पश्चिम बंगाल में कथित हिंसा: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया, स्पॉट-इंक्वायरी करने के लिए फैक्ट-फाइंडिंग टीम गठित
पश्चिम बंगाल में 3 मई, 2021 को कथित तौर पर चुनाव के पश्चयात हुई हिंसा में कुछ व्यक्तियों की मृत्यु के संबंध में 4 मई, 2021 को विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित कई मीडिया रिपोर्टों पर ध्यान देते हुए, आज राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया है।
अपनी प्रेस विज्ञप्ति में, एनएचआरसी ने इस प्रकार कहा है:
"राजनीतिक कार्यकर्ता कथित तौर पर एक-दूसरे के साथ भिड़ गए, पार्टी कार्यालयों को आग लगा दी गई और कुछ घरों में तोड़फोड़ की गई और कीमती सामान भी लूट लिया गया। जिला प्रशासन और स्थानीय कानून एवं व्यवस्था प्रवर्तन एजेंसियों ने प्रभावित व्यक्तियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए कार्रवाई नहीं की। "
इसलिए, निर्दोष नागरिकों के जीवन के अधिकार के कथित उल्लंघन का इसे एक मामला मानते हुए, आयोग ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया है और अपने डीआईजी (जांच) से जांच के अधिकारियों की एक टीम गठित करने का अनुरोध किया है जो मौके की तथ्य-जांच पड़ताल करेगी।
टीम को जल्द से जल्द दो सप्ताह के भीतर, एक रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है।
इससे पहले, भाजपा नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख करते हुए पश्चिम बंगाल में 2 मई को चुनाव परिणामों के बाद हुई हिंसा की जांच द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा करवाने की मांग की है।
''पश्चिम बंगाल राज्य में टीएमसी के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई हिंसा, हत्या और बलात्कार के मामलों'' की जांच करवाने के अलावा आवेदन में यह भी मांग की गई है कि राज्य को निर्देश दिया जाए कि वह ''तात्कालिक आवेदन में उल्लिखित अपराधों के अपराधियों के खिलाफ पंजीकृत एफआईआर, उनकी गिरफ्तारी और इस संबंध में उठाए गए कदमों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट दायर करें।''
इसके अलावा, इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है कि पश्चिम बंगाल राज्य में संवैधानिक मशीनरी समाप्त हो गई है और राज्य में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की गई है।
एडवोकेट जे. साई दीपक द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल राज्य में कानून व्यवस्था की बहाली के लिए सशस्त्र बलों सहित केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करने का निर्देश दे।
यह याचिका एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन के लिए भी प्रार्थना करती है।