आंध्र प्रदेश सांसद रघुराम कृष्णम राजू की गिरफ्तारी का मामला: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मेडिकल जांच के आदेश का पालन नहीं करने पर अधिकारियों के खिलाफ स्वतः संज्ञान अवमानना कार्यवाही शुरू की

Update: 2021-05-22 09:04 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने वाईएसआर कांग्रेस सांसद के रघुराम कृष्णम राजू की गिरफ्तारी से संबंधित मामले में रघुराम की मेडिकल जांच के लिए पारित आदेश का पालन नहीं करने पर अधिकारियों के खिलाफ स्वत: अवमानना कार्यवाही शुरू की है।

न्यायमूर्ति ललिता कन्नगती और न्यायमूर्ति सी प्रवीण कुमार की खंडपीठ ने गुंटूर के डीजीपी कार्यालय के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (सीआईडी), स्टेशन हाउस अधिकारी, सीआईडी पुलिस स्टेशन, मंगलगिरी, गुंटूर जिला और गुंटूर के सरकारी अस्पताल के अधीक्षक के खिलाफ स्वत: अवमानना कार्यवाही शुरू की।

कोर्ट द्वारा 19 मई को पारित आदेश की कॉपी आज अपलोड की गई है।

अवमानना की कार्रवाई राजू की मेडिकल जांच कराने के लिए 16 मई को दिए गए निर्देशों का पालन न करने के संबंध में है, जिसे आंध्र प्रदेश पुलिस ने उनकी आलोचनात्मक टिप्पणी को लेकर देशद्रोह के एक मामले में गिरफ्तार किया और मजिस्ट्रेट ने 15 मई को आदेश में राजू के संबंध में मेडिकल जांच के लिए गुंटूर के रमेश अस्पताल में ले जाने का निर्देश दिया था।

उच्च न्यायालय ने 15 मई को वरिष्ठ अधिवक्ता बी आदिनारायण राव द्वारा भेजे गए पत्र याचिका पर कार्रवाई करते हुए राजू की जांच के लिए एक मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश भी पारित किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सांसद को पुलिस हिरासत में यातनाएं दी जा रही हैं। उसी दिन बाद में मजिस्ट्रेट ने राजू को गुंटूर के रमेश अस्पताल में मेडिकल जांच के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया।

उच्च न्यायालय ने अगले दिन 16 मई को स्पष्ट किया कि मेडिकल बोर्ड के गठन का उसका आदेश मजिस्ट्रेट के आदेश को प्रभावित नहीं करता है और मजिस्ट्रेट के आदेश को प्रभावी किया जाना चाहिए।

कोर्ट में जब मामले की अगली सुनवाई 19 मई को हुई तो अदालत इस बात से हैरान थी कि राज्य ने गुंटूर के रमेश अस्पताल में राजू के मेडिकल जांच से संबंधित उसके निर्देश का पालन नहीं किया है।

पीठ से राज्य सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता पी सुधाकर रेड्डी कहा कि राजू ने इस बीच उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और शीर्ष अदालत ने 17 मई को सिकंदराबाद के सेना अस्पताल में उसकी मेडिकल जांच का निर्देश दिया है।

उच्च न्यायालय ने इस संबंध में देखा कि 16 मई को पारित आदेश उस दिन रात 11 बजे राज्य को दिया गया था और सुप्रीम कोर्ट का आदेश 17 मई की दोपहर के दौरान पारित किया गया।

उच्च न्यायालय ने आगे देखा कि अतिरिक्त महाधिवक्ता अदालत से कहा कि उसके द्वारा पारित आदेश शून्य और गैर-कानूनी है और यह आदेश पालन करने योग्य नहीं है।

अतिरिक्त महाधिवक्ता ने यह भी पूछा कि क्या रात में जेल के दरवाजे खोलने चाहिए और उन्हें (राजू) को अस्पताल में स्थानांतरित करना चाहिए क्योंकि रात 11 बजे ही आदेश प्राप्त हो गया था।

उच्च न्यायालय ने देखा कि अतिरिक्त महाधिवक्ता ने आदेश का पालन न करने के तीन कारणों का हवाला दिया;

(i) यह एक गैर-कानूनी, शून्य आदेश है।

(ii) रात 11 बजे जेल के दरवाजे नहीं खोला जा सकता।

(iii) आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

उच्च न्यायालय ने कहा कि इनमें से कोई भी निर्देशों का पालन न करने को उचित ठहराने का कारण नहीं हो सकता है।

हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि,

"इनमें से कोई भी कारण प्रथम दृष्टया इस अदालत के आदेश का पालन नहीं करने का आधार नहीं है। मजिस्ट्रेट के आदेश दिनांक 15.05.2021 या इस अदालत के आदेश दिनांक 16.05.2021 को अब पलटा या संशोधित नहीं किया गया है। प्रतिवादी इस अदालत द्वारा पारित आदेशों पर अपील में नहीं बैठ सकते हैं और यह तय नहीं कर सकते हैं कि यह एक गैर-कानूनी आदेश है। जब इश अदालत द्वारा एक आदेश पारित किया जाता है और उस आदेश को तब तक पलटा नहीं जा सकता है तब तक प्रतिवादियों के पास इसे लागू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।"

न्यायमूर्ति ललिता कन्नेगती आदेश में आगे कहा कि,

"मामले में जहां आरोपी पुलिस हिरासत में दुर्व्यवहार की शिकायत करता है और जब यह कहता है कि वह चलने की स्थिति में नहीं है तब अदालत ने प्रतिवादियों को मजिस्ट्रेट के आदेश को तुरंत लागू करने का निर्देश दिया। प्रतिवादियों को तुरंत शब्द का अर्थ समझना चाहिए। तर्क के लिए भी आदेश को रात 11.00 बजे सूचित किया गया था और फिर भी प्रतिवादी इसे लागू नहीं कर सके, जबिक प्रतिवादी के पास सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश पारित होने में दोपहर तक का समय था। सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष केवल जमानत याचिका दायर करना इस न्यायालय के आदेश को लागू नहीं करने का आधार नहीं हो सकता। उच्च न्यायालय के आदेश सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश पारित होने तक प्रतिवादियों पर बाध्यकारी हैं।"

अतिरिक्त महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि एक निजी अस्पताल में मेडिकल जांच के लिए मजिस्ट्रेट का आदेश सीआरपीसी की धारा 54 के तहत निर्धारित शक्तियों से ज्यादा था। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि रमेश अस्पताल से निष्पक्ष राय संभव नहीं है क्योंकि अस्पताल के मालिक के खिलाफ ही मामला दर्ज किया गया है।

अतिरिक्त महाधिवक्ता का आचरण प्रथम दृष्टया अवमानना

उच्च न्यायालय ने यह भी देखा कि अतिरिक्त महाधिवक्ता का आचरण तर्क देते समय बेशर्मी और अहंकार पूर्ण था और यह प्रथम दृष्टया अवमानना है।

कोर्ट ने कहा कि अतिरिक्त अधिवक्ता के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने और मामले को बार काउंसिल को अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए भेजने के लिए यह एक उपयुक्त मामला है। हालांकि, पीठ ने कहा कि वह अभी इस तरह की कार्रवाई न करके कोई उदारता दिखा रही है।

उच्च न्यायालय ने अतिरिक्त महाधिवक्ता को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि यह व्यवहार दोहराया जाता है तो यह अदालत आवश्यक कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगी।

न्यायमूर्ति सी प्रवीण कुमार ने न्यायमूर्ति ललिता कन्नगती द्वारा पारित मुख्य आदेश के पूरक के रूप में एक अलग आदेश लिखा।

न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार ने आदेश में कहा कि,

"मुझे लगता है कि अतिरिक्त महाधिवक्ता पी. सुधाकर रेड्डी को बहस के दौरान कुछ संयम दिखाना चाहिए था। कोर्ट रूप में संयम रखना बहस की पहचान है और शब्दों के चुनाव को भी एक विवादित मामले में मापा जाना चाहिए। अतिरिक्त महाधिवक्ता अदालत द्वारा सुनवाई के दौरान शांत और बेहतर शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था।"

सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को संयोग से कृष्णा राजू की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश सरकार के वकीलों ने स्वत: अवमानना के मामले में हाईकोर्ट की इस कार्रवाई का जिक्र किया।

आंध्र प्रदेश राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और वी गिरि ने अवमानना की कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस बीआर गवई की अवकाश पीठ से अनुरोध किया। हालांकि तब तक हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी अपलोड नहीं हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि वह केवल मौखिक उल्लेख के आधार पर कोई आदेश पारित नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सांसद कृष्णम राजू को जमानत दे दी थी, जिन्हें गुंटूर पुलिस ने 14 मई को उनके हैदराबाद आवास से गिरफ्तार किया था।

सांसद कृष्णम राजू के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि उन्हें उनकी पार्टी के नेता और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी के मुखर आलोचक होने के चलते निशाना बनाया जा रहा है।

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



Tags:    

Similar News