'बढ़े हुए' बिजली के बिलों के खिलाफ राहत की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं का बाॅम्बे हाईकोर्ट ने किया निपटारा

Update: 2020-07-17 03:15 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को उन दो जनहित याचिकाओं का निपटारा कर दिया है जो लाॅकडाउन के दौरान मार्च से मई के बीच की अवधि के बीच प्राप्त कथित रूप से बढ़े हुए बिजली बिलों के खिलाफ राहत मांगने के लिए दायर की गई थी।

न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले और न्यायमूर्ति मिलिंद जे जाधव की खंडपीठ ने इन जनहित याचिकाओं के निपटारे के लिए दो अलग-अलग आदेश पारित किए हैं। लेकिन बिजली कंपनियों के खिलाफ सोलापुर के महिबूब शेख और मुंबई से रवींद्र देसाई ने कई विवाद एक जैसे ही उठाए थे। जबकि शेख सोलापुर में एक क्षेत्रीय समाचार पत्र ''बंधुप्रेम'' के संपादक हैं और देसाई मुलुंड के एक व्यापारी हैं।

महिबूब शेख की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता एवी अंतुर्कर पेश हुए और कहा कि COVID19   महामारी की अप्रत्याशित स्थिति के कारण महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग ने बिजली आपूर्ति से संबंधित गतिविधियों के निलंबन का निर्देश दिया था।

इसके अलावा एक अखबार की रिपोर्ट पर भरोसा करते हुए अंतुर्कर ने कहा कि इन गतिविधियों को निलंबित करने के कारण बिजली के बिल औसत आधार पर बनाए गए और उन्हें उपभोक्ताओं को जारी कर दिया गया। जबकि कोई उचित मूल्यांकन नहीं किया गया और बढ़े हुए बिल जारी कर दिए गए।

वकील ने दलील दी कि प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि वह नियत शुल्क से छूट का लाभ उपभोक्ता को दें या फिर उपभोक्ताओं को आसान किस्तों में बिजली के बिल का भुगतान करने की अनुमति दें।

एमएसईडीसीएल की वकील एडवोकेट किरण गांधी ने याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों का सख्ती से विरोध किया और कहा कि महामारी की स्थिति पर विचार किया गया है और सेवा प्रदाताओं यानी नियामकों ने शुरू के तीन महीने की औसत खपत के आधार पर बिजली बिल जारी किया है। इसके बाद विभिन्न अधिसूचनाओं को जारी करके आम जनता को सूचित किया गया कि अब यूनिट की गणना की जाएगी और उसके बाद ही बिजली के बिल जारी किए गए हैं।

पीठ ने कहा कि-

''इस स्तर पर, हम इन मुद्दों में प्रवेश करने के लिए इच्छुक नहीं हैं जो निश्चित रूप से विवादित तथ्य हैं। वहीं इस तथ्य पर भी कोई विवाद नहीं है कि उपभोक्ताओं के लिए शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराया जा रहा है और यह तंत्र तीन स्तरीय प्रणाली का है - सबसे पहले एक उपभोक्ता अपनी शिकायत दायर करने के लिए आंतरिक शिकायत निवारण फोरम (आईजीआरएफ) से संपर्क कर सकता है। इस फोरम के एक फैसले पर भी यदि कोई पक्ष दुखी होता है, तो उपभोक्ता शिकायत निवारण फोरम (सीजीआरएफ) के पास अपील दायर कर सकता है। यदि उपभोक्ता अपीलीय फोरम के फैसले से भी परेशान होता है, तो उपभोक्ता अंतिम प्राधिकरण यानी विद्युत लोकपाल के पास जा सकते हैं।''

जब याचिकाकर्ता के वकील से एक विशिष्ट प्रश्न पूछा गया कि क्या याचिकाकर्ता ने पहली फोरम यानी आईजीआरएफ के पास बिजली बिल के संबंध में शिकायत की थी तो उन्होंने कहा कि याचिका दायर करने तक ऐसी कोई शिकायत दायर करने का प्रयास नहीं किया गया था।

शेख की जनहित याचिका में की गई प्रार्थना के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि-

