सीएए विरोध प्रदर्शन: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस कर्मियों पर पथराव करने के आरोपियों के खिलाफ दायर चार्जशीट रद्द करने से इनकार किया

Update: 2022-09-09 05:34 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में 2019 में सीएए के विरोध में प्रदर्शन (CAA Protest) के दौरान बिजनौर जिले में पुलिस कर्मियों पर पथराव करने के आरोपी पेशे से एक इंजीनियर सहित 5 लोगों के खिलाफ दायर चार्जशीट रद्द करने से इनकार किया।

जस्टिस समीर जैन की पीठ ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि प्रासंगिक समय के दौरान, सीआरपीसी की धारा 144 शहर में पहले से ही लागू था, एक भीड़, जिसमें कथित रूप से आवेदक शामिल थे, इकट्ठा हुई और पुलिस कर्मियों पर पथराव किया, जिससे एक कांस्टेबल घायल हो गया।

कोर्ट ने कहा कि चूंकि प्राथमिकी में प्रथम दृष्टया आवेदकों के खिलाफ संज्ञेय अपराधों का खुलासा हुआ है, इसलिए आवेदकों के खिलाफ लंबित आरोप पत्र को रद्द नहीं किया जा सकता है।

पूरा मामला

प्राथमिकी के अनुसार, 16 दिसंबर, 2019 को, नागरिकता संशोधन अधिनियम (बिल) के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए एक सार्वजनिक स्थान पर भारी भीड़ जमा हो गई और जब पुलिस वहां पहुंची और उन्हें सूचित किया कि शहर में पहले से ही सीआर.पी.सी धारा 144 लागू है, इसलिए, कोई जुलूस शुरू नहीं किया जा सकता है, तबी भीड़ ने अचानक पुलिस पर हमला शुरू कर दिया और उनके पथराव के कारण, एक पुलिस कर्मी, अर्थात् उमेश कुमार घायल हो गए।

इस मामले में जून 2020 में आवेदकों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 148, 332, 336, 353, 188, 427, 109, 120-B, 153A, 295A के तहत चार्जशीट दायर की गई थी और मामला वर्तमान में अतिरिक्त अदालत सिविल जज, सीनियर डिवीजन-प्रथम बिजनौर में लंबित है।

अब, याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय का रुख कर आरोप पत्र के आवेदकों को यह कहते हुए खारिज करने की मांग कर रहे हैं कि स्थानीय पुलिस के साथ उनकी पहले की दुश्मनी के कारण उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया है।

इसके बाद यह प्रस्तुत किया गया कि आवेदकों ने न तो पथराव किया और न ही किसी पुलिस कर्मी सहित किसी को कोई चोट पहुंचाई और प्राथमिकी के अनुसार भी आवेदक केवल प्रदर्शनकारियों के रूप में घटना स्थल पर एकत्र हुए थे।

यह आगे प्रस्तुत किया गया कि केवल आवेदक नं 1 एफआईआर में 1 और 2 के नाम हैं और जांच के दौरान अन्य आवेदकों के नाम सामने आए। वकील ने आगे कहा कि आवेदक नं 1 एक इंजीनियर है और वह कभी भी इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में शामिल नहीं हुआ और विरोध करना एक नागरिक का संवैधानिक अधिकार है और केवल शांतिपूर्ण आंदोलन का हिस्सा होने के कारण, किसी को भी किसी आपराधिक मामले में नहीं फंसाया जा सकता है।

हालांकि, अदालत ने आवेदकों के खिलाफ आरोप पत्र को रद्द करना उचित नहीं समझा और कहा कि प्राथमिकी प्रथम दृष्टया आवेदकों के खिलाफ संज्ञेय अपराधों का खुलासा करती है।

इस प्रकार याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल - सुआब और 5 अन्य बनाम यू.पी. राज्य और अन्य [आवेदन U/S 482 No. - 23361 ऑफ 2022]

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