इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विटनस प्रोटेक्शन स्कीम 2018 के कार्यान्वयन के लिए उठाए गए कदमों पर यूपी सरकार से जवाब मांगा

Update: 2020-12-09 06:59 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को यूपी सरकार को उस जनहित याचिका (जनहित याचिका) पर नोटिस जारी किया है, जिसमें विट्नस प्रोटेक्शन स्कीम 2018 के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की गई है।

जस्टिस पंकज मिठल और जस्टिस सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने सरकार से कहा है कि वह इस मामले में दो हफ्ते के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करें, ताकि वह मामले की मैरिट के आधार पर आगे बढ़ सके।

पीठ ने सरकार को उन सभी पत्रों और दस्तावेजों को भी रिकॉर्ड में प्रस्तुत करने के लिए भी कहा है, जो एजीए के अनुसार उपरोक्त स्कीम के तत्काल और प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सभी जिला अधिकारियों को भेजे गए हैं।

याचिकाकर्ता, रणसमर फाउंडेशन (महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, 1950 के तहत एक फाउंडेशन) ने एडवोकेट आभा सिंह के माध्यम हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच को संपर्क किया और महेंद्र चावला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2019) 4 एससीसी 615, मामले मे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की है। इस फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार द्वारा तैयार की गई गवाह संरक्षण योजना, 2018 (विट्नस प्रोटेक्शन स्कीम 2018)को मंजूरी दे दी थी और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया गया था कि इस योजना को इसकी मूलभावना के साथ लागू किया जाए।

न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने आदेश दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 141/142 के तहत यह योजना 'कानून' होगी, जब तक कि इस विषय पर उपयुक्त संसदीय और/ या राज्य विधानों के कानून नहीं बन जाते हैं। यह भी निर्देश दिया था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा एक वर्ष की अवधि के भीतर वल्नरबल विट्नस डिपोजिसन काम्प्लेक्स भी तैयार किए जाएं, अर्थात वर्ष 2019 के अंत तक।

वर्तमान पीआईएल में, रणसमर फाउंडेशन ने प्रस्तुत किया कि उपरोक्त दिशा-निर्देश 'शायद ही कभी लागू किए जाते हैं' और हाथरस हत्या व उन्नाव बलात्कार मामले में जिस तरीके से गवाहों को 'डराया और प्रताड़ित किया गया है',यह उससे पूरी तरह स्पष्ट हो गया है।

उन्होंने गवाहों को डराने-धमकाने से बचाने के लिए शीर्ष न्यायालय द्वारा दिए गए निम्नलिखित प्रमुख उपायों पर जोर दिया और न्यायालय से आग्रह किया कि वे इसे लागू करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करेंः

-गवाहों की जीवन सुरक्षा के विषय में 'खतरा विश्लेषण रिपोर्ट' तैयार करने के लिए एक सक्षम प्राधिकरण की स्थापना,

-जिला न्यायालयों में विट्नस डिपोजिसन काम्प्लेक्स तैयार करना,

-गवाह संरक्षण निधि का निर्माण,

-गवाहों की सुरक्षा के लिए कई अन्य उपाय,

संगठन का प्रतिनिधित्व इसकी अध्यक्ष, अधिवक्ता आभा सिंह ने किया।

इस मामले में अब अगली सुनवाई 20 दिसम्बर 2020 को होगी।

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हाल ही में, मद्रास हाईकोर्ट ने गवाह संरक्षण योजना, 2018 को लागू न करने पर नाराजगी व्यक्त की थी। पीठ ने कहा था कि, '' वर्ष 2018 में गवाह संरक्षण योजना विकसित की गई थी, लेकिन अभी भी सिस्टम गवाहों को यह विश्वास नहीं दे पा रहा है कि वह खतरनाक अपराधियों के खिलाफ सच्चाई के साथ आगे आ सकें।''

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, गवाह संरक्षण योजना, 2018, गवाहों में यह विश्वास पैदा के लिए बनाई गई है ताकि वह कानून प्रवर्तन और न्यायिक अधिकारियों की सहायता करने के लिए आगे आ सकें। साथ ही उनको उनकी सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन दिया जा सकें और उन सभी उपायों की श्रृंखला की पहचान की जा सकें,जो गवाहों और उनके परिवार के सदस्यों को उनके जीवन, प्रतिष्ठा और संपत्ति को लेकर दी जा रही धमकियों से बचाने के लिए अपनाए जा सकते हैं।

