बॉम्बे हाईकोर्ट ने समीर वानखेड़े के पिता द्वारा दायर अवमानना याचिका पर राकांपा नेता नवाब मलिक को कारण बताओ नोटिस जारी किया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य के कैबिनेट मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता नवाब मलिक को कारण बताओ नोटिस जारी किया। कोर्ट ने उनसे यह बताने को कहा कि अदालत को दिए गए वचनों का उल्लंघन करने और आईआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े के परिवार को बदनाम करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए।
जस्टिस एसजे कथावाला और जस्टिस मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने समीर के पिता ज्ञानदेव वानखेड़े द्वारा दायर अवमानना याचिका पर चल रहे मानहानि का आरोप लगाते हुए यह आदेश पारित किया।
मलिक के हलफनामे का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि उन्हें उस मामले में रिकॉर्ड पर सही बयान देना चाहिए। इस हलफनामे में मलिक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके टेपों की सत्यता पर सवाल उठाए थे।
अदालत ने हाईकोर्ट रजिस्ट्री को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 215 और न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत अवमानना की कार्यवाही को विनियमित करने के नियमों के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करने का निर्देश देते हुए कहा,
"इसलिए हम प्रतिवादी नंबर एक (नवाब मलिक) द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं।"
नोटिस पर 21 फरवरी को जवाब देने को कहा गया है।
10 दिसंबर, 2021 को मलिक ने ज्ञानदेव द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे में अदालत को वचन देने के बावजूद, वानखेड़े पर टिप्पणी करने के लिए हाईकोर्ट में बिना शर्त माफी मांगी थी। इसके बाद उन्होंने एक शर्त के साथ एक नया वचन दिया कि वह केंद्रीय एजेंसियों के राजनीतिक दुरुपयोग और उनके अधिकारियों के उनके आधिकारिक कर्तव्यों के प्रदर्शन के दौरान उनके आचरण पर टिप्पणी करना जारी रखेंगे।
19 जनवरी को दायर अवमानना याचिका में ज्ञानदेव ने मलिक द्वारा 28 दिसंबर, 2021 से तीन जनवरी, 2022 के बीच तीन कथित उल्लंघनों का उल्लेख किया।
पहला उदाहरण मलिक के ट्वीट से संबंधित है। इसमें उन्होंने समीर वानखेड़े के खिलाफ जाति जांच समिति के समक्ष दायर एक शिकायत के बारे में अपने समर्थकों को सूचित किया। अन्य दो मामले कथित तौर पर प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उठाए गए थे।
वानखेड़े के धिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने कहा कि मलिक के हलफनामे में कोई स्पष्टीकरण नहीं आया कि बयान के दायरे में टिप्पणियां कैसे आएंगी। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश का घोर उल्लंघन है।
मलिक के वकील तंबोली ने समझाया कि मलिक के कार्यों के बाद वानखेड़े का जोनल निदेशक एनसीबी के रूप में कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया। इतना ही नहीं उनके बार लाइसेंस का भी नवीनीकरण नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि मलिक ने वानखेड़े का नाम नहीं लिया।
अदालत ने बार-बार पूछा कि क्या मलिक उनके आदेश से बाध्य नहीं हैं। मलिक के ट्वीट के बारे में तंबोली ने कहा कि उनका मामला यह है कि जाति प्रमाण पत्र झूठा है और वह केवल अपने ट्वीट के माध्यम से लोगों को सूचित कर रहे हैं।
अदालत ने आदेश पारित करने से पहले पूछा,
"आप कैसे कह सकते हैं कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया है। यह अंडर टैकिंग के दायरे में नहीं है?"
पिछले नवंबर में ज्ञानदेव ने हाईकोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर किया था। इसमें मलिक ने आरोप लगाया कि समीर वानखेड़े ने मुस्लिम होने के बावजूद अनुसूचित जाति वर्ग के तहत अपनी नौकरी हासिल कर ली थी।