बुलंदशहर हिरासत में मौत : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायिक जांच रिपोर्ट पर यूपी सरकार द्वारा की गई कार्रवाई का विवरण मांगा

Update: 2022-03-27 06:59 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव को अपना व्यक्तिगत हलफनामा दायर करने के लिए कहा है, जिसमें मुख्य सचिव को यह बताने के लिए कहा गया है कि बुलंदशहर हिरासत में मौत मामले में न्यायिक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए राज्य ने क्या कदम उठाए।

जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस रजनीश कुमार की खंडपीठ ने उक्त आदेश यह नोट करते हुए दिया कि न्यायिक जांच रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से पाया गया कि पीड़ित की पुलिस हिरासत में मृत्यु हुई और इसके लिए पुलिस कर्मी जिम्मेदार हैं।

हिरासत में मौत के शिकार पीड़ित की मां ने याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रार्थना के साथ हाईकोर्ट का रुख किया है। याचिका में यह प्रस्तुत किया गया कि उनके बेटे / पीड़ित को यातना देकर उसकी हत्या की गई, क्योंकि उसने अपनी मर्जी से अंतरजातीय विवाह किया था।

हाईकोर्ट ने 7 जनवरी को मामले पर सुनवाई करते हुए कहा था कि ऐसे मामलों में जहां आरोप हिरासत में मौत के संबंध में है, सीआरपीसी की धारा 176 (1) के तहत न्यायिक जांच को लंबे समय तक खींचने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि ये ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें सबसे अधिक संवेदनशीलता और चिंता के साथ देखा जाना चाहिए।

कोर्ट ने इस मामले में न्यायिक जांच रिपोर्ट भी मांगी थी। इस रिपोर्ट का कोर्ट ने 25 मार्च को अवलोकन किया और पाया कि 18 जनवरी 2022 को जिला मजिस्ट्रेट द्वारा रिपोर्ट को अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह को भेज दिया गया था। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

अदालत ने इसे देखते हुए शुरू में जोर देकर कहा कि हिरासत में मौत एक गंभीर मामला है, खासकर जब न्यायिक जांच में आरोप सही पाए जाते हैं और पुलिसकर्मी पीड़ित की मौत के लिए जिम्मेदार हैं। अदालत ने यह भी कहा कि कोई पोस्टमार्टम नहीं किया गया और पुलिसकर्मियों द्वारा शव का अंतिम संस्कार किया गया।

कोर्ट ने कहा,

" इस तरह के मामलों में हम उम्मीद करते हैं कि उच्च अधिकारी स्वतंत्रता से वंचित होने के प्रति संवेदनशील होंगे और तुरंत उचित कार्रवाई करने के लिए आगे बढ़ेंगे, जैसा कि कानून में जरूरी है। हम राज्य के बयान से आश्वस्त नहीं हैं कि यह मामला है पीड़ित द्वारा आत्महत्या का है, क्योंकि न्यायिक जांच एक अलग निष्कर्ष पर आई है। धारा 154 के तहत एक उपयुक्त रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए और जांच आगे बढ़नी चाहिए। मुआवजे के भुगतान के दावे पर भी विचार किया जाना चाहिए था।"

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ कोर्ट ने 19 अप्रैल तक गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा, जिसमें न्यायिक जांच रिपोर्ट के आलोक में राज्य द्वारा उठाए गए कदमों का खुलासा करने को कहा गया है।

गौरतलब है कि कोर्ट ने मामले में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर भी स्पष्टीकरण मांगा है। इसके साथ ही मामले को अब आगे की सुनवाई के लिए 19 अप्रैल को सूचीबद्ध किया गया है।

केस का शीर्षक - सुरेश देवी और अन्य बनाम यूपी राज्य और 13 अन्य

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