"तर्क ठोस हैं": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वसूली, जालसाजी के आरोपित पत्रकार की गिरफ्तारी पर रोक लगाई
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते जिला हरदोई में भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष द्वारा की गई शिकायत पर उद्दापन (extortion) और जालसाजी के आरोप में दर्ज पत्रकार शरद कुमार द्विवेदी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने प्रथम दृष्टया पाया कि आवेदकों के वकील द्वारा दी गई दलीलों ठोस है और जिसपर अदालत द्वारा विचार किया जाना आवश्यक है, इसलिए, न्यायालय ने माना कि अंतरिम राहत के लिए एक मामला बनाया गया है।
पत्रकार ने एक घटना के बारे में, जहां एक धोखेबाज महिला द्वारा एक भाजपा नेता को किए गए फोन बातचीत और ब्लैक्मैल किए जाने के विषय में अपने फेसबुक अकाउंट पर एक पोस्ट के साथ वीडियो पोस्ट किया गया था।
पत्रकार ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा था कि मामले की जांच होनी चाहिए, हालांकि, जैसा कि पत्रकार के वकील द्वारा प्रस्तुत किया गया था, उन्हें भाजपा नेता द्वारा मामले में रंगदारी रैकेट चलाने का आरोप लगाते हुए फंसाया गया था।
इसके अलावा, पत्रकार द्विवेदी के वकील द्वारा यह तर्क दिया गया कि पहले उनके खिलाफ उत्पीड़न के आरोप के लिए दो प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई थी और ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि उन्होंने हरदोई के कुछ नेताओं के कथित भ्रष्टाचार के संबंध में एक जनहित याचिका दायर की थी।
यह भी प्रस्तुत किया गया था कि शिकायतकर्ता, भाजपा नेता ने तत्काल प्राथमिकी केवल याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए मनगढ़ंत तथ्यों के साथ दर्ज की थी।
दरअसल, याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि उसका शिकायतकर्ता या कथित महिला से कोई सरोकार नहीं था जिसका नाम एफआईआर में उजागर किया गया है।
इस पृष्ठभूमि में, पत्रकार द्विवेदी ने प्राथमिकी रद्द करने की मांग की जोकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67-A एवं आईपीसी की धारा 384, 468 के तहत दर्ज की गई थी, और मामले को अब 3 सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया गया है।