अपीलीय अदालत को अपीलकर्ता के पेश न होने पर अपील के निपटान में कोर्ट की सहायता के लिए एक एमिकस नियुक्त करना चाहिएः झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया

Update: 2021-08-26 07:45 GMT

झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने माना है कि एक अपीलीय अदालत को रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सामग्रियों पर विचार करने और निष्कर्ष पर पहुंचने की आवश्यकता है और अपीलकर्ता के उपस्थित न होने की स्थिति में, अपीलीय अदालत को अपील के निस्तारण में अपीलार्थी की तरफ से अदालत की सहायता के लिए कम से कम एक न्याय मित्र/एमिकस नियुक्त करना चाहिए।

न्यायमूर्ति अनुभा रावत चैधरी ने मोहम्मद सुकुर अली बनाम असम राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए अवलोकन पर भरोसा किया।

''हमारा मानना है कि भले ही यह मान लिया जाए कि आरोपी का वकील लापरवाही या जानबूझ कर पेश नहीं होता है, फिर भी अदालत को आरोपी के खिलाफ उसके वकील की अनुपस्थिति में आपराधिक मामले का फैसला नहीं करना चाहिए क्योंकि एक आपराधिक मामले में आरोपी को उसके वकील की गलती के लिए पीड़ित नहीं होना चाहिए और ऐसी स्थिति में अदालत को आरोपी के बचाव के लिए एक अन्य वकील को एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त करना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है। आर्टिकल 21 जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी देता है, संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। आर्टिकल 21 को मौलिक अधिकारों का 'हृदय और आत्मा' कहा जा सकता है।''

पृष्ठभूमिः

याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 ए (लापरवाही से मौत) के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और एक साल के कठोर कारावास और एक हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। उस पर धारा 279 (रैश ड्राइविंग) के तहत दंडनीय अपराध के लिए भी एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया।

उक्त दोषसिद्धि के विरुद्ध दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए, अपीलीय अदालत ने दर्ज किया कि बार-बार स्थगन के बावजूद, कोई भी अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता की ओर से मामले पर बहस करने के लिए पेश नहीं हुआ। याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति में राज्य ने अपनी दलीलें पेश की और मामले को निर्णय के लिए पोस्ट किया गया।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता बी.एम. त्रिपाठी ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता का पक्ष अपीलीय अदालत ने नहीं सुना।

उन्होंने सुकुर अली के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि अगर वकील पेश नहीं होता है, तो भी मामले के निपटारे के लिए एक न्याय मित्र नियुक्त किया जाना चाहिए था। उन्होंने आगे कहा कि अपीलीय अदालत तथ्यों पर फैसला करने के लिए अंतिम अदालत थी और अपीलीय अदालत को याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील की सहायता लेने की आवश्यकता थी।

अतिरिक्त लोक अभियोजक पीडी अग्रवाल ने इस दलील पर सहमति व्यक्त की कि मामले को एक निश्चित समय सीमा के भीतर नए सिरे से सुनवाई और निपटान के लिए अपीलीय प्राधिकारी को वापस भेजा जा सकता है।

निष्कर्ष

बेंच ने माना कि अपीलीय अदालत ने अपील के निपटारे के समय याचिकाकर्ता का पक्ष नहीं सुना था, जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति में आक्षेपित निर्णय पारित किया गया।

हाईकोर्ट ने यह भी माना कि अपीलीय अदालत को रिकॉर्ड पर सभी सामग्रियों पर विचार करने की आवश्यकता होती है और अपीलकर्ता के उपस्थित न होने की स्थिति में, अदालत को अपीलकर्ता की ओर से अदालत की सहायता के लिए कम से कम एक न्याय मित्र नियुक्त करना चाहिए।

इसलिए, हाईकोर्ट ने 2012 की इस आपराधिक अपील में पारित आक्षेपित निर्णय को रद्द कर दिया, और याचिकाकर्ता के साथ-साथ राज्य को सुनवाई का अवसर देने के बाद मामले पर नए सिरे से विचार के लिए इसे अपीलीय अदालत में वापस भेज दिया।

आदेश में यह भी कहा गया है कि,

''दोनों पक्षों को 13.09.2021 को अपने संबंधित वकीलों के माध्यम से प्रधान सत्र न्यायाधीश, पूर्वी सिंहभूम, जमशेदपुर की अदालत के समक्ष पेश होने और अपने संबंधित मामलों पर बहस करने का निर्देश दिया जाता है। जिसके बाद अपीलीय अदालत एक महीने की अवधि के भतीर अपील का मैरिट के आधार पर शीघ्र निपटान कर दे।''

केस का शीर्षकः रमेश कुमार बनाम झारखंड राज्य

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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