'मनमाना और अनुचित': बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र को बुजुर्गों को डोर-टू-डोर COVID-19 वैक्सीनेशन नहीं करने की नीति पर पुनर्विचार करने को कहा

Update: 2021-04-23 05:43 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को डोर-टू-डोर टीकाकरण क्यों संभव नहीं, इस पर केंद्र के पांचों बिंदुओं की आलोचना करते हुए केंद्र सरकार को COVID19 महामारी में बुजुर्गों, बेड पर पड़े और विकलांग व्यक्तियों के लिए अपनी टीकाकरण नीति पर फिर विचार करने के लिए कहा है।

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि यदि कोई नीति किसी बुजुर्ग व्यक्ति को उनकी नाजुक चिकित्सीय स्थिति के कारण टीकाकरण से वंचित करती है तो इसे मनमाना और अनुचित माना जाना चाहिए।

बेंच ने कहा कि,

"जितना देश के युवा और विकलांग नागरिक संरक्षण के हकदार हैं उतना ही बुजुर्ग नागरिक भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के संरक्षण के हकदार हैं। हम पछता रहे हैं कि बुजुर्ग नागरिकों को शैतान और गहरे समुद्र के बीच चयन करने के लिए कहा जा रहा है।"

बेंच ने केंद्र सरकार से कहा कि "आप बुजुर्ग नागरिकों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकते।" आगे कहा कि, "हम केंद्र से एक बेहतर एफिडेविट दाखिल करने का आदेश देते हैं। इस पर सरकार वापस विचार करना चाहिए। मेरी मां अपने जीवन के अंतिम छह साल से बेड पर पड़ी रहीं। अगर वह कोविड के समय में रहती तो वह क्या करती? "

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दिए गए कारणों का हवाला देते हुए जो डोर-टू-डोर टेस्टिंग के दौरान फिजिकल डिस्टेंसिं प्रोटोकॉल का पालन करने में कठिनाई से लेकर टीके की प्रभावशीलता के लिए अगर इसे बार-बार निकाला जाता है तो इन समस्याओं से निपटने के लिए पर्याप्त सुविधाएं हैं।

बेंच ने आदेश में कहा कि,

"वर्तमान में आईसीयू सुविधाओं के साथ नई पीढ़ी की एम्बुलेंस भी उपलब्ध हैं। यह मानना मुश्किल है कि अनुशंसित तापमान को बनाए रखने के लिए रेफ्रिजरेटर के साथ फिट की गई एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं हैं और इसलिए टीके की प्रभावशीलतो से समझौता किया जाएगा।"

न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने सुनवाई के दौरान बताया कि लॉस एंजिल्स में फाइजर की वैक्सीन प्राप्तकर्ता के वाहन में दिया जाता है।

आगे कहा कि, "बच्चों और बुजुर्ग लोगों का ध्यान रखना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यह उल्टा नहीं होना चाहिए। हम देखते हैं कि उन्हें केवल अंतरराष्ट्रीय मानकों के कारण हवाई अड्डे पर प्राथमिकता दी जा रही है।"

व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता अधिवक्ता ध्रुति कपाड़िया ने कहा कि टीकाकरण केंद्रों पर फिजिकल डिस्टेंसिंग एक समस्या होगी और घर पर टीकाकरण के दौरान नहीं के दौरान ऐसी समस्या नहीं आएगी।

खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि इसमें कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि डोर-टू-डोर टीकाकरण सोशल डिस्टेंसिंग को बाधित करेगा।

कोर्ट ने कहा कि पैरा 6.5 (सुप्रीम कोर्ट) में अंतिम कारण हमें जमीनी स्तर पर वास्तविकताओं से अवगत कराया गया है। हम किसी भी समय टीकाकरण केंद्रों पर भारी भीड़ होने पर न्यायिक सूचना की मांग कर सकते हैं। यह ध्यान रखना है कि COVID-19 प्रोटोकॉल का उल्लंधन न हो।

कोर्ट में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि होम वैक्सीनेशन नहीं करने के निर्णय पर दो सप्ताह के भीतर पुनर्विचार किया जाएगा और मामले को 6 मई, 2021 तक के लिए स्थगित कर दिया।

[PIL No. 9228 of 2021 ध्रुपति कपाड़िया और अन्य बनाम भारत संघ]

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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