आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने अदालत के आदेशों की जानबूझकर अवहेलना के लिए आईएएस अधिकारी को दो सप्ताह की कैद की सजा सुनाई
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने 2017 में विशाखापत्तनम के कलेक्टर रहे आईएएस अधिकारी प्रवीण कुमार को अदालत के आदेशों की जानबूझकर अवहेलना करने के लिए सजा सुनाई और 2000 रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया है। हालांकि, आदेश के क्रियान्वयन पर 4 सप्ताह की अवधि के लिए रोक लगा दी गई।
जस्टिस आर रघुनंदन राव ने कहा कि पहली नजर में ऐसा लग सकता है कि अदालत के आदेशों का अनुपालन किया गया, लेकिन करीब से देखने पर इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा,
“इस न्यायालय का निर्देश विंजामुरी राजगोपालाचारी बनाम राजस्व विभाग में पूर्ण पीठ के फैसले के संदर्भ में आदेश पारित करना है। इसके लिए पहले प्रतिवादी को याचिकाकर्ताओं को नोटिस देने और उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर देने और ऐसे सभी दस्तावेज़ पेश करने की आवश्यकता है, जो उन्हें आवश्यक लगे। याचिकाकर्ताओं को ऐसा कोई अवसर नहीं दिया गया।”
2011 में वर्तमान अवमानना मामले के याचिकाकर्ता ने के. यारियाह नामक व्यक्ति से जमीन खरीदी। के. यारियाह ने भूमि के लिए पट्टा प्राप्त कर लिया और उसकी वैधता को अपील आयुक्त और बाद में उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया।
याचिकाकर्ता ने 2015 में विशाखापत्तनम के कपुलुप्पादा गांवों में 7 एकड़ के लिए रयोथवारी पट्टा जारी करने के लिए उनकी भूमि को "निषिद्ध सूची" से हटाने के लिए कलेक्टर को निर्देश देने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
इसके बाद अदालत ने कलेक्टर को राजस्व अधिकारियों की कार्यवाही के कारण विशाखापट्टनम के कपुलुप्पादा गांव में 7 एकड़ की भूमि को "निषिद्ध सूची" से हटाने के लिए याचिकाकर्ता की याचिका पर विचार करने का आदेश दिया। अदालत ने कलेक्टर को याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने के लिए पर्याप्त मौका देने का भी आदेश दिया।
हालांकि, कलेक्टर ने याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का कोई मौका दिए बिना उनका दावा खारिज करने का आदेश पारित कर दिया। इसके बाद कार्यवाही का दूसरा सेट जारी किया गया, जिसमें कलेक्टर ने पहले आदेश को पारित करने के कारण बताए।
अदालत ने पाया कि कुमार ने तत्कालीन "निषिद्ध सूची" से प्रविष्टियों को हटाने का आवेदन खारिज करते हुए संयुक्त कलेक्टर की कार्यवाही को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया, जिसकी निपटान निदेशक और बाद में अपील आयुक्त द्वारा पुष्टि की गई।
अदालत ने कहा,
“अतिरिक्त कार्यवाही जारी करने में पहले प्रतिवादी का आचरण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पहले प्रतिवादी को पहले के आदेश को पारित करने में अपनी गलती का एहसास हो गया, अब वह अपने प्रारंभिक आदेश में सार जोड़ने का प्रयास कर रहा है। यहां भी, पहले प्रतिवादी ने याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का मौका नहीं दिया और न ही पहले प्रतिवादी के सामने अपनी सामग्री रखने का मौका दिया।''
सीनियर वकील के.एस.मूर्ति जीवीवीएसआर की ओर से उपस्थित हुए। याचिकाकर्ता के वकील सुब्रमण्यम ने तर्क दिया कि दो अलग-अलग मौकों पर हाईकोर्ट द्वारा उनके अधिकार की पहचान और पुष्टि किए जाने के बावजूद, कलेक्टर ने भूमि आयुक्त के कार्यालय में अपील आयुक्त के आदेशों को आधार बनाकर उनका आवेदन खारिज कर दिया। राजस्व गलत है और उस पर कार्रवाई नहीं की जा सकी।
प्रतिवादी के वकील जी एल नरसिम्हा रेड्डी ने तर्क दिया कि प्रतिवादी राज्य के हित के रक्षक के रूप में कार्य कर रहा है और न्यायालय के आदेश को जानबूझकर अस्वीकार या अवज्ञा नहीं किया गया।
कोर्ट ने कहा,
''जिस तरह से बिना किसी समय विस्तार की मांग के कार्यवाही शुरू की गई और राजस्व विभाग द्वारा दायर रिट याचिका के आधार पर आवेदन खारिज किया गया, उसे राज्य हित की सुरक्षा की वेदी पर माफ नहीं किया जा सकता।''
पीठ ने कहा कि यह आवेदन खारिज करने का कोई सामान्य मामला नहीं है, जिसमें अदालत याचिकाकर्ता को अपील के माध्यम से किसी भी शिकायत का समाधान करने के लिए कह सकती है।
पीठ ने आगे कहा,
"इस न्यायालय का निर्देश विंजामुरी राजगोपालाचारी बनाम राजस्व विभाग में फुल बेंच के फैसले के संदर्भ में आदेश पारित करना है। इसके लिए पहले प्रतिवादी को याचिकाकर्ताओं को नोटिस देना और उन्हें अपना मामला रखने का अवसर देना आवश्यक है और ऐसे सभी दस्तावेज़ रखने के लिए जिन्हें वे आवश्यक समझते हैं। याचिकाकर्ताओं को ऐसा कोई अवसर नहीं दिया गया और 08.11.2017 को प्रथम प्रतिवादी द्वारा पारित आदेश इस न्यायालय के निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है।"
अदालत ने कहा कि अगर लंबित कार्यवाही को भी ध्यान में रखा जाए तो भी अधिकारी आदेश पारित करने में समय बढ़ाने के लिए अदालत से संपर्क कर सकता है।
इसमें कहा गया,
"इस अदालत से संपर्क करने के बजाय पहले प्रतिवादी ने आयुक्त और निपटान निदेशक के आदेशों और आयुक्त अपील के आदेशों पर अपील में बैठने का फैसला किया और याचिकाकर्ताओं के आवेदन को खारिज कर दिया।"
पीठ ने आगे कहा कि अधिकारी अदालत के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन कर रहा है। यह देखा गया कि उनके द्वारा की गई बिना शर्त माफी अस्वीकृति के आदेश को पारित करने में देरी के लिए माफी प्रतीत होती है, न कि अदालत के आदेशों के किसी भी उल्लंघन के लिए।
अधिकारी को दोषी ठहराते हुए यह कहा गया,
"इस अदालत के आदेश वर्ष 2017 में पारित किए गए। यह अवमानना मामला 2017 में दायर किया गया। इस अदालत के आदेशों को लागू किए बिना छह लंबे साल बीत गए। पहले प्रतिवादी का आचरण अस्वीकार्य है और किसी भी तरह की नरमी का सामना करना उचित नहीं है। ऐसा आचरण कानून के शासन और इस अदालत के आदेशों को लागू करने के लिए प्रतिकूल होगा।''
केस टाइटल: श्रीनिवास राव और अन्य बनाम प्रवीण कुमार, विशाखापत्तनम
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