पीठ ने माना कि योजना की धारा 7 निम्नलिखित सुरक्षा उपाय प्रदान करती हैः

-यह सुनिश्चित करना कि गवाह और अभियुक्त जांच या परीक्षण के दौरान आमने-सामने न आएं

-मेल और टेलीफोन कॉल की निगरानी

-गवाह के टेलीफोन नंबर को बदलने के लिए टेलीफोन कंपनी के साथ व्यवस्था करना या गवाह को एक असूचीबद्ध टेलीफोन नंबर उपलब्ध कराना

-गवाह के घर में सुरक्षा उपकरणों की स्थापना जैसे सुरक्षा द्वार, सीसीटीवी, अलार्म, बाड़ आदि लगाना

-बदले हुए नाम या वर्णमाला के साथ संदर्भित करके गवाह की पहचान की छुपाना

-गवाह के लिए आपातकालीन संपर्क व्यक्ति निर्धारित करना

- कड़ा संरक्षण व गवाह के घर के आसपास नियमित गश्त

-रिश्तेदार के घर या पास के शहर में निवास का अस्थायी परिवर्तन करना

-सुनवाई की तारीख पर सरकारी वाहन या राज्य वित्त पोषित वाहन से न्यायालय आने व वहां से वापिस जाने का प्रावधान करना और रक्षा करना

-बंद कैमरे में मामले की सुनवाई करना

-बयान रिकॉर्डिंग के दौरान गवाह को स्पोर्ट करने वाले व्यक्ति को मौजूद रहने की अनुमति देना

-विशेष रूप से डिजाइन किए गए संवेदनशील गवाह कोर्ट रूम का उपयोग करना, जिसमें लाइव वीडियो लिंक, वन वे मिरर और स्क्रीन आदि का प्रबंध करना। इसके अलावा गवाहों और अभियुक्तों के लिए अलग-अलग मार्ग की व्यवस्था करना। वहीं गवाह के चेहरे की छवि में बदलाव करने और ऑडियो फीड को संशोधित करने का विकल्प भी होना चाहिए ताकि गवाह की पहचान न हो सकें।

-स्थगन दिए बिना प्रतिदिन मामले की सुनवाई करते हुए बयान की शीघ्र रिकॉर्डिंग सुनिश्चित करना

-यदि वांछनीय हो तो विट्नस प्रोटेक्शन फंड से गवाह को समय-समय पर वित्तीय सहायता प्रदान करना ताकि उसे नए स्थान पर रखा जा सकें व उसकी जीविका या कोई नया पेशा शुरू करने में मदद दी जा सकें।

-आवश्यक माना जाने वाला कोई अन्य सुरक्षा उपाय करना।

सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के संबंध में 4 नवंबर, 2020 को दिए गए एक आदेश के तहत भी इस योजना के उचित कार्यान्वयन के निर्देश दिया था।

पीठ ने कहा था कि,'' गवाह संरक्षण योजना, 2018 को महेंद्र चावला बनाम भारत संघ (2019) 14 एससीसी 615 के मामले में इस अदालत द्वारा अनुमोदित किया गया था,जिसे केंद्र और राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में गवाहों की अतिसंवदेनशीलता को देखते हुए ट्रायल कोर्ट इस संबंध में किसी भी विशिष्ट आवेदन के बिना ही गवाहों को उक्त योजना के तहत संरक्षण देने पर विचार कर सकती है।''

इसके बाद, कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह दो सप्ताह के भीतर गवाह संरक्षण योजना, 2018 में निर्धारित सक्षम प्राधिकारी के गठन का आदेश जारी करें।

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा था कि,

''विशेष अदालत के समक्ष लंबित मामलों के संबंध में कोई विवाद नहीं हो सकता है क्योंकि वहां पर प्रमुख राजनीतिक व्यक्तित्व ही अभियुक्त होंगे। ऐसे में संभावना है कि अभियोजन पक्ष के कुछ गवाह असुरक्षित गवाह बन सकते हैं। इस दृष्टिकोण से हमारा मानना है कि विशेष अदालतों के समक्ष लंबित मामलों में अभियोजन पक्ष के गवाहों के संबंध में गवाह सुरक्षा योजना को लागू करना अति आवश्यक है।''

केस का शीर्षकः रैनसमर फाउंडेशन बनाम स्टेट ऑफ यूपी एंड अदर्स

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