अलॉटमेंट रद्द करना मनमाना : एनसीडीआरसी ने ई-होम इंफ्रास्ट्रक्चर को जमा की गई राशि लौटाने का निर्देश दिया

Update: 2023-01-03 05:45 GMT

National Consumer Dispute Redressal Commission

 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की पीठ ने ई-होम्स इन्फ्रास्ट्रक्चर को निर्देश दिया है कि वह शिकायतकर्ताओं द्वारा जमा की गई पूरी राशि का भुगतान करे जिसमें स्टांप पेपर खरीदने के लिए खर्च किए गए 410000 रुपये और आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड द्वारा दी गई राशि को 9 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज के साथ भुगतान करना शामिल है। आयोग  18 प्रतिश वार्षिक दर से ब्याज के साथ शेष मूल राशि वापस करने के लिए प्रतिवादी पक्ष को निर्देश देने के लिए दायर एक शिकायत पर सुनवाई कर रहा था,जिसमें कुछ अन्य राहतों की भी मांग की गई थी। पीठासीन सदस्य के रूप में जस्टिस राम सूरत राम मौर्य और सदस्य डॉ. इंदर जीत सिंह की पीठ ने यह निर्देश दिया है।

शिकायतकर्ताओं ने ‘‘द ज्वेल ऑफ नोएडा’’ नामक हाउसिंग प्रोजेक्ट के बारे में सुना जो ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था और प्रतिवादी पक्ष द्वारा लॉन्च किया गया था। शिकायतकर्ताओं ने परियोजना में अपने स्वयं के उपयोग के लिए एक फ्लैट बुक किया और 2,00,000 रुपये की बुकिंग राशि जमा की। उन्हें 8235000 रुपये की कुल कीमत पर एक फ्लैट आवंटित किया गया था। शिकायतकर्ताओं ने भुगतान योजना के अनुसार किश्तों की राशि का भुगतान किया। इसके अलावा, आईसीआईसीआई बैंक से एक ऋण लिया गया था जिसका सीधे प्रतिवादी पक्ष को भुगतान किया गया था।

शिकायतकर्ता द्वारा भुगतान की गई कुल राशि 9198984 रुपये थी और फिर प्रतिवादी पक्ष द्वारा उन्हें एक अंतिम मांग पत्र भेजा गया था। हालांकि, शिकायतकर्ताओं ने जब कब्जे के प्रमाण पत्र की मांग की, तो प्रतिवादी पक्ष नाराज हो गया और उनका अलॉटमेंट रद्द कर दिया। तदनुसार आईसीआईसीआई बैंक को धनराशि वापस कर दी गई लेकिन शिकायतकर्ताओं से संबंधित 2,00,000 रुपये की जमा राशि को जब्त कर लिया गया और इस राशि के लिए कोई ब्याज नहीं दिया गया। ऋण लेने की तिथि से ऋण खाता बंद होने तक, शिकायतकर्ताओं ने 1018012 रुपये की ईएमआई का भुगतान किया। शिकायतकर्ताओं ने सब-लीज डीड के लिए 411000 रुपये के स्टाम्प खरीद लिए थे।

प्रतिवादी पक्ष ने राष्ट्रीय आयोग के आर्थिक क्षेत्राधिकार पर आपत्ति जताई। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ताओं को पोजेशन कम डिमांड का ऑफर जारी किया गया था, लेकिन भुगतान करने के बजाय शिकायतकर्ता बिल्डर के खिलाफ असामाजिक गतिविधियों में लिप्त हो गया जिससे प्रतिवादी पक्ष के सामने एक गंभीर समस्या पैदा हो गई। शिकायतकर्ता नंबर 1 आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त पाया गया था, जिसमें जबरन वसूली और प्रतिवादी पक्ष और परिसर के अन्य आवंटियों की संपत्ति को खतरे में डालना शामिल था। इसलिए, उनका आवंटन रद्द कर दिया गया था और आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड को उसके खाते के विवरण के अनुसार ऋण राशि वापस कर दी गई थी। प्रतिवादी पक्ष आवंटन को रद्द करने पर कुल प्रतिफल का 10 प्रतिशत जब्त करने का हकदार था इसलिए शेष राशि जब्त कर ली गई थी।

राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि शिकायतकर्ता का अलॉटमेंट  इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि वो आपराधिक गतिविधियों में शामिल था। हालांकि, ऐसे तथ्यों का कोई प्रमाण नहीं है। आयोग ने यह भी पाया कि प्रतिवादी पक्ष ने शिकायतकर्ता नंबर 1 के खिलाफ एफआईआर की कोई प्रति दायर नहीं की है। यह देखा गया कि निरस्तीकरण पत्र किसी वैध कारण पर आधारित नहीं था और यह मनमाना है। पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं ने फ्लैट पर कब्जे की राहत की मांग नहीं की हैं, क्योंकि उसे पहले ही प्रतिवादी पक्ष ने किसी अन्य को बेच दिया है। इसलिए शिकायतकर्ता उनके द्वारा जमा की गई धनराशि को ब्याज सहित प्राप्त करने के हकदार हैं।

उपरोक्त चर्चा के आलोक में, पीठ ने प्रतिवादी पक्ष को शिकायतकर्ताओं द्वारा जमा की गई पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया है, जिसमें स्टांप पेपर खरीदने के लिए खर्च किए गए 410000 रुपये और आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड द्वारा दी गई राशि को 9 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज के साथ भुगतान करना शामिल है। ब्याज संबंधित राशि जमा करने की तारीख से लेकर भुगतान करने की तारीख तक की अवधि के लिए दिया जाएगा। यह भी निर्देश दिया गया है कि भुगतान की जाने वाली कुल राशि में से आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड को पहले से भुगतान की गई राशि को समायोजित कर लिए जाए और निर्णय की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर भुगतान कर दिया जाए।

केस टाइटल-सुमित मानसिंगका व अन्य बनाम ई-होम्स इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड

उपभोक्ता मामला संख्या-780/2018

शिकायतकर्ता के वकील-श्री सौरभ जैन, श्री शाजान कुमार, एडवोकेट

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