"अगर विवाह अवैध या शून्य हो तो भी अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकार पवित्र", पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दूल्हे की उम्र 21 साल से कम होने के बाद भी युगल को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दिया
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 (iii) के उल्लंघन और अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त "जीवन और स्वतंत्रता" के अधिकार के बीच मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के सवाल पर विचार किया।
जस्टिस अरुण मोंगा ने 26 साल 11 महीने की लड़की और 20 साल और 08 महीने के एक लड़के की रिट पिटीशन पर विचार किया। उक्त युवक और युवती का दावा था कि वे एक दूसरे से प्यार करते हैं और उन्होंने शादी कर ली है।
याचिकाकर्ताओं, जिन्होंने 2 जुलाई को अमृतसर स्थित एक गुरुद्वारे में सिख संस्कार और समारोहों के अनुसार शादी की थी, ने कहा कि "उनकी शादी के तुरंत बाद, उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें धमकी दी कि वे उन दोनों को वे दोनों जहां भी होंगे, उन्हें खोजकर, जान से मार देंगे।" इसलिए, उन्होंने अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए अदालत से उचित निर्देश देने की मांग की थी।
सिंगल जज की बेंच ने कहा, "शादी की वैधता पर विचार किए बिना, मेरा मानना है कि भारत के संविधान के तहत परिकल्पित मौलिक अधिकारों का हकदार प्रत्येक नागरिक है, इसलिए याचिकाकर्ताओं को उचित संरक्षण प्रदान करना होगा..."
सिंगल जज ने इस तथ्य पर ध्यान देने के बावजूद कि लड़की उम्र में बड़ी है, और लड़का "न तो उम्र में बड़ी है और न ही विवाह योग्य उम्र का है", उन्होंने कहा कि उनकी शादी, भले ही यह मान लिया जाए कि सिख संस्कार के अनुसार हुई है, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 (iii) का उल्लंघन है।
कोर्ट ने कहा कि धारा 5 में विवाह के लिए सहमत पक्षों के लिए वैधानिक पूर्व-आवश्यकताओं की परिकल्पना की गई है ताकि दोनों के बीच विवाह किया जा सके। उपधारा (iii) के तहत दूल्हा और दुल्हन की न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है, "हिंदू विवाह के लिए शर्तें। किन्हीं भी दो हिंदुओं के बीच विवाह हो सकता है, यदि निम्न स्थितियां पूरी होती हों, अर्थात:
... (iii) शादी के समय दूल्हे ने [इक्कीस साल] और दुल्हन ने [अठारह साल] की उम्र पूरी कर ली हो; ... "
अदालत ने कहा, "धारा 5 का अध्ययन करने से, यह स्पष्ट है कि हिंदू विवाह अधिनियम की आवश्यक शर्तों में से एक यह है कि दूल्हे की उम्र 21 साल से ऊपर और दुल्हन 18 साल से ऊपर होनी चाहिए।"
हालांकि, उसी समय कोर्ट ने यह भी का हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11, उन विवाहों को जिनमें धारा 5 का उल्लंघन हो रहा हो, उन्हें निरस्त मानती है लेकिन उपधारा (iii) के उल्लंघन के संबंध में कुछ विवाहों को निरस्त या अवैध नहीं मानती है।
जस्टिस मोंगा ने कहा, "मैं इस बात पर विचार कर रहा हूं कि जिन बातों को संबोधित करने की जरूरत है, वे याचिकाकर्ताओं की आशंका है कि याचिका में वर्णित कारणों/ परिस्थितियों से उनके जीवन और स्वतंत्रता को खतरा है।"
यह उल्लेख करते हुए कि याचिकाकर्ताओं का विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 की उप धारा (iii) के अनुसार वैध नहीं है और चुनौती की स्थिति में उन्हें उचित फोरम के समक्ष अपने विवाह की वैधता की पुष्टि करनी पड़ सकती है। पीठ ने कहा कि हालांकि, फिलहाल मुद्दा याचिकाकर्ताओं की शादी नहीं है, बल्कि उनकी जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा है।
पीठ ने कहा, "मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए संवैधानिक मौलिक अधिकार अधिक महत्पपूर्ण हैं।",
"संवैधानिक योजना के तहत पवित्र होने के नाते", सिंगल जज ने निष्कर्ष निकाला कि इसे "संरक्षित किया जाना चाहिए", भले ही यह एक अमान्य या निरस्त विवाह का मामला हो या पार्टियों के बीच विवाह हुआ ही न हो।"
पीठ ने आगे कहा, "प्रत्येक नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है।"
पीठ ने पुलिस उपाधीक्षक, अमृतसर को निर्देशित किया कि याचिका की सामग्री को सत्यापित करें, विशेष रूप से याचिकाकर्ताओं को खतरे की धारणा को सत्यापित करें और उसके बाद, अगर उन्हें योग्य माना जाता है तो उन्हें जीवन और स्वतंत्रता की आवश्यक सुरक्षा प्रदान करें।
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