सेमेस्टर परीक्षा के लिए बार काउंसिल के दिशानिर्देश : कर्नाटक हाईकोर्ट ने बीसीआई, केएसएलयू के सर्कुलर के विरुद्ध कानून के विद्यार्थी की याचिका पर नोटिस जारी किये
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कानून के एक विद्यार्थी की उस याचिका पर बुधवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई), कर्नाटक स्टेट लॉ यूनिवर्सिटी (केएसएलयू) और राज्य सरकार को नोटिस जारी किये जिसमें इंटरमीडिएट सेमेस्टर परीक्षा संचालित करने के लिए बार काउंसिल की ओर से जारी दिशानिर्देशों को चुनौती दी गयी है।
याचिका में कर्नाटक स्टेट लॉ यूनिवर्सिटी (केएसएलयू) की ओर से जारी सर्कुलर को भी चुनौती दी गयी है, क्योंकि उसने इंटरमीडिएट सेमेस्टर लॉ विद्यार्थियों के लिए परीक्षा थोप दी है।
न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित की बेंच ने बेंगलुरु स्थित सेंट जोसेफ कॉलेज ऑफ लॉ के तीसरे वर्ष के विधि छात्र ऋत्विक बालानागरराज बी. की याचिका पर नोटिस जारी किये और उस पर जवाब देने के लिए पांच जनवरी 2021 तक का समय दिया है।
इससे पहले, इस छात्र ने हाईकोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसे बेंच ने निरस्त कर दिया था।
कोर्ट ने तब कहा था :
"इस रिट याचिका में मांगी गयी राहत जनहित से जुड़ी नहीं है, बल्कि इसमें व्यक्तिगत हित अथवा निजी हित से जुड़ी राहत मांगी गयी है। इसलिए इस रिट याचिका को पीआईएल नहीं कहा जा सकता। इस छोटे से आधार पर याचिका खारिज की जाती है, फिर भी याचिकाकर्ताओं को इस बात की छूट दी जाती है कि वे सलाह के अनुसार, निजी या व्यक्तिगत हित की मांग करते हुए रिट याचिकाएं दायर कर सकते हैं।"
इसके बाद, छात्र ने एकल पीठ का दरवाजा खटखटाते हुए कहा था, "परीक्षा का उन विद्याथियों पर विपरीत और अनुचित प्रभाव होगा, जो पहुंच, रिमोट लोकेलिटी और एफर्डेबिलिटी जैसी कई वजहों के कारण ऑनलाइन क्लासेज अटेंड कर पाने में असमर्थ थे। उन्हें उन विषयों की परीक्षाएं देने के लिए विवश किया जायेगा, जिन्हें कभी पढ़ाया ही नहीं जा सका और इसका इन विद्यार्थियों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, और ऐसे व्यक्तियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, जो पहले से ही हाशिए पर थे। यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।"
याचिका में आगे कहा गया है कि अचानक कॉलेजों में तालाबंदी के कारण विद्यार्थी पुस्तकालयों तक पहुंचने में असमर्थ रहे और अपने साथ कोई भी स्टडी मेटेरियल लिये बिना ही घर लौट गये। विद्यार्थियों की यूनिवर्सिटी से उचित अपेक्षा है कि उन्हें कम से कम विषयों के बारे में पढ़ाया जाये, स्टडी मेटेरियल तक उनकी पहुंच संभव हो सके और उसके बाद उनका मूल्यांकन किया जाये। यदि इस प्रक्रिया को अपनाये बिना परीक्षा आयोजित की गयी तो यह उनकी वैधानिक अपेक्षाओं का उल्लंघन होगा।
वकीलों - अर्नव बगलवाड़ी, शताबीश शिवाना, अभिषेक जर्नादन तथा एच सी प्रतीक - के जरिये दायर याचिका में कहा गया है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया और केएसएलयू की ओर से जारी सर्कुलर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा अप्रैल 2019 में जारी दिशानिर्देश, छह जुलाई 2020 को यूजीसी द्वारा संशोधित दिशानिर्देशों के असंगत और कर्नाटक सरकार के 10 जुलाई 2020 के आदेश के विपरीत है, जो कर्नाटक के सभी विश्वविद्यालयों में अपने इंटरमीडिएट सेमेस्टर विद्यार्थियों के मूल्यांकन के लिए एक फॉर्मूला अनिवार्य करता है जिसके तहत 50 फीसदी अंक आंतरिक मूल्यांकन और बाकी 50 फीसदी पूर्व के सेमेस्टर में लाये गये अंकों से निर्धारित किया जायेगा। केएसएलयू के विधि छात्र भी महामारी से समान रूप से प्रभावित हैं और उनके लिए भी समान तरीका अपनाया जाना चाहिए।
इस याचिका में नौ नवम्बर 2020 के सर्कुलर और एक नवम्बर 2020 की प्रेस रिलीज को गैर-कानूनी और निष्प्रभावी घोषित करके निरस्त करने की मांग की गयी है, क्योंकि वे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी गाइडलाइन से हटकर हैं और केएसएलयू से सम्बद्ध लॉ यूनिवर्सिटी सहित पूरे देश के सभी विधि विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक सत्र 2019-20 के लिए इंटरमीडिएट सेमेस्टर विधि छात्रों की परीक्षा पर लागू होते हैं।
इतना ही नहीं, याचिका में प्रतिवादी संख्या 1 (बार काउंसिल ऑफ इंडिया) द्वारा 27 मई 2020 के गाइड लाइन्स एवं नौ जून 2020 की प्रेस विज्ञप्ति को अवैध और निष्प्रभावी करार देते हुए निरस्त करने का अनुरोध किया गया है तथा कर्नाटक स्टेट लॉ यूनिवर्सिटी को राज्य सरकार के 10 जुलाई 2020 के उस आदेश को प्रभावी बनाने के निर्देश दिये जाने की मांग की गयी है, जो COVID-19 महामारी एवं तत्संबंधी लॉकडाउन के मद्देनजर विश्वविद्यालयों में परीक्षाओं एवं एकेडमिक कैलेण्डर पर यूजीसी के दिशानिर्देश के अनुरूप है।