POCSO केस : बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी को दी ज़मानत कहा, प्यार के कारण नाबालिग लड़की ने किया आरोपी की शारीरिक इच्छा के समक्ष 'आत्मसमर्पण'

Update: 2020-01-14 08:57 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 25 साल के एक व्यक्ति अनिरुद्ध यादव को नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोप में ज़मानत दे दी है। उसके खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत मामला दर्ज है।

अदालत ने कहा कि पीड़िता लगभग 15 साल की एक नाबालिग लड़की है, उसके आचरण से संकेत मिले हैं कि उसने अपनी मर्जी से आरोपी के साथ जाने के लिए घर छोड़ दिया था और उसने अपने ' प्यार और लगाव के कारण ही आरोपी की शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण कर दिया था।

न्यायमूर्ति एस.के शिंदे ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत दायर आवेदन को स्वीकारते हुए कहा कि-

" पीड़िता का आचरण इस बात का द्योतक है कि उसने अपनी मर्जी से अपने माता-पिता के घर छोड़ दिया था और उसने प्यार और लगाव के कारण आवेदक की शारीरिक इच्छाओं के लिए आत्मसमर्पण कर दिया था। अभियोजन पक्ष का ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आवेदक ने पीड़िता से शादी करने का वादा किया था। इसके अलावा, यह भी कोई मामला नहीं है कि किसी तथ्य की गलत धारणा के तहत, उसने शारीरिक संबंध के लिए आवेदक की इच्छा के लिए खुद को सेवा दी थी या समर्पण किया था।''

न्यायालय ने यह भी कहा कि ' एस वरदराजन बनाम मद्रास राज्य एआईआर 1965 एससी 942' मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया फैसला इस मामले में लागू होता है

केस की पृष्ठभूमि

घटना के समय पीड़िता 14 वर्ष और 11 महीने की थी और आरोपी 25 वर्ष का था। आरोपी के खिलाफ कुरार पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 376 (3) और POCSO अधिनियम की धारा 4, 6 व 8 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

पीड़िता के बयान के अनुसार, 18 अप्रैल, 2019 को, उसने अपने माता-पिता के घर को अपने सामान के साथ चुपके से रात को 1 बजे छोड़ दिया था और आरोपी के साथ चली गई थी। वे महाबलेश्वर से भुसावल गए और उसके बाद दिल्ली गए। 22 अप्रैल को, वह दो दिनों के लिए, आवेदक के गांव, गाजीपुर, यूपी जाने के लिए निकल गई थी। जहां पर उसे आरोपी के रिश्तेदार ने घर वापस जाने के लिए राजी किया था और उसके बाद वह मुंबई लौट आए।

कोर्ट का फैसला

एडवोकेट आदिल खत्री द्वारा निर्देशित एडवोकेट नाजनीन खत्री इस मामले में आवेदक की तरफ से पेश हुई थी और एपीपी अविनाश खामखेड़कर मामले में राज्य की तरफ से पेश हुए।

अधिवक्ता नाजनीन ने आवेदक की ज़मानत की मांग की और कहा कि वह अप्रैल 2018 से हिरासत में है। साथ ही कहा कि मामले की सुनवाई अभी निकट भविष्य में शुरू होने की संभावना नहीं है और आवेदक की उपस्थिति को शर्तों को लागू करके सुरक्षित किया जा सकता है। उसने यह भी कहा कि आवेदक कथित घटना के घटित होने के समय पीड़ित के आसपास के क्षेत्र में नहीं रह रहा था।

पीड़िता के बयान की जांच के बाद, न्यायमूर्ति शिंदे ने फैसला सुनाया-

''तथ्यों का उक्त विवरण दूरस्थ रूप से भी यह नहीं बताता है कि आवेदक ने कभी पीड़िता को उसके माता-पिता का घर छोड़ने के लिए प्रेरित मजबूर किया था। इस प्रकार, प्रथम दृष्टया, एस. वरदराजन के मामले (सुप्रा) में निर्धारित अनुपात इस मामले में लागू होता है।''

POCSO अधिनियम के तहत कड़े प्रावधानों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा-

''जहां तक POCSO अधिनियम (विशेष कानून) की धारा 4, 6, 8 के तहत दंडनीय अपराध का संबंध है, यह कहा जा सकता है कि इस कानून के प्रावधान, हालांकि, प्रकृति में कड़े हैं, लेकिन न्याय को सुरक्षित करने के लिए अदालत को ज़मानत देने या इंकार करने से नहीं रोकते हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीड़िता POCSOअधिनियम के पूर्वावलोकन के तहत, एक नाबालिग है, हालांकि, वर्तमान मामले के तथ्यों से पता चलता है कि उसके पास यह समझने के लिए पर्याप्त ज्ञान और क्षमता थी कि वह क्या कर रही थी। उसके बाद भी वह स्वेच्छा से ही अपने घर से गई थी।''

न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि टिप्पणियां केवल जमानत देने के उद्देश्य से विचार की अभिव्यक्ति है और इनसे परीक्षण या सुनवाई प्रभावित नहीं होनी चाहिए। विशेष रूप से, सहमति की उम्र 18 वर्ष है, और नाबालिग के साथ यौन संबंध कानून में बलात्कार के रूप में माना जाता है, भले ही यह सहमतिपूर्ण हो या नहीं।

एस. वरदराजन बनाम मद्रास राज्य, मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रकार माना था-

''जब एक नाबालिग लड़की को आरोपी व्यक्ति द्वारा ले जाने का आरोप लगाया जाता है,जिसने यह जानते हुए या समझते हुए अपने पिता की सुरक्षा को छोड़ दिया था और वह क्या कर रही है, उसके बाद भी वह अपनी स्वेच्छा से आरोपी के साथ चली जाती है।

यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोपी उसे भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 361, (संक्षेप में आईपीसी) के अर्थ के तहत उसके वैध अभिभावक से दूर ले गया था। इस तरह के एक मामले में कुछ और किया जाना चाहिए था, जैसे कि नाबालिग द्वारा उसके पिता के संरक्षण से निकलने से पहले या उससे कुछ समय पहले ,अभियुक्त व्यक्ति द्वारा पीड़िता को प्रलोभन दिया गया हो या उसके इरादे के गठन में उसने सक्रिय भागीदारी निभाई हो।'' 


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