अपना सम्मान दांव पर लगाकर कोई किसी से ज़मानत देने के लिए कहता है, आरोपी को ज़मानत के लिए नकद राशि जमा करवाने की छूट देनी चाहिए : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2020-08-08 10:27 GMT

Himachal Pradesh High Court

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि कोर्ट आरोपी को ज़मानत स्वीकार करते हुए दो विकल्प देना चाहिए – या तो वह श्योरिटी बॉन्ड दे या फिर नक़द राशि जमा करे।

न्यायमूर्ति अनूप चीत्कारा ने कहा कि आरोपी को ज़मानत देने के समय श्योरिटी और राशि जमा करने में से किसी एक का चुनाव आरोपी पर छोड़ना चाहिए। न्यायाधीश ने कहा कि यह वकीलों का दायित्व है कि वह आरोपी को बताएं कि सीआरपीसी के तहत नक़द राशि जमा कराने का विकल्प भी है। (सेक्शन 445 CrPC)

अभिषेक कुमार सिंह सफ़ेदपोश अपराध के आरोपी के रूप में ज़मानत के लिए हाईकोर्ट गया। आरोपी के वकील ने कहा कि अगर उसकी याचिक पर सुनवाई होती है तो, चूंकि आरोपी यहां किसी को नहीं जानता इसलिए उसे ज़मानत की नक़द राशि जमा कराने का विकल्प दिया जाए। उसने कहा वर्तमान परिस्थिति में कोई पश्चिम बंगाल से यहां आकर उसकी ज़मानत नहीं दे सकता।

कोर्ट ने कहा कि बॉन्ड का एकमात्र मतलब यह सुनिश्चित करना है कि आरोपी सुनवाई में भाग ले [Charles Shobhraj v. State, 1996 (63) DLT 91, Para 6 & 7]। नक़द बॉन्ड का उद्देश्य सरकारी ख़ज़ाने को भरना नहीं है।

पीठ ने कहा,

"संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन का जो अधिकार दिया गया है उसमें गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है। किसी ज़मानतदार के सामने ज़मानत के लिए गिड़गिड़ाना, अभिमान की क़ीमत पर करना पड़ता है।"

इस बारे में विभिन्न फ़ैसलों में कोर्ट का मंतव्य

ज़मानत के प्रावधान में यह कहीं नहीं लिखा है कि ज़मानत पर छोड़ने की शर्त के रूप में कोर्ट आरोपी को नक़द जमा कराने पर भी जोर दे सकता है।

[Afsar Khan v. State by Girinagar Police, Bangalore, 1992 Cr.LJ 1676 (7), Para 7];

कोर्ट ज़मानत की शर्त के रूप में नक़द जमा कराने को नहीं कह सकता।

[Rajballam Singh v. Emperor, AIR 1943 Patna 375, Para 2];

आरोपी को कहना चाहिए कि वह श्योरिटी के बदले नक़द जमा कराना चाहता है।

[Sagayam @ Devasagayam v. State, 2017(3) MLJ (Cri) 134, Para 40],

अगर आरोपी नक़द जमा कराना चाहता है तो यह कोर्ट पर है कि उसको स्वीकार करे या न करे।

[State of Mysore v. H Venkatarama Kotaiyah, 1968 CrLJ 696, Para 4];

मजिस्ट्रेट नक़द स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है पर वह आरोपी को नक़द जमा कराने की अनुमति दे सकता है।

[R. R. Chari v. Emperor, 1948 AIR(All) 238, Para 4];

नक़द जमा कराना ज़मानत देने की एक वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है।

[Gokul Das v. The State of Assam, 1981 CrLJ 229, Para 14];

नक़द जमा कराना सीआरपीसी की धारा 445 के तहत उतना ही प्रभावी है जितनी कोई अन्य व्यवस्था।

[Maha Ahmad Yusuf v. State of U.P., 2015 (5) R.C.R.(Criminal) 13, Para 6];

यह प्रावधान उस व्यक्ति की सुविधा के लिए है जिसे बॉन्ड भरना है और वह श्योरिटी की व्यवस्था नहीं कर सकता।

[Niamat Khan v. Crown, 1949 LawSuit (Nag) 42, Para 4];

आरोपी विदेशी है और स्थानीय श्योरिटी नहीं दे सकती पर इससे उसे ज़मानत देने से रोका नहीं जा सकता।

[Shokhista v. State, 2005 LawSuit (Del) 1316, Para 5];

कोड के तहत मजिस्ट्रेट निजी मुचलके के बदले नक़द सिक्योरिटी पर जोर नहीं दे सकता।

[Parades Patra v. State of Orissa, 1994 (1) Crimes (HC) 109, Para 10]।

कोर्ट ने कहा कि नक़द श्योरिटी आरोपी के अदालत में लौटने की संभावना में सुधार करती है।

कोर्ट ने कहा कि नक़द श्योरिटी अदालत में आरोपी की वापसी की संभावना को बढ़ाती है क्योंकि उसको पता है कि उसका पैसा सुरक्षित है और उसे सावधि जमा की तरह उस पर ब्याज भी मिल रहा है, लेकिन श्योरिटी के साथ यह बात नहीं होती है।

वक़ील कोर्ट का अधिकारी होता है और अपने मुवक्किल के हितों का रक्षक भी। यह उसका कर्तव्य है कि वह अपने मुवक्किल को बताएं कि ज़मानत के लिए नक़द जमा कराने का प्रावधान भी है।

बॉन्ड की राशि तर्कसंगत होनी चाहिए

कोर्ट का यह दायित्व है कि वह नक़द श्योरिटी की राशि तय करने में आरोपी के मौद्रिक हैसियत का ख़याल रखना चाहिए। यह इतना नहीं होना चाहिए ग़रीब आरोपी इससे और ज़्यादा परेशानी में पड़ जाए और ज़मानत दिए जाने के बावजूद उसे उसकी निजी स्वतंत्रता से हाथ धोना पड़े।

पीठ ने मामले को निपटारा करते हुए कहा,

याचिकाकर्ता को इस मामले में एक लाख रुपए के निजी बॉन्ड और या तो दो श्योरिटी या इतनी ही राशि जो मजिस्ट्रेट की संतुष्टि पर निर्भर है, जमा करने पर ज़मानत दी जाती है। कोर्ट ने कहा कि जब अदालत की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, याचिककर्ता जमा राशि के बदले श्योरिटी बॉन्ड या श्योरिटी बॉन्ड के बदले जमा राशि देने का आवेदन दे सकता है।

कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 446 के तहत ब्याज के साथ जमा राशि जमाकर्ता को वापस की जाएगी। इस जमा राशि की वापसी या इसकी अवधि के पूरा होने तक कोर्ट का सीआरपीसी अधिनियम 1973 की धारा 437 के तहत इस पर अधिकार होगा।

वक़ील राजीव जीवन, अनुभूति शर्मा और रागिनी डोगरा ने कोर्ट की अमिकस क्यूरी के रूप में मदद की। कल्याणी आचार्य शोध सहायक थीं। विनोद चौहान ने याचिकाकर्ता की और एएजी नंद लाल ठाकुर ने राज्य की पैरवी की।

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