कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल बाल अधिकार आयोग द्वारा चुनाव के दौरान COVID-19 के कारण अनाथ होने वाले बच्चों के लिए चुनाव आयोग से मुआवजे की मांग वाली याचिका खारिज की

Update: 2022-05-24 10:47 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग (WBCPCR) के अध्यक्ष द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में भारत के चुनाव आयोग (ECI) को 26 फरवरी, 2021 को राज्य में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद COVID-19 के कारण जान गंवाने वाले बच्चों के प्रत्येक परिवार को मुआवजा देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

याचिका में कहा गया कि राज्य में COVID-19 से प्रभावित बच्चों की दुर्दशा चुनाव आयोग के आठ चरणों में विधानसभा चुनाव कराने के असंवेदनशील निर्णय का प्रत्यक्ष परिणाम है। वह तब जब कई संगठनों और मेडिकल एक्सपर्ट्स ने COVID-19 की दूसरी लहर की चेतवानी दी थी।

जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस सौमेन सेन की खंडपीठ ने यह देखते हुए कि राज्य चुनाव आयोग ने जांच करने के लिए बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2005 (अधिनियम) की धारा 15 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं किया और यह सुनिश्चित करना कि मृत्यु का कारण चुनाव आयोग के किसी लापरवाह आचरण के कारण तो नहीं है, याचिका को 'अपरिपक्व' होने के कारण खारिज कर दिया।

कोर्ट ने रेखांकित किया,

"वर्तमान मामले में माना जाता है कि उक्त अधिनियम की धारा 15 के संदर्भ में राज्य आयोग द्वारा कोई जांच शुरू नहीं की गई है। हमें रिट याचिकाकर्ता से उक्त शक्ति का प्रयोग नहीं करने के लिए कोई प्रशंसनीय स्पष्टीकरण नहीं मिला। जब राज्य आयोग को इस तरह की जांच करने, मौत के कारण का पता लगाने के लिए अधिकार दिया जाता है तो यह उम्मीद की जाती है कि इस तरह के निष्कर्षों और इसकी सिफारिशों के कार्यान्वयन के साथ संवैधानिक अदालत में जाने से पहले ऐसी जांच की जानी चाहिए, यदि संबंधित सरकार ऐसी सिफारिशों को लागू करने में विफल रही है। ऐसी मृत्यु के कारण बच्चों का अनाथ होना दुर्भाग्यपूर्ण और अवांछनीय है। बच्चे अनमोल संपत्ति है। केवल यह उम्मीद की जाती है कि यदि बच्चे के अधिकार का कोई उल्लंघन होता है तो आयोग बिना देरी किए अधिनियम के प्रावधानों को लागू करेगा और इस तरह के उपाय और कदम उठाएगा जैसा कि उससे उक्त अधिनियम के तहत उठाने की उम्मीद की जाती है।"

पीठ ने आगे कहा कि राज्य आयोग के अध्यक्ष द्वारा चुनाव अवधि के दौरान बच्चों की मौत के कारणों को देखने और ऐसी मौत के कारण का पता लगाने के लिए कोई बैठक नहीं की गई थी। न्यायालय ने आगे इस बात पर जोर दिया कि संवैधानिक न्यायालय का दरवाजा बंद नहीं है और एक बार जब आयोग लापरवाही के निश्चित निष्कर्ष पर पहुंच जाता है तो वह हमेशा ऐसे निष्कर्षों और सिफारिशों के साथ न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।

कोर्ट ने आगे कहा कि अधिनियम की धारा 13, 14 और 15 को एक साथ पढ़ने से पता चलता है कि आयोग को शिकायतों की जांच करने और बाल अधिकारों के उल्लंघन का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है। इस संबंध में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य में गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया गया।

कोर्ट ने राय दी,

"यह सच है कि जांच आपराधिक जांच की प्रकृति में नहीं है, लेकिन उक्त अधिनियम की धारा 13 (2) के तहत जांच पूरी होने पर आयोग उचित निर्देशों के लिए सुप्रीम कोर्ट या संबंधित हाईकोर्ट से संपर्क कर सकता है।"

इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता अधिनियम की धारा 13, 14 और 15 के तहत आयोग को प्रदत्त शक्तियों को समाप्त किए बिना रिट याचिका 'समय से पहले' है, राहत के लिए रिट अदालत का दरवाजा खटखटाया अधिनियम की धारा 13(2) के तहत जांच के बाद ही संभव है।

याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,

"अध्यक्ष ने आयोग के अन्य सदस्यों को विश्वास में नहीं लेने और उपरोक्त धाराओं के तहत शक्तियों का प्रयोग करने के लिए कोई ठोस कारण नहीं बताया है। रिट याचिका राज्य आयोग की किसी भी सिफारिश को लागू करने के लिए नहीं है। तथ्य खोजने वाले प्राधिकरण का प्रयोग किए बिना और अधिनियम के तहत अपनी शक्ति को समाप्त करने से सीधे संवैधानिक न्यायालय का दरवाजा खटखटाया नहीं जा सकता। याचिकाकर्ता अधिनियम के प्रावधान को दरकिनार नहीं कर सकता है और सीधे रिट क्षेत्राधिकार का आह्वान कर सकता है। अध्यक्ष होने के नाते रिट याचिकाकर्ता से राज्य आयोग की शक्तियों और कर्तव्यों से अवगत होने की उम्मीद है। साथ ही यह अपेक्षा की जाती है कि याचिकाकर्ता को पहले अधिनियम की धारा 14 और 15 के तहत शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए और फिर सिफारिश के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए।"

केस टाइटल: अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग बनाम भारत निर्वाचन आयोग और अन्य।

केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Cal) 203

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