बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को सरोगेसी के लिए राज्य बोर्ड और नियामक प्राधिकरणों के गठन पर गौर करने को कहा

Update: 2022-06-28 06:20 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी अधिनियम (एआरटी) और सरोगेसी अधिनियम के तहत सरोगेसी प्रक्रियाओं के लिए नियामक प्राधिकरणों के गठन पर तेजी से गौर करने को कहा।

जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस श्रीराम मोदक की खंडपीठ दंपति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उक्त याचिका में नए अधिनियमों से पहले शुरू की गई सरोगेसी प्रक्रिया को पूरा करने की मांग की गई है। दंपति ने अपने क्रायो-संरक्षित भ्रूण को पीडी हिंदुजा अस्पताल और मेडिकल रिसर्च सेंटर से किसी अन्य प्रजनन क्लिनिक में स्थानांतरित करने की मांग की है।

सुनवाई के दौरान, अदालत ने राज्य के वकील से कहा कि वह कानून के तहत अधिदेशित अधिकारियों के गठन के मामले को देखें।

अपने पहले दो बच्चों को खोने के बाद याचिकाकर्ताओं ने सरोगेसी का विकल्प चुना और मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में डॉ आरती अधे के इलाज में है। याचिकाकर्ता के इलाज के बीच में जनवरी 2022 में नया सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी अधिनियम (एआरटी) 2021 और सरोगेसी अधिनियम 2021 की अधिसूचना जारी की गई।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि दोनों अधिनियमों के लागू होने के तुरंत बाद अस्पताल ने सरोगेसी प्रक्रिया को जारी रखने से इनकार कर दिया और क्रायो-संरक्षित भ्रूण को किसी अन्य प्रजनन क्लिनिक में स्थानांतरित करने से भी इनकार कर दिया।

चूंकि अस्पताल भ्रूण को स्थानांतरित करने के लिए तैयार नहीं है और अधिनियम के तहत विभिन्न प्राधिकरणों विशेष रूप से राष्ट्रीय बोर्ड और राज्य बोर्डों के गैर-संविधान के कारण दंपति ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

उल्लेखनीय है कि अधिनियम 25 जनवरी, 2022 को लागू होने के 90 दिनों के भीतर इन प्राधिकरणों के गठन को अनिवार्य करता है। हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया और अस्पताल से जवाब मांगा।

दंपति के वकील ने सोमवार को कहा कि भ्रूण को क्लिनिक से दूसरे क्लिनिक में स्थानांतरित करने से किसी के हित प्रभावित नहीं होंगे और उस हद तक सीमित राहत की अनुमति दी जानी चाहिए। अस्पताल की ओर से पेश हुए वकील ने भ्रूण के स्थानांतरण का कड़ा विरोध किया। उसने तर्क दिया कि एआरटी अधिनियम की धारा 29 के मद्देनजर स्थानांतरण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

चूंकि मामले में कानून के प्रश्न शामिल हैं, इसलिए पीठ ने रिट याचिका को विस्तृत सुनवाई के लिए 7 जुलाई, 2022 को पोस्ट किया।

हालांकि, जब याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि अधिनियम के तहत अनिवार्य बोर्ड नहीं बनाए गए है तो अदालत ने राज्य के वकील की प्रतिक्रिया मांगी।

अदालत ने कहा कि वह प्राधिकरण के गठन के लिए कोई लिखित आदेश पारित नहीं कर रही है, लेकिन राज्य को सुनवाई की अगली तारीख से पहले इस मुद्दे पर गौर करना चाहिए।

तेलंगाना और पंजाब जैसे राज्यों ने पहले ही अधिनियम के तहत बोर्ड और उपयुक्त प्राधिकरणों का गठन कर लिया है। 4 मई, 2022 को केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय बोर्ड का भी गठन किया गया है। हालाँकि, महाराष्ट्र में राज्य बोर्ड का गठन होना बाकी है।

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