प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए कर्मचारी के वेतन का भुगतान करने के लिए आदाता विभाग उत्तरदायी: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दोहराया कि प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए कर्मचारी के वेतन का भुगतान करने के लिए आदाता विभाग (Borrowing Department) उत्तरदायी है।
जस्टिस संजय धर ने याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों के खिलाफ 01.06.2015 से 29.12.2016 तक की अवधि के लिए एक अतिरिक्त ब्याज के साथ उनका वेतन जारी करने के लिए परमादेश की मांग की थी जिस अवधि के दौरान उनका वेतन रोका गया था, उस अवधि के लिए प्रति माह 74,000 रुपये का मुआवजा।
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता स्थायी कर्मचारी था, जो जम्मू-कश्मीर राज्य सड़क परिवहन निगम (SRTC) में ड्राइवर के रूप में काम कर रहा था। 25.05.2016 को उन्हें प्रतिवादी संख्या 2-लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, कारगिल (एलएएचडीसी) के कार्यालय में प्रतिनियुक्ति पर ट्रांसफर किया गया था।
याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी संख्या 2 के कार्यालय में एक चालक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया, लेकिन कई अनुरोधों के बावजूद वेतन का भुगतान नहीं किया गया। इसके बाद प्रतिवादी संख्या 2 (एलएएचडीवी) ने 1 अगस्त, 2015 के संचार के माध्यम से प्रतिवादी संख्या 4 (एसआरटीसी) से याचिकाकर्ता के वेतन को उसके मूल विभाग से जारी करने का अनुरोध किया, लेकिन संचार दिनांक 13.09.2015 के माध्यम से प्रतिवादी संख्या 2 (एसआरटीसी) को सूचित किया गया कि अन्य विभागों/संगठनों में प्रतिनियुक्ति पर भेजे गये कर्मचारियों के वेतन भुगतान का प्रावधान नहीं है।
बाद में 27.12.2016 को याचिकाकर्ता को प्रतिवादी एलएएचडीसी के कार्यालय से मुक्त कर दिया गया और उसे उस कार्यालय में रिपोर्ट करने का निर्देश दिया गया जो प्रतिवादी संख्या 4 एसआरटीसी का अधीनस्थ कार्यालय है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, उन्होंने 20 महीने के लिए प्रतिनियुक्ति के आधार पर प्रतिवादी संख्या 2 के साथ सेवा की, लेकिन इस अवधि के लिए एलएएचडीसी या एसआरटीसी द्वारा कोई वेतन नहीं दिया गया।
याचिका पर विचार करते हुए जस्टिस धर ने कहा कि जब किसी कर्मचारी को उसके मूल विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आदाता विभाग के अनुरोध पर आदाता विभाग में भेजा जाता है, तो यह कर्मचारी के वेतन का भुगतान करने के लिए आदाता विभाग का दायित्व होता है।
उपलब्ध रिकॉर्ड का सहारा लेते हुए बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को SRTC द्वारा LAHDC में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया था और यह स्पष्ट किया गया कि याचिकाकर्ता के वेतन का भुगतान LAHDC द्वारा किया जाएगा, हालांकि ऐसा लगता है कि परिषद इसके साथ सहज नहीं थी। इस संबंध में इसने SRTC के अधिकारियों को कई संचारों को संबोधित किया, लेकिन साथ ही परिषद ने याचिकाकर्ता को राहत नहीं दी और उसकी सेवाओं का लाभ उठाना जारी रखा, वह भी तब जब महाप्रबंधक, J&KSRTC, ने दिनांक 13 सितम्बर, 2015 के पत्र में परिषद को यह स्पष्ट कर दिया गया था कि प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए कर्मचारियों का वेतन उधार लेने वाले विभाग द्वारा वहन किया जाएगा।
प्रतिवादी एलएएचडीसी के इस तर्क से निपटते हुए कि याचिकाकर्ता को प्रतिनियुक्त नहीं किया गया था, लेकिन परिषद से जुड़ा हुआ था, पीठ ने पाया कि एलएएचडीसी द्वारा लिया गया स्टैंड मूल विभाग द्वारा जारी किए गए आदेश से झूठा है, जिसके तहत याचिकाकर्ता की सेवाओं को निपटाने के लिए रखा गया था।
पीठ ने कहा,
"इसलिए, यह LAHDC है जिसे याचिकाकर्ता को उक्त संगठन के साथ सेवा करने की अवधि के दौरान वेतन का भुगतान करना है, खासकर जब प्रतिनियुक्ति आदेश में ही यह स्पष्ट कर दिया गया था कि याचिकाकर्ता का वेतन परिषद द्वारा वहन किया जाना है। प्रतिवादी संख्या 2 और 3 याचिकाकर्ता के वैध रूप से अर्जित वेतन का भुगतान करने के अपने दायित्व से नहीं बच सकते हैं कि यह केवल कुर्की का मामला है, जो कि सही स्थिति नहीं है।"
दो संगठनों के बीच विवाद की ओर इशारा करते हुए याचिकाकर्ता के वैध रूप से अर्जित वेतन को उसकी किसी भी गलती के लिए रोक दिया गया है, अदालत ने प्रतिवादी संख्या 2 और 3 को न केवल याचिकाकर्ता के उस अवधि के लिए वेतन जारी करने के लिए बाध्य किया है जो उसने सेवा की है बल्कि उन्हें ब्याज का भुगतान करने के लिए भी उत्तरदायी ठहराया।
पीठ ने याचिका की अनुमति दी और प्रतिवादी एलएएचडीसी को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता के वेतन को लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, कारगिल के साथ इस रिट याचिका दायर करने की तारीख से राशि की प्राप्ति तक 6% प्रति वर्ष ब्याज के साथ जारी करे।
केस टाइटल : अब्बास अली बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य व अन्य।
साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 231
कोरम : जस्टिस संजय धर
याचिकाकर्ता के वकील: फिरदौस अहमद।
प्रतिवादी के वकील: ताहिर माजिद शम्सी डीएसजीआई
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