'स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन लंबे समय तक नहीं रोकी जा सकती': बॉम्बे हाईकोर्ट ने विधवा की याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा

Update: 2021-09-28 09:57 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लक्ष्मण चव्हाण की 90 वर्षीय पत्नी (विधवा) की याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा, जिन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान लड़ाई लड़ी और 1965 उनका निधन हो गया। कोर्ट ने कहा कि इतनी लंबी अवधि के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन को रोकना उचित नहीं है।

न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ शुक्रवार को शालिनी लक्ष्मण चव्हाण की सुनवाई कर रही थी। उसने दावा किया कि उसके पति एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था और 1944 में छह महीने के लिए भायखला जेल में कैद हुए थे।

चव्हाण ने दावा किया कि हालांकि महाराष्ट्र राज्य ने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक पेंशन योजना बनाई है जिसे स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना, 1980 कहा जाता है, लेकिन 1965 में उनके पति के निधन के बावजूद इसका लाभ उन्हें नहीं दिया गया।

उनके वकील, एडवोकेट जितेंद्र एम पाथाडे और श्रीकांत रावकर ने तर्क दिया कि पेंशन से इनकार इसलिए किया गया था क्योंकि भायखला जिला जेल में पुराने रिकॉर्ड जिसमें चव्हाण के कारावास का विवरण था,शायद नष्ट हो गया है।

पीठ ने अभियोजक को 30 सितंबर तक निर्देश लेने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने कहा,

"जैसा भी हो, रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्रियों से स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्वर्गीय लक्ष्मण रामचंद्र चव्हाण की स्थिति और याचिकाकर्ता को दिवंगत चव्हाण की विधवा के रूप में कोई विवाद नहीं प्रतीत होता है। यदि ऐसा है तो स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन को इतनी लंबी अवधि के लिए रोकना उचित नहीं है।"

याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट जितेंद्र एम पाथडे और एडवोकेट श्रीकांत रावकर पेश हुए। राज्य की ओर से सरकारी वकील पी एच कंथारिया पेश हुए।

केस टाइटल - शालिनी लक्ष्मण चव्हाण बनाम भारत संघ एंड अन्य।

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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