'एक झूठी शिकायत के आधार पर एक व्यक्ति 77 दिनों तक जेल में रहा है' : केरल हाईकोर्ट ने पीड़िता द्वारा सहमति से संबंध बनाए जाने की बात स्वीकार करने के बाद बलात्कार के आरोपी को जमानत दी
COVID नेगेटिव सर्टिफिकेट बनवाने आई एक महिला के साथ बलात्कार करने के आरोपी स्वास्थ्य कार्यकर्ता को जमानत देते हुए केरल हाईकोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया है कि वह पीड़िता के खिलाफ उचित कार्रवाई करे क्योंकि उसने बयान दिया है कि आपसी सहमति से संबंध बनाए गए थे।
अदालत स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा दायर की गई तीसरी जमानत अर्जी का निपटारा कर रही थी। पिछले दो जमानत आवेदनों को अदालत ने खारिज कर दिया था और वह लगभग 77 दिनों से जेल में था।
पीड़िता द्वारा इस मामले में दायर किए गए एक हलफनामे का जिक्र करते हुए,जिसमें उसने कहा है कि आरोपी ने उसका बलात्कार नहीं किया और आपसी सहमति से संबंध बनाए गए थे, न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा किः
''मैं इस हलफनामे को पढ़ने के बाद हैरान हूं। उपरोक्त मामले का दर्ज होना, राज्य में मीडिया द्वारा व्यापक रूप से कवर किया गया था। केरल में लगभग सभी लोग इस मामले के बारे में जानते हैं। आरोप है कि एक स्वास्थ्य निरीक्षक ने उस महिला से बलात्कार किया,जो उसके पास COVID19नेगेटिव प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आई थी। पीड़ित द्वारा दिए गए पहले सूचना विवरण को पढ़ने के बाद, इस अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत देने से भी इनकार कर दिया था क्योंकि बयान में लगाया गया आरोप बहुत गंभीर था। उसने यहां तक कहा था कि उसके दोनों हाथ उसकी पीठ की तरफ बांध दिए गए थे और मुंह को एक डोथी से बंद कर दिया गया था। तत्पश्चात उसके साथ बलपूर्वक बलात्कार किया गया था। अब यह पीड़ित इस कोर्ट के सामने एक नोटरी अटेस्टेड शपथपत्र में कह रही है कि ऐसी कोई घटना नहीं है और यह संबंध आपसि सहमति से बनाए गए थे। हलफनामे में कहा गया है कि उसने अपने रिश्तेदारों के दबाव के कारण पुलिस को ऐसा बयान दिया था। "
अदालत ने कहा कि यदि पीड़िता के हलफनामे को स्वीकार कर लिया जाता है तो आरोपी पिछले 77 दिनों से अवैध हिरासत में था। अदालत ने कहा कि इस मामले में पहले सूचना के बयान में जो आरोप लगाए गए हैं,उन्होंने राज्य में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की छवि को धूमिल कर दिया है।
कोर्ट ने कहा किः
इसको बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। किसी को भी किसी व्यक्ति के खिलाफ ऐसी झूठी शिकायत नहीं करनी चाहिए। याचिकाकर्ता एक जूनियर हेल्थ इंस्पेक्टर के रूप में काम कर रहा था। महामारी COVID19 के खिलाफ राज्य में सैकड़ों स्वास्थ्य कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में, इस विशेष घटना ने राज्य में कार्यरत स्वास्थ्य कर्मचारियों पर एक ब्लैक मार्क लगा दिया है। इससे उनका मनोबल भी प्रभावित हुआ है। अब यह पीड़ित इस अदालत के सामने आकर कर रही है कि उन दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बनाए गए थे और उससे जबरदस्ती नहीं गई थी,जैसा कि एफआई के बयान में कहा गया था। किसी नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसका मौलिक अधिकार है। यह एक फिट केस है जिसमें याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, मेरे अनुसार, हलफनामे की सामग्री को राज्य के पुलिस महानिदेशक द्वारा देखा जाना चाहिए और कानून के अनुसार कथित पीड़िता या रिश्तेदारों के खिलाफ उचित कार्रवाई करनी चाहिए। यदि संभोग महिला की सहमति से हुआ था, तो प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है। यह भी सत्य है कि इस मामले की पीड़ित बालिग है। बेशक, याचिकाकर्ता के कार्य को नैतिक रूप से स्वीकारा नहीं जा सकता है, लेकिन उसे इस तरह दंडित करने का भी कोई कारण नहीं है। इस मामले में पहले सूचना वक्तव्य में जो आरोप लगाए गए हैं,उन्होंने राज्य में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की छवि को धूमिल किया है। यदि कोई भी इसके लिए जिम्मेदार है, तो उसके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई होनी चाहिए।
आरोपी को जमानत देते हुए, न्यायाधीश ने आगे कहा कि,
आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली इस तरह काम नहीं कर सकती है। एक झूठी शिकायत के आधार पर, एक व्यक्ति लगभग 77 दिनों के लिए जेल में रहा है। यह अदालत ऐसी स्थिति में अपनी आंख बंद नहीं कर सकती है। पुलिस महानिदेशक को इस मामले को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए और जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए। जिसके बाद तीन महीने के भीतर इस न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष उनके द्वारा की गई जांच की रिपोर्ट दायर की जाए। मैं यह स्पष्ट करता हूं कि जांच अधिकारी इस मामले में की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना अपनी जांच पूरी करें।
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