बैंक लेनदारों से पैसा वसूलने के उपाय के रूप में लुक आउट सर्कुलर का इस्तेमाल नहीं कर सकते: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि क्रेडिटर्स से पैसा वसूलने के उपाय के रूप में बैंक लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) का उपयोग केवल इसलिए नहीं कर सकते क्योंकि उसे लगता है कि कानून के तहत उपलब्ध उपाय पर्याप्त नहीं है।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि एलओसी तभी जारी की जा सकती है जब पर्याप्त कारण हों। उन्होंने कहा कि यदि ऐसी एलओसी जारी करने के लिए कोई पूर्व शर्त है, तो उसा उल्लेख किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
“यह अच्छी तरह से स्थापित है कि लुक आउट सर्कुलर की वैधता पर उस तारीख को मौजूद परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जाना चाहिए, जिस दिन इसे जारी करने का अनुरोध किया गया था।”
कोर्ट ने कहा कि केवल संभावना कि किसी व्यक्ति को अंततः आरोपी बनाया जा सकता है, एलओसी जारी करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है जो किसी नागरिक की आवाजाही में बाधा डालता है और विदेश यात्रा करने का अधिकार छीन लेता है।
कोर्ट ने कहा,
"लुक आउट सर्कुलर जारी किए जाने से पहले किसी ठोस सामग्री के अभाव में "भारत के आर्थिक हित को नुकसान" जैसे वाक्यांशों का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और निश्चित रूप से बैंक लुक आउट सर्कुलर का उपयोग केवल धन की वसूली के उपाय के रूप में इसलिए नहीं कर सकते हैं क्योंकि सरफेसी एक्ट और आईबीसी के तहत उपलब्ध उपया पर्याप्त नहीं है और लुक आउट सर्कुलर जारी करने से तेजी से वसूली हो पाएगी।"
जस्टिस प्रसाद ने बैंक ऑफ बड़ौदा के कहने पर निपुण सिंघल के खिलाफ जारी एलओसी को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं। सिंघल का मामला यह था कि उन्हें एलओसी के बारे में तब पता चला जब वह स्पेन की यात्रा के लिए मुंबई हवाई अड्डे पर पहुंचे। वहां, उन्हें पता चला कि उन्हें विदेश यात्रा की इजाजत नहीं थी।
उन्होंने अदालत को बताया कि एलओसी लॉयड इलेक्ट्रिक एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड के संबंध में खोली एक कंपनी थी, जिसके साथ वह 2010 से 2017 तक कार्यरत थे और उसके निदेशकों में से एक थे।
सिंघल ने कहा कि कंपनी छोड़ने के लगभग 18 महीने बाद, नवंबर 2018 में कंपनी को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया गया और उन्हें पिछले साल जनवरी में बैंक ऑफ बड़ौदा से कारण बताओ नोटिस मिला, जिसमें कहा गया था कि उन्हें विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया गया था।
बाद में उन्हें बताया गया कि कंपनी और कंपनी के तीन निदेशकों के खिलाफ एक नियमित मामला दर्ज किया गया था। सिंघल का मामला यह था कि उन्होंने जांच में सहयोग किया और सीबीआई को सूचित किया कि उन्होंने मई 2017 में कंपनी से इस्तीफा दे दिया था और किसी भी स्थिति में प्रासंगिक समय पर प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी के रूप में काम नहीं कर रहे थे।
एलओसी को पूरी तरह से गैर-टिकाऊ बताते हुए, अदालत ने कहा कि अधिकांश लेनदेन सिंघल के इस्तीफे के बाद हुए थे और उन्हें केवल कंपनी द्वारा देय धन की वसूली के लिए "देश में बंधक के रूप में रखने" की मांग की जा रही थी।
कोर्ट ने कहा,
“याचिकाकर्ता की आवाजाही को जून, 2022 से यानी एक वर्ष से अधिक समय से गंभीर रूप से बाधित किया गया है, जबकि याचिकाकर्ता किसी भी एफआईआर में आरोपी भी नहीं है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा दायर जवाबी हलफनामे में छह अप्रैल, 2017 को हुए एक लेनदेन को छोड़कर अन्य लेनदेन का भी खुलासा किया गया है।”
जस्टिस प्रसाद ने कहा कि जिस दिन एलओसी जारी की गई थी, उस दिन सिंघल किसी भी मामले में आरोपी नहीं थे और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से यह भी पता नहीं चलता कि प्रवर्तन एजेंसियों ने उनकी गिरफ्तारी पर विचार भी किया था। अदालत ने सीबीआई के वकील का यह रुख भी दर्ज किया कि सिंघल इस मामले में आरोपी नहीं थे।
"वर्तमान मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह उचित ठहरा सके कि प्रवर्तन एजेंसी को कोई इनपुट मिला है कि याचिकाकर्ता का देश से बाहर जाना भारत के आर्थिक हित के लिए हानिकारक है या देश से उन्हें बाहर जाने की व्यापक हित में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"
केस टाइटल: निपुण सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य