राजद्रोह का आरोप : बॉम्बे हाईकोर्ट ने TISS छात्रा का गिरफ्तारी से संरक्षण तीन हफ्ते और बढ़ाया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS)की 22 वर्षीय छात्रा कृष चुडावाला को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण को तीन और हफ्तों के लिए बढ़ा दिया। चुडावाला पर दक्षिण मुंबई में LGBTQ समुदाय के लिए आयोजित एक रैली के दौरान कथित रूप से शरजील इमाम के समर्थन में नारे लगाने के लिए राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था।
न्यायमूर्ति एसके शिंदे ने अतिरिक्त लोक अभियोजक द्वारा अदालत को यह सूचित किए जाने के बाद आदेश पारित किया कि उन्हें फोरेंसिक से रिपोर्ट आने का इंतज़ार है और अधिक समय की आवश्यकता है। इसके बाद अदालत ने चूड़ावाला को गिरफ्तारी से संरक्षण 3 सप्ताह और बढ़ा दिया। कोर्ट ने 11 फरवरी को चूड़ावाला को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दी थी।
पिछ्ली सुनवाई में अदालत ने आदेश दिया था कि छात्रा मुंबई और ठाणे के इलाके से बाहर न जाए। अदालत ने इस मामले में अभियोजन पक्ष से पूछा की कि क्या 2015 में हाईकोर्ट द्वारा राजद्रोह के मामलों के लिए स्वीकार किए गए दिशानिर्देशों का पालन किया गया है या नहीं।
इस पर एपीपी ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने अभी तक दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया है, लेकिन वे करेंगे। कोर्ट 2012 में तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार द्वारा प्रस्तुत दिशानिर्देशों के प्रारूप का उल्लेख कर रही थी। उक्त दिशा-निर्देशों के तहत पुलिस को किसी भी व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए लागू करने से पहले कुछ पूर्व शर्तें पूरी करने की आवश्यकता होती है।
2015 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इन दिशा-निर्देश को स्वीकार कर लिया था। इनके अनुसार सरकारी वकील को लिखित रूप में जिला विधि अधिकारी की राय लेनी होगी, जिसमें देशद्रोह का केस बनाने के कारण स्पष्ट करने होंगे। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने कहा, ''आप अभी भी (दिशा-निर्देशों) का पालन कर सकते हैं।
यदि आप चाहें, तो हम बाद में उसकी याचिका में अंतिम आदेश पारित कर सकते हैं।'' अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रशांत राजवैद्य ने गिरफ्तारी से बचने के लिए इस छात्रा को सुरक्षा प्रदान करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
चूड़ावाला के खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए (देशद्रोह), 153 बी (राष्ट्रीय एकता के पूर्वाग्रही कथन, अभ्यारोप)( Imputations, assertions prejudicial to national-integration ), और भारतीय दंड संहिता की धारा 505 के साथ 34 के तहत मामला दर्ज किया गया था।