बिहार पीएससी परीक्षा मामले में पटना हाईकोर्ट ने एकल पीठ का फैसला रद्द किया, कहा, विशेषज्ञ सम‌िति की राय में हस्तक्षेप करके न्यायाधीश न्यायिक समीक्षा दायरे के बाहर चले गए

Update: 2021-01-10 05:24 GMT

पटना उच्च न्यायालय ने मंगलवार को न्यायालय की एकल पीठ द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि जज विशेषज्ञ समिति की राय में हस्तक्षेप करके न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर चले गए और उन्होंने बिहार लोक सेवा आयोग को प्रारंभिक चयन परीक्षा के लिए उत्तर कुंजी को फिर से जारी करने के लिए कहा।

जस्टिस शिवाजी पांडे और जस्टिस पार्थ सारथी की डिवीजन बेंच ने कहा, "हमारा विचार है कि विशेषज्ञ समिति की राय में व‌िद्वान न्यायाधीश का हस्तक्षेप और उत्तर कुंजी और परिणाम को फिर से जारी करने के लिए नई विशेषज्ञ समिति के गठन के लिए दिशा निर्देश जारी करना, न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है।"

खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि किसी परीक्षा को नियंत्रित करने के लिए बने कानून, नियम, या विनियमन के तहत उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन या जांच का प्रावधान है तो इसकी अनुमति परीक्षा करा रहा प्राधिकरण ही देगा।

हालांकि, यदि शासी कानूनों में ऐसे प्रावधान निहित नहीं है तो न्यायालय केवल पुनर्मूल्यांकन या जांच की अनुमति दे सकता है। हालांकि जब यह बहुत स्पष्ट हो कि तर्क की अनुमानिक प्रक्रिया या युक्तयुक्तिकरण की प्रक्रिया के बिना त्रुटि हुई है और यह केवल दुर्लभ या असाधारण मामले में होगा।

पृष्ठभूमि

बिहार लोक सेवा आयोग के लिए प्रारंभिक परीक्षा 15 सितंबर 2018 को आयोजित की गई थी। परीक्षा पूरी होने के बाद, मॉडल उत्तर कुंजी वेबसाइट पर प्रकाशित की गई। आयोग ने 1267 आपत्तियां प्राप्त कीं, जो प्रश्नों की गलत फ्रेमिंग, मॉडल उत्तर कुंजी में गलत उत्तर या एक प्रश्न के एक से अधिक उत्तर होने से संबंधित थीं। मूल याचिकाकर्ताओं ने उसी तरीके से, यह तर्क दिया कि चार विशेष उत्तरों में विसंगतियां थीं।

इन शिकायतों को प्राप्त करने के बाद, उक्त आपत्तियों की जांच के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई। कुल मिलाकर, 15 सवालों के जवाब गलत पाए गए। लेकिन, मूल याचिकाकर्ताओं ने जिन चार उत्तरो के गलत होने का दावा किया था, वे इन 15 उत्तरों का हिस्सा नहीं थे। समिति के निष्कर्षों से व्यथित होकर, याचिकाकर्ताओं ने पटना हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की, जिसमें उत्तर कुंजी की समीक्षा की मांग की गई।

इस मामले की सुनवाई कर रही एकल न्यायाधीश की पीठ ने समिति के निर्णय को रद्द कर दिया और एक नई समिति का गठन करके उत्तर कुंजी को फिर से जारी करने के निर्देश जारी किए।

इस याचिका के उत्तरदाताओं (बिहार लोक सेवा आयोग) ने एकल पीठ के निष्कर्षों से असंतुष्ट होकर मामले में तत्काल अपील दायर की।

जांच - परिणाम

डिवीजन बेंच ने इस मामले में कहा कि अदालत को किसी उम्मीदवार की उत्तर पुस्तिकाओं को पुनर्मूल्यां‌क‌ित करने या जांच करने का अधिकार नहीं है क्योंकि न्यायालय के पास इस मामले में कोई विशेषज्ञता या प्रवीणता नहीं है और यह कि "शैक्षणिक मामले को बेहतर है कि शिक्षाविदों पर छोड़ दिया जाए"।

न्यायालय ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक समीक्षा के दायरे को दोहराया और कहा कि असाधारण परिस्थितियों में, "न्यायालय उस मामले में हस्तक्षेप करेगा, जब वह वाकई गलत प्रतीत होगा।"


पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा रणविजय सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य में दिए गए फैसले पर भरोसा किया और कहा, "... यह माना जाता है कि उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन के निर्देश देने या निर्देश नहीं देने के मामले में सहानुभूति या करुणा कोई भूमिका नहीं निभाती है। यदि परीक्षा प्राधिकारण ने कोई त्रुटि की है, तो सभी उम्मीदवार पीड़ित होंगे। पूरी परीक्षा प्रक्रिया केवल इस कारण से पटरी से उतरने नहीं दिया जाता क्योंकि कुछ उम्मीदवार निराश या असंतुष्ट हैं या किसी गलत प्रश्न या गलत उत्तर के कारण उनके साथ कुछ अन्याय हो रहा है। सभी उम्मीदवार समान रूप से पीड़ित हैं, हालांकि कुछ अधिक पीड़ित हो सकते हैं जो हालांकि यह सहायक नहीं हो सका सकता क्योंकि गणितीय परिशुद्धता हमेशा संभव नहीं होती है। "

डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया, "अदालत को किसी उम्मीदवार की उत्तर-पुस्तिका का पुनर्मूल्यांकन या जांच करने के लिए कार्रवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसके पास शैक्षणिक मामलों में कोई विशेषज्ञता नहीं है और अकादमिक मामलों को अकादमिक विशेषज्ञों पर छोड़ना सबसे बेहतर होता है और न्यायालय आकदमिक विशेषज्ञों के डोमेन में प्रवेश नहीं कर सकता है मानो अकादमिक विशेषज्ञों की राय पर एक अपीलीय निकाय के रूप में कार्य कर रहे हो। न्यायालय के पास विशेषज्ञों के दृष्टिकोण का मूल्यांकन करने की बहुत कम विशेषज्ञता है, जब तक यह बिल्कुल ही बेतुका या गलत प्रतीत नहीं होता है।"

न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि इस मामले को देखने के लिए आयोग द्वारा गठित समिति में योग्य लोग शामिल थे, जिनके पास शिक्षा और परीक्षा के क्षेत्र में विशेषज्ञता थी। इस संदर्भ में, खंडपीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश यह नहीं कह सकते कि इस समिति के सदस्यों को मूल याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत दावों की जांच करने के लिए पर्याप्त ज्ञान नहीं था।

उन चार जवाबों की जांच करने के बाद, जिन्हें गलत होने का दावा किया गया था, अदालत ने कहा, "ये विज्ञान के विषय हैं और हमारे पास यह कहने की विशेषज्ञता नहीं है कि हमारे पास उत्तरों की शुद्धता की जांच करने के लिए ज्ञान है....."

न्यायालय ने इस प्रकार एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया और अपील का निस्तरण कर दिया।

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सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच, जिसमें जस्टिस एल नागेश्वर राव, हेमंत गुप्ता और अजय रस्तोगी शामिल थे, ने हाल ही में कहा कि यदि नियम अनुमति देते हैं ‌तो पुनर्मूल्यांकन का निर्देश दिया जा सकता है लेकिन कोर्ट द्वारा सवालों के पुनर्मूल्यांकन और जांच के निर्देश का अभ्यासख्‍ जिसके पास अकादमिक मामलों में विशेषज्ञता का अभाव है, कम किया जाए। न्यायालय ने कहा कि अदालतों द्वारा स्वयं सार्वजनिक परीक्षाओं के प्रश्नों और उत्तर कुंजी का मूल्यांकन स्वीकार्य नहीं है।

एक अन्य फैसले में, दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस मनमोहन और संजीव नरूला शामिल थे, ने कहा कि एक उत्तर कुंजी को केवल संदेह के आधार पर गलत नहीं माना जा सकता है। दिल्ली उच्चतर न्यायपालिका सेवा प्रारंभिक परीक्षा से संबंधित एक मामले में, अदालत ने कहा कि उत्तर कुंजी के बारे में हमेशा शुद्धता का अनुमान होता है और जब यह "विकराल रूप से गलत" हो, तभी यह न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकता है।

केस टाइट‌िल: बिहार लोक सेवा आयोग और अन्य बनाम आशीष कुमार पाठक और अन्य

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