अधिवक्ताओं को वित्तीय सहायता : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशनों से योजना का लाभ लेने वाले अधिवक्ताओं का नाम गोपनीय रखने को कहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जरूरतमंद अधिवक्ताओं और उनके क्लर्कों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के अपने आदेश की निरंतरता में जारी निर्देश में सभी बार एसोसिएशन से इस वित्तीय सहायता का लाभ लेने वाले अधिवक्ताओं का नाम गोपनीय बनाए रखने के लिए कहा है।
इसके अलावा अदालत ने आदेश दिया है कि लॉकडाउन के दौरान व्यथित अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए किए गए सभी लेनदेन, विधिवत ऑडिट किए जाएंगे।
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर की अगुवाई वाली एक खंडपीठ ने मंगलवार को यह आदेश आर्थिक रूप से कमजोर अधिवक्ताओं को वित्तीय सहायता देने के मुद्दे पर एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए पारित किया था।
अदालत ने आदेश दिया कि समिति एक पूर्ण योजना तैयार करने और सदस्यों को सहायता के अनुदान के उद्देश्य से एसोसिएशन के खातों को संचालित करने के लिए एक संवादात्मक निकाय के रूप में कार्य करेगी। खंडपीठ में शामिल न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा ने उत्तर प्रदेश एडवोकेट्स वेलफेयर फंड एक्ट, 1974 के तहत ट्रस्टी कमेटी को आदेश दिया कि जल्द से जल्द एक बैठक बुलाई जाए ताकि जरूरतमंद अधिवक्ताओं को सहायता प्रदान करने के लिए एक योजना तैयार की जा सके, जो COVID 19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से वित्तीय रूप से प्रभावित हुए हैं।
इस आदेश पर कुछ स्पष्टीकरण देने के लिए आज मामला उठाया गया। पीठ ने कहा,
"हम पाते हैं कि यह आवश्यक है कि राहत के लिए आवेदन करने वाले आवेदकों का नाम गुप्त बनाए रखा जाए और इसलिए, हम यह निर्देश देते हैं कि कोई भी संगठन जो अधिवक्ताओं की मदद करेगा, अधिवक्ताओं के नाम सार्वजनिक नहीं करेगा।"
अदालत ने आगे देखा,
"फिर भी, हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि न्यायालय द्वारा किए गए सभी लेन-देन बार अधिवक्ताओं के राहत कोष से संबंधित बार एसोसिएशनों द्वारा संबंधित अदालतों द्वारा नियुक्त किए जाने वाले निजी लेखा परीक्षकों द्वारा ऑडिट किए जाएंगे।"
निधियों के संवितरण का आदेश पारित करते समय, पीठ ने न्यायालय प्रबंधन में अधिवक्ताओं के लिपिकों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को भी मान्यता दी और इस प्रकार सरकार से अनुरोध किया था कि उनके लिए कल्याणकारी कानून बनाने की व्यवहार्यता की जांच की जाए।