बॉम्बे हाईकोर्ट ने COVID ​​मरीज की मौत के बाद डॉक्टर पर हमला करने के आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता पर भारी जुर्माना लगाया

Update: 2020-10-27 08:19 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में COVID ​​मरीज की मौत के बाद डॉक्टर पर हमला करने और अस्पताल स्टाफ को गाली देने के आरोपी एक सामाजिक कार्यकर्ता पर भारी जुर्माना लगाया।

जस्टिस भारती डांगरे की खंडपीठ ने आवेदक/अभियुक्त को मुख्यमंत्री राहत कोष में एक लाख रुपए की राशि जमा करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि राशि नहीं जमा करने की स्‍थति में उसे गिरफ्तारी की सुरक्षा से वंचित कर दिया जाएगा।

क्या था मामला

आवेदक/ अभियुक्त के ‌खिलाफ आईपीसी की धारा 452, 323, 504, 506, 509, 269 और 270 और महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 2, 3, और 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

इस मामले में शिकायतकर्ता (डॉ सुजीत अडसुल) ने इस आशय की शिकायत दर्ज कराई कि 10 सितंबर 2020 को डॉ राहुल जाधव ने शिकायतकर्ता (डॉ सुजीत अडसुल) को फोन किया कि COVID संक्रमित एक मरीज की मौत हो गई है और उसके करीबी लोग अस्पताल के सामने हंगामा कर रहे थे।

शिकायत में आरोप लगाया गया था कि एक व्यक्ति (आवेदक/अभियुक्त) डॉ.राहुल जाधव के परामर्श कक्ष में घुस गया शिकायतकर्ता के साथ गाली-गलौज शुरू कर दिया।

उसने (आवेदक/अभियुक्त ने) सवाल था किया कि कोरोना मरीज की मौत कैसे हुई और उसने मारपीट की और अस्पताल के कर्मचारियों के साथ भी दुर्व्यवहार किया। जिसके बाद 2020 की सीआर संख्या 463 फाइल की गई। आवेदक/अभियुक्त ने उक्त सीआर में अपनी गिरफ्तारी की आशंका जाहिर करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

आवेदक ने कोर्ट में दलील दी कि अपने करीब की मौत के कारण परिवार के लोग गहरे दुख में थे, हो सकता है कि उसने अतिशय प्रतिक्रिया दी हुई होगी, लेकिन अब वह दुखी है।

कोर्ट का आदेश

न्यायालय ने पाया कि अस्पताल के कर्मचारियों को देखभाल के लिए सौंपे गए मरीज के परिजनों का दुःख और शोक को समझा जा सकता है। हालांकि, अदालत ने कहा, यह भी नहीं भुला जा सकता है कि COVID महामारी के अशांत समय में, डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्य कर्मचारियों ने कोरोना योद्धाओं के रूप में काम किया।

न्यायालय का विचार था कि शिकायतकर्ता, जो स्वयं एक डॉक्टर है, एक COVID रोगी की मृत्यु अचानक कैसे हुई थी, इसे इतनी आसानी से समझाया नहीं जा सकता है और जिस तरह से हंगामा खड़ा किया गया, उसने न केवल शिकायतकर्ता को मानसिक तनाव झेलना पड़ा, बल्‍कि उनके साथ क स्वास्थ्य कर्मचारियों की पूरी टीम को परेशानी हुई।

अदालत ने टिप्पणी की, "घटना वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है, जब मेडिकल बिरादरी को आवेदक के कहने पर मौखिक और शारीरिक हमले का श‌िकार होना पड़ा, हालांकि यह बखूबी समझा जा सकता है कि उसने अपने निकट रिश्तेदार के आकस्मिक निधन के कारण अपना आपा खो दिया था, लेकिन उसी समय में, यह भी समझा जा सकता है कि आवेदक का कोई इरादा नहीं था और चूंकि वह अपनी कार्रवाई का दुख है और उसे लगता है कि उसे जिम्मेदार तरीके से व्यवहार करना चाहिए क्योंकि उसकी चिंता का कोई परिणाम नहीं निकला।"

कोर्ट ने कहा कि चूंकि आवेदक का अपराध करने का इरादा नहीं था...इसलिए आवेदक को सुरक्षा की आवश्यकता है।

अदालत ने कहा, "लेकिन उन्हें अपने गैर जिम्मेदाराना कृत्य के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए और विशेष रूप से उन स्वास्थ्य कर्मियों के प्रति जो कि महामारी की लड़ाई में सबसे आगे लड़ रहे हैं।"

इस संदर्भ में न्यायालय ने आदेश दिया कि,

* गिरफ्तारी की स्थिति में, आवेदक - शिवाजी जाधव को 2020 की एफआईआर संख्या 0463 के संबंध में 25,000 रुपए के पीआर बॉन्ड और समान राशि के एक या दो प्र‌तिभु के साथ पर जमानत पर रिहा किया जाएगा।

* रिहाई से दो सप्ताह के भीतर, आवेदक मुख्यमंत्री राहत कोष में एक लाख रुपए की राशि जमा करेगा और जांच अधिकारी के समक्ष रसीद पेश करेगा। राशि जमा करने में विफल होने पर उसे गिरफ्तारी की सुरक्षा से वंचित कर दिया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक पिता और बेटे की जोड़ी द्वारा दायर एक अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसमें एक पुलिसकर्मी की पिटाई का आरोप लगाया गया था।

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