'एफआईआर दर्ज होते ही आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो जाती', पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया

Update: 2020-10-30 09:46 GMT

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने आगाह किया है कि भले ही एक शिकायत में संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर एफआईआर अनिवार्य है, लेकिन "एफआईआर दर्ज होने पर अभियुक्त की गिरफ्तारी खुद-ब-खुद नहीं होती है।"

जस्टिस राज मोहन सिंह की एकल पीठ ने कहा, "गिरफ्तारी अपराध के आरोप मात्र पर या सामान्य विषय के रूप में नहीं की जा सकती है। एक पुलिस अधिकारी के लिए विवेकपूर्ण होगा कि किसी शिकायत के बाद, वह शिकायत की वास्तविकता और सत्यता और अभियुक्त की संलिप्तता के संदर्भ में उचित विश्वास के बिना किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी न करे। व्यक्ति की गिरफ्तारी और एफआईआर का पंजीकरण प्रत्यक्ष रूप से संबंद्ध नहीं है, क्योंकि दोनों की दो अवधारणाएं हैं और विभिन्न मापदंडों के तहत संचालित होती हैं।"

कोर्ट ने चेतावनी दी है कि गिरफ्तारी की पूर्वोक्त अवधारणा का दुरुपयोग, ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के ऐतिहासिक निर्णय के तहत निर्धारित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप आईपीसी की धारा 166 के तहत पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई होगी।

अदालत सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हितेश भारद्वाज द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हितेश भारद्वाज ने अपने भाई द्वारा अपनी मां की कथित हत्या के संबंध में आपराधिक शिकायत दायर की थी, याचिका के तहत, जिसके बाद संबंधित पुलिस स्टेशन को एफआईआर दर्ज करने के लिए उचित निर्देश देने की मांग की गई थी।

यह प्रस्तुत किया गया था कि पुलिस ने प्राथमिक जांच करने के बाद एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया है, जबकि पुलिस बिना एफआईआर दर्ज किए शिकायत की पूरी तरह जांच नहीं कर सकती है।

इस प्रस्तुति से सहमत होते हुए, एकल-जज ने कहा, "अगर जानकारी में संज्ञेय अपराध का खुलासा किया गया हो तो एफआईआर का पंजीकरण धारा 154 सीआरपीसी के तहत अनिवार्य है। ऐसी स्थिति में प्रारंभिक जांच की अनुमति नहीं है। प्रारंभिक जांच वैवाहिक मामलों, पारिवारिक विवादों, वाणिज्यिक अपराधों से संबंधित मामले, चिकित्सीय लापरवाही के मामले, भ्रष्टाचार के मामले और ऐसे मामले, जिनमें आपराधिक विवेचना शुरू होने में या संतोषजनक स्पष्टीकरण के बिना पुलिस को रिपोर्ट करने में 3 महीने से अधिक की असामान्य देरी होती है, में की जा सकती है।"

कोर्ट ने कहा, "जब एक संज्ञेय अपराध की जानकारी पुलिस अध‌िकारी के समक्ष रखी जाती है, तब उसके पास एफआईआर दर्ज करने या नहीं दर्ज करने का विवेकाधिकार नहीं होता है। आपराधिक मामले का पंजीकरण न करने से कानून के नियम कमजोर होते हैं और इससे अराजकता हो सकती है, जो समाज के लिए हानिकारक है।"

इस प्रकार, कोर्ट ने याचिकाकर्ता की शिकायत को एफआईआर के रूप में दर्ज करने का निर्देश पारित किया। खंडपीठ ने आगे स्पष्ट किया कि यदि जांच के बाद कोई मामला नहीं बनता है, तो प्राथमिकी को रद्द करना पुलिस का विशेषाधिकार होगा।

कोर्ट ने कहा, "ऐसी स्थिति में, शिकायतकर्ता के पास न्यायालय से नोटिस प्राप्त होने पर विरोध याचिका दायर करने का अधिकार होगा। इसके बाद अदालत रद्द रिपोर्ट को स्वीकार कर सकती है या प्रारंभिक साक्ष्य प्राप्त होने पर आपराधिक मामले के रूप में मामले में आगे बढ़ सकती है या आगे की जांच के साथ कानून के अनुसार अन्य आदेश पारित कर सकती है।"

केस टाइटल: हितेश भारद्वाज बनाम पंजाब राज्य व अन्‍य।

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