोस्ट धार्मिक भावनाओं को आहत कर रही है और सांप्रदायिक घृणा को भड़का सकती है।

नतीजतन, उक्त पोस्ट पर आईपीसी की धारा 295ए के तहत एफआईआर दर्ज की गई, जिसे आईटी अधिनियम की धारा 67 के साथ पढ़ा गया।

एफआईआर को चुनौती देते हुए कलाकार जयर्षि भट्टाचार्य (याचिकाकर्ता) ने यह कहते हुए कोर्ट का रुख किया कि उक्त पोस्ट को अपराध नहीं माना जा सकता। याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत गारंटीकृत अपने मौलिक अधिकार के उल्लंघन के संबंध में भी एक मुद्दा उठाया है।

कोर्ट का आदेश

शुरुआत में, जस्टिस शंपा सरकार की पीठ ने प्रथम दृष्टया विचार किया कि शिकायत किसी भी संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करती है क्योंकि यह नोट किया गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 295 ए के प्रावधान केवल तभी आकर्षित होंगे जब जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने का इरादा हो।

कोर्ट ने कहा,

"यह पोस्ट एक चित्र है और कलाकार ने टिप्पणी की है कि प्रेम जन्माष्टमी का सार है। एफआईआर दर्ज करना कोर्ट के प्रथम दृष्टया विचार में भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता के अधिकार को कम करने के बराबर है। शिकायत में एक आशंका दर्ज की गई कि पोस्ट से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। हालांकि उक्त तस्वीर गीत गोविंदा की सार्वजनिक रूप से और विभिन्न सचित्र और अनुवादित संस्करण में उपलब्ध है।"

कोर्ट ने इस मामले में तीन महीने की अवधि के लिए जांच पर रोक लगा दी।

इसके अलावा, कोर्ट ने प्रभारी निरीक्षक, साइबर अपराध पुलिस स्टेशन, रायगंज, उत्तर दिनाजपुर को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट का आदेश पेश करने का निर्देश दिया, जिसके आधार पर इस मामले में जांच शुरू की गई थी।

अब, इस सवाल के संबंध में कि क्या तथ्यों और कानून की दलील पर वर्तमान रिट याचिका पर सुनवाई की जानी चाहिए, या याचिकाकर्ता को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत उचित फोरम पर ले जाया जाना चाहिए, कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में एक निर्णय जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले अभिलेखों के अवलोकन पर लिया जाएगा।

हालांकि, इस संबंध में सीनियर एडवोकेट विकास रंजन भट्टाचार्य ने प्रस्तुत किया कि कोर्ट को किसी भी आदेश पारित होने के बावजूद रिट याचिका पर विचार करना चाहिए।

उन्होंने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया संवैधानिक बिंदु आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत आपराधिक अदालत द्वारा तय नहीं किया जा सकता है।

किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले अदालत ने मामले को 1 नवंबर को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया।

एडवोकेट शमीम अहमद और एडवोकेट सलोनी भट्टाचार्जी के साथ सीनियर एडवोकेट विकास रंजन भट्टाचार्जी पेश हुए।

केस टाइटल - जयर्षि भट्टाचार्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एंड अन्य।




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