अनुच्छेद 20(3) कंपल्सरी टेस्टिमोनिअल के खिलाफ अभियुक्त की रक्षा करता है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 91 आरोपी पर लागू नहीं होती: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Update: 2023-02-09 01:45 GMT

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 20(3) अभियुक्त को कंपल्सरी टेस्टिमोनिअल के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 91 [दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के लिए समन] आरोपी पर लागू नहीं होती है।

जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की पीठ ने पिता-पुत्री की एक जोड़ी (धोखाधड़ी के मामले में आरोपी) की ओर से दायर दो रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिन्होंने एक थाना प्रभारी की ओर से भेजी गई दो नोटिसों को चुनौती दी गई थी, जिसमें जांच के दरमियान कुछ दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया गया था।

उनका मामला यह था कि उन्हें दस्तावेज पेश करने का निर्देश देना, जांच के दर‌मियान चुप रहने के उनके अधिकार का उल्लंघन होगा, जो संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत गारंटीकृत संवैधानिक और कानूनी अधिकार है।

उन्होंने न्यायालय के समक्ष यह भी कहा कि उन्हें अपने स्वयं के मामले में गवाह बनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है और इस तरह, सीआरपीसी की धारा 91 के तहत कुछ दस्तावेजों को पेश करने का निर्देश देने वाले नोटिस को रद्द किया जाना चाहिए।

यहां यह ध्यान दिया जा सकता है कि सीआरपीसी की धारा 91(1) न्यायालय या किसी पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी को अधिकार देती है यदि न्यायालय या पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी को लगता है कि कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करना जांच, पूछताछ, परीक्षण या अन्य कार्यवाही के प्रयोजनों के लिए वांछनीय तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत एक तर्कसंगत आदेश पारित करके ऐसे निर्देश दे सकती है।

दूसरी ओर, नोटिस जारी करने में थाना प्रभारी के कार्यों का बचाव करते हुए, उप सरकारी अधिवक्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता उन नियमों और शर्तों से बंधे हैं जिनके द्वारा उन्हें अग्रिम जमानत के विशेषाधिकार में भर्ती किया गया है और अग्रिम जमानत के विशेषाधिकार का आनंद लेते हुए, वे उन दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करने से इनकार नहीं कर सकते जिन्हें अन्यथा उन्हें प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मामले में जांच पूरी होने के बाद, उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 409, 120बी, 201, 467, 468 और 471 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप पत्र भी दायर किया गया है।

न्यायालय की टिप्पणियां और आदेश

शुरुआत में, याचिकाकर्ताओं के वकील की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति खुद पर आरोप लगाने के लिए बाध्य नहीं है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 20 (3) एक अभियुक्त व्यक्ति को आत्म-अपराधी साक्ष्य देकर अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर करने से प्रतिरक्षा प्रदान करता है और एक अभियुक्त को चुप्पी बनाए रखने और बचाव का खुलासा नहीं करने का अधिकार है।

न्यायालय ने आगे कहा कि संरक्षण सबसे पहले उस व्यक्ति को उपलब्ध होगा, जिसके खिलाफ एक औपचारिक आरोप लगाया गया है और दूसरा, यदि ऐसा आरोप किसी अपराध से संबंधित है, जिसके परिणामस्वरूप सामान्य रूप से मुकदमा चलाया जा सकता है।

इस सवाल के बारे में कि क्या धारा 91 आरोपी व्यक्तियों पर लागू होगी, अदालत ने कहा कि गुजरात राज्य बनाम श्यामलाल मोहनलाल चोकसी एआईआर 1965 एससी 1251 के मामले में, शीर्ष अदालत ने माना था कि सीआरपीसी, 1898 की धारा 94 (सीआरपीसी की धारा 94, 1898 अब वर्तमान दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 91 के अनुरूप है) एक आरोपी व्यक्ति पर लागू नहीं होती है।

इसी मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के आलोक में सीआरपीसी के उक्त प्रावधान की जांच की थी।

न्यायालय ने यह भी कहा कि वी.एस. कुट्टन पिल्लई बनाम रामकृष्णन और अन्य (1980) 1 एससीसी 26 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से यह माना था कि धारा 91 (1) के अनुसार किसी वस्तु या दस्तावेज को प्रस्तुत करने के लिए सम्मन किसी ऐसे व्यक्ति को जारी नहीं किया जा सकता है जिस पर अपराध का आरोप लगाया गया हो।

अब, उक्त सिद्धांत को मामले में लागू करते हुए, न्यायालय ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता ऊपर वर्णित अपराधों के आरोपी हैं और अपराध करने से संबंधित एक औपचारिक आरोप पहले ही लगाया जा चुका है, जिसके परिणामस्वरूप न्यायिक आपराधिक अदालत के समक्ष उनका मुकदमा चलाया गया है , और इस प्रकार, वे अनुच्छेद 20 (3) के तहत अपेक्षित सुरक्षा के हकदार होंगे और इसलिए, धारा 91 सीआरपीसी उन पर लागू नहीं होगी।

परिणामस्वरूप, रिट याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया। याचिकाकर्ताओं को जारी किए गए 13-5-2022 और 28-5-2022 के नोटिस को दस्तावेज पेश करने के निर्देश की हद तक रद्द कर दिया गया था और कहा गया कि वे अपने बयान दर्ज करने के लिए स्टेशन हाउस ऑफिसर के सामने पेश होंगे।

केस टाइटलः कु ऊर्जा जैन बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य संबंधित रिट याचिका के साथ

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