''कथित बढ़े हुए बिजली बिल के संबंध में दायर की गई इस याचिका को देखते हुए हमारी स्पष्ट राय है कि केवल प्रार्थना खंड 'ए' ही एक ठोस प्रार्थना है,जिस पर न्यायालय द्वारा विचार किया जा सकता है।

जहां तक​प्रार्थना खंड 'बी' का संबंध है, यह स्पष्ट रूप से एक नीतिगत निर्णय में हस्तक्षेप करने की प्रकृति जैसी है। जिसमें विद्युत ऊर्जा की खपत के लिए एक टैरिफ फिक्स करने की बात कही गई है। ऐसे में याचिका में उठाए गए तथ्यों या याचिकाकर्ता के वकील द्वारा दी गई दलीलों के आधार पर कोई ऐसा कारण नहीं नजर नहीं आ रहा है कि यह न्यायालय राज्य के नीतिगत निर्णय में हस्तक्षेप करें। इसलिए हम प्रार्थना 'बी' पर विचार करने के इच्छकु नहीं हैं।

इसी तरह, प्रार्थना खंड 'सी' केवल इस धारणा के आधार पर है कि ऊर्जा की खपत और ऊर्जा की खपत के लिए जारी किए जा रहे बिलों की गणना में कुछ गड़बड़ी है। इस संबंध में याचिका में केवल कुछ सामान्य सी दलीलें दी गई है इसलिए इस प्रार्थना पर न्यायालय द्वारा विचार नहीं किया जा सकता है।''

जबकि याचिकाकर्ता रवींद्र देसाई की ओर से पेश हुए अधिवक्ता विशाल सक्सेना ने दलील दी कि यद्यपि विद्युत ऊर्जा की खपत कम रही है उसके बावजूद भी एमएसईडीसीएल ने ऐसे बिल जारी किए हैं जो ऊर्जा की खपत के अनुसार नहीं है।

पीठ ने याचिकाकर्ता और प्रतिवादी एमएसईडीसीएल के बीच संबंधों की ओर इशारा किया, जो कि एक उपभोक्ता और एक सेवा प्रदाता का संबंध है। वहीं पीठ ने एमएसईडीसीएल के वकील द्वारा उठाई गई उस आपत्ति पर भी विचार किया,जिसमें कहा गया था कि वर्तमान याचिका पर जनहित याचिका के रूप में विचार नहीं किया जाना चाहिए।

इसके अलावा न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि पीआईएल दायर करने से चार दिन पहले याचिकाकर्ता (देसाई) ने बढ़े हुए बिलों के बारे में एक शिकायत दायर की थी।

पीठ ने कहा-

''विद्युत अधिनियम, 2003 में शिकायत निवारण तंत्र प्रदान किया गया है और प्रतिवादी नंबर 2- एमएसईडीसीएल के पास इस तरह की शिकायतों का निपटारा करने का अधिकार है। इसलिए याचिकाकर्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह उसकी शिकायत पर दिए जाने वाले निर्णय के लिए एक उचित समय तक इंतजार करता। परंतु ऐसा लगता है कि एक अनुचित हड़बड़ी में याचिकाकर्ता ने शिकायत निवारण फोरम में आवेदन या शिकायत जमा करने के चार दिनों के भीतर ही इस अदालत का दरवाजा खटखटा दिया।''

इसके अलावा याचिका में इस बात का भी कोई उल्लेख नहीं किया गया कि एमएसईडीसीएल के पास शिकायत दायर की गई है। यह केवल तभी बताया गया जब न्यायालय ने याचिकाकर्ता के वकील से इस बारे में सवाल पूछा।

कोर्ट ने कहा कि-

''ऊपर उल्लिखित घटनाओं के क्रम और तथ्यात्मक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, हमारी राय है कि हमें इस विवाद में नहीं जाना चाहिए कि इस याचिका पर बतौर जनहित याचिका विचार करना चाहिए या नहीं। इस स्तर पर याचिका में उठाए गए मुद्दे का ख्याल या ध्यान कुछ निर्देशों के तहत रखा जा सकता है और याचिका का निपटारा किया जा सकता है।''

इस प्रकार दोनों याचिकाकर्ताओं को स्वतंत्रता दी जा रही है कि वह अपने बढ़े हुए बिजली के बिलों के संबंध में संबंधित अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं। इसी के साथ इन जनहित याचिकाओं का निपटारा किया जा रहा है।

आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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