'छात्रों के मूल प्रमाण पत्र अपने पास रखकर, कालेज ब्लैकमेलिंग पर आ गए हैं', : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दी छात्रों को राहत

Update: 2020-10-07 08:00 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार (06 अक्टूबर) को निजी शैक्षणिक संस्थानों के उस मामले में कड़ा रुख अपनाया है,जिसमें कालेजों ने अपने छात्रों के मूल प्रमाण पत्रों और अन्य दस्तावेजों को अपने पास रख लिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि छात्र किसी अन्य कॉलेज में दाखिला न ले पाएं या इस मामले के लिए कालेज न छोड़ पाएं।

अपने मूल दस्तावेजों और प्रमाण पत्रों को वापस पाने में विफल रहने के बाद, वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं ने निम्नलिखित राहत पाने के लिए तत्काल याचिका दायर की है-

1-प्रतिवादी नंबर 2 से 5 को निर्देश दिया जाए कि वह याचिकाकर्ताओं के मूल दस्तावेजों को बिना किसी और देरी के तुरंत वापिस कर दें।

2-प्रतिवादी नंबर 2 से 5 या इनमें से कोई भी प्रतिवादी,जिसकी अवैध हिरासत में याचिकाकर्ता के मूल दस्तावेज रखे हैं, उनको निर्देश दिया जाए कि वह याचिकाकर्ताओं को मुआवजे के रूप में पांच-पांच लाख रुपये की राशि प्रदान करें। इसके अलावा प्रतिवादियों को रिकाॅड पेश करने व लागत देने के भी निर्देश दिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चैहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवल दुआ की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं और इन्हीं की तरह अन्य छात्रों को अपने करियर को सही दिशा देने के लिए काफी मानसिक परेशानी उठानी पड़ी है और कानूनी लड़ाई में शामिल होना पड़ा है।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने हरियाणा राज्य में पंजीकृत मां सरस्वती एजुकेशन ट्रस्ट के तत्वावधान में हिमालयन ग्रुप ऑफ प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस द्वारा चलाए जा रहे हिमालयन स्कूल ऑफ नर्सिंग में जीएनएम यानी जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी डिप्लोमा के तीन साल के कोर्स में प्रवेश लिया था।

कॉलेज में प्रवेश लेने के समय, याचिकाकर्ताओं से कहा गया था कि वे अपने मूल शैक्षिक प्रमाणपत्र कॉलेज को सौंप दें क्योंकि इन दस्तावेजों की प्रवेश के लिए आवश्यकता है। साथ ही कहा था कि जब भी जरूरत होगी,यह कागजात याचिकाकर्ताओं को वापिस दे दिए जाएंगे।

हालांकि, वर्ष 2019 में तीसरे वर्ष की अंतिम परीक्षा में उपस्थित होने के बाद भी, याचिकाकर्ता को उनके मूल दस्तावेज वापस नहीं दिए गए।

जब उन्होंने प्रतिवादी नंबर 3 के अध्यक्ष से संपर्क किया, तो उन्हें सूचित किया गया कि कॉलेज के पास रखे उनके मूल दस्तावेजों को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अपने साथ ले गई है।

इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, और प्रतिवादी नंबर 3 से 5 ने अपने जवाब में बताया कि याचिकाकर्ताओं ने जो दस्तावेज मांगे हैं, वे कॉलेज के पास नहीं हैं, क्योंकि उनको एक एफआईआर में लगे आरोपों की जांच के लिए सीबीआई ने जब्त कर लिया है। संस्थान के खिलाफ एससी व एसटी छात्रों के लिए दी जा रही छात्रवृत्ति की राशि के संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

कॉलेज अथॉरिटी  यानी प्रतिवादी नंबर 3 से 5 के जवाब को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने नोटिस जारी किया और सीबीआई को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया।

कोर्ट के समक्ष सीबीआई ने अपना जवाब दायर किया

सीबीआई ने स्वीकार किया कि हिमालयन ग्रुप ऑफ प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस, काला अंब, तहसील नाहन, जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश में सर्च की कार्यवाही के दौरान कुछ फाइलें जब्त की गई थी।

एजेंसी ने आगे कहा कि प्रतिवादी-कॉलेज ने एक गुप्त या दूरस्थ मकसद के चलते उनके संस्थान में दाखिला लेने वाले छात्रों के मूल दस्तावेजों को अपने पास रखा हुआ था।

हालांकि, सीबीआई ने अपने जवाब में कहा था कि मूल दस्तावेजों को छात्रों को वापस लौटाने और सीबीआई द्वारा सिर्फ उनकी फोटोकॉपी अपने पास रख लेने में कोई आपत्ति नहीं है।

न्यायालय के अवलोकन और निर्णय

कोर्ट ने कॉलेज के दृष्टिकोण पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि-

''क्या होगा, जब एक शिक्षा देने वाला संस्थान अपने छात्रों के मूल प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेजों को अपने पास रखकर ब्लैकमेलिंग करने पर आ जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनके पंखों को काट जा सकें और वे किसी अन्य कॉलेज में स्थानांतरित ना हो पाएं या दूसरे कालेज में दाखिला न ले पाएं।''

नतीजतन, प्रार्थना नंबर एक (याचिका की) को स्वीकार कर लिया गया था और सीबीआई को निर्देश दिया गया है कि वह कागजातों की फोटोकॉपी अपने पास रखकर मूल दस्तावेजों को छात्रों को वापिस कर दें। यह कागजात इस शर्त पर वापिस दिए जाएं कि जब भी जरूरत होगी, याचिकाकर्ता और अन्य छात्रों को सक्षम न्यायालय के साथ-साथ सीबीआई के समक्ष इन दस्तावेजों को पेश करना होगा।

दूसरी प्रार्थना के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि यह विधिवत रूप से स्थापित किया गया था कि कॉलेज प्रबंधन की अवैध कार्रवाई के कारण, याचिकाकर्ताओं और ऐसे ही अन्य छात्रों को कैरियर की अनपेक्षित अनिश्चितता के कारण काफी मानसिक परेशानी व तनाव सहन करना पड़ा है।

न्यायालय ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय बनाम एम.एल.आर सरस्वती कॉलेज एजुकेशन (2000) 7 एससीसी 746 के मामले में शीर्ष न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया। इस फैसले में कहा गया था कि-

''अब समय आ गया है कि अदालतें उन छात्रों को हर्जाना देने के लिए एक तंत्र विकसित करें, जिनके कैरियर उन सभी कॉलेजों/स्कूलों के गलत प्रबंधन के कारण गंभीर रूप से खतरे में हैं जो नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। अभी इस पहलू पर गहराई से विचार करने का अवसर नहीं है, परंतु एक दिन ऐसा भी करना होगा।''

इसलिए, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की संपूर्णता को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने महसूस किया कि याचिकाकर्ताओं को कम से कम उन कानूनी खर्चों के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए, जो उन्होंने इस अदालत के समक्ष मुकदमे की कार्यवाही में खर्च किया है।

इस प्रकार कोर्ट ने राहत/ प्रार्थना नंबर दो को स्वीकार करते हुए प्रतिवादी-कालेज को निर्देश दिया है कि वह मुकदमे के खर्च के तौर पर याचिकाकर्ताओं को पचास-पचास हजार रुपये का भुगतान करें।

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