'बजरंगबली-दलित' टिप्पणी- एक जनसभा को संबोधित करना एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने से अलग है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीएम योगी को राहत दी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ वर्ष 2018 में राजस्थान के अलवर जिले में एक चुनाव कैंपेन के दौरान दिए गए कथित 'आपत्तिजनक भाषण' के लिए शिकायत दर्ज करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कथित तौर पर कहा था कि ''(हिंदू भगवान) हनुमान जी वनवासी, वंचित और दलित थे। बजरंग बली ने उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सभी भारतीय समुदायों को एक साथ जोड़ने का काम किया।''
जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने कहा कि चुनाव के दौरान आम सभा आयोजित करने का उद्देश्य वहां मौजूद लोगों को संबोधित करना है ताकि उनमें उक्त राजनीतिक दल का समर्थन करने के बारे में विचार को आत्मसात किया जा सके।
पीठ ने कहा,''प्रेस कांफ्रेंस करना और/या प्रेस को इंटरव्यू देना चुनाव में आम जनसभा को संबोधित करने की तुलना में पूरी तरह से अलग कार्य है। प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले व्यक्ति और प्रेस को साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति का स्पष्ट इरादा और संदेश उसके भाषण या व्याख्यान में उपस्थित व्यक्तियों के लिए होता है कि या उसके द्वारा दिए गए जवाब समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित किए जाएं। चुनाव प्रचार के उद्देश्य से चुनाव के दौरान एक आम जनसभा को संबोधित करना एक अलग इरादे और उद्देश्य के साथ किया जाने वाला एक पूरी तरह से अलग कार्य है। यह मौके पर मौजूद लोगों को संबोधित करना है ताकि उनके मन में उक्त राजनीतिक दल का समर्थन करने के बारे में विचार आत्मसात किया जा सके।''
संक्षेप में मामला
नवल किशोर शर्मा नाम के एक वकील ने सिविल जज (एस.डी.)/अतिरिक्त मुख्य न्यायिक (2) मजिस्ट्रेट/एम.पी.एम.एल.ए कोर्ट के समक्ष वर्ष 2019 में शिकायत दायर कर यूपी के सीएम के खिलाफ उनकी कथित टिप्पणी के लिए आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की थी।
मार्च 2022 में, उक्त शिकायत को सीआरपीसी की धारा 203 के तहत खारिज करते हुए कहा गया था कि अदालत के पास इस पर विचार करने का कोई क्षेत्रीय अधिकार नहीं है। उस आदेश के विरुद्ध, शिकायतकर्ता/याचिकाकर्ता ने सत्र न्यायाधीश, मऊ के समक्ष एक आपराधिक पुनरीक्षण दायर किया जिसे अप्रैल 2022 में खारिज कर दिया गया।
दोनों आदेशों को चुनौती देते हुए, भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत वर्तमान याचिका हाईकोर्ट के समक्ष दायर की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि यूपी के सीएम के खिलाफ आरोप लगाने के लिए याचिकाकर्ता ने एक समाचार लेख को आधार बनाया था, हालांकि शिकायतकर्ता और उसके गवाह उक्त बैठक में मौजूद नहीं थे, जहां इन शब्दों ने उनकी धार्मिक भावनाओं,आस्था को चोट पहुंचाई थी और भगवान बजरंगबली को बदनाम करने वाली बात कही गई थी।
कोर्ट ने आगे कहा कि समाचार पत्रों में रिपोर्टिंग अपने आप में सुना हुआ द्वितीयक साक्ष्य है और जब तक इसकी रिपोर्ट करने वाले व्यक्ति की गवाही नहीं हो जाती है, तब तक यह स्वीकार्य नहीं है।
कोर्ट ने जोर देते हुए कहा,
''...अख़बार की रिपोर्ट अपने आप में इसकी सामग्री का सबूत नहीं है। रिपोर्ट केवल सुने हुए सबूत हैं। उन्हें या तो उस रिपोर्टर को पेश करके साबित करना होगा जिसने उक्त बयानों को सुना और उन्हें रिपोर्टिंग के लिए भेजा या इस तरह के रिपोर्टर द्वारा भेजी गई एक रिपोर्ट को प्रस्तुत करके और उक्त रिपोर्ट को साबित करने के लिए अखबार के संपादक या उसके प्रकाशक को पेश करना होगा।''
इसे ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिका/शिकायत में, एकमात्र सबूत जिस पर भरोसा किया गया है, वह अखबार की रिपोर्टिंग है और इसके अलावा कुछ नहीं है। चूंकि यह ''कानूनी साक्ष्य'' नहीं है, इसलिए, इसे अपने आप में स्वीकार्य नहीं ठहराया जा सकता है।
इसके अलावा न्यायालय ने यह भी कहा कि मऊ में स्थित अदालत के पास उक्त शिकायत पर विचार करने का कोई क्षेत्रीय अधिकार नहीं था क्योंकि कथित भाषण राजस्थान के अलवर जिले में दिया गया था और इसलिए, इसको खारिज करना उचित और सही था। इस प्रकार याचिका खारिज कर दी गई।
अंत में यह देखते हुए कि शिकायतकर्ता/याचिकाकर्ता पेशे से एक वकील है, अदालत ने याचिकाकर्ता पर 5000 रुपये का सांकेतिक जुर्माना लगा दिया। जिसका भुगतान 30 दिनों के भीतर न्यायालय के मध्यस्थता और सुलह केंद्र में उपयोग के लिए किया जाना है। कोर्ट ने जुर्माना इसलिए लगाया क्योंकि कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता ने अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है।
केस टाइटल- नवल किशोर शर्मा बनाम यू.पी. राज्य व अन्य
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एबी) 452
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