इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्य मामले/अपील पर बहस करने के बजाय अभियुक्तों के लिए जमानत मांगने की वकीलों की प्रैक्टिस की निंदा की

Update: 2022-08-09 15:59 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील के लंबित रहने के दौरान वकीलों द्वारा अपील/मुख्य मामले पर बहस करने में अनिच्छा दिखाते हुए अभियुक्तों की जमानत अर्जी के लिए दबाव डालने की परिपाटी के प्रति अपनी निराशा व्यक्त की और इस प्रकार की प्रैक्टिस की निंदा की।

जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की पीठ ने 2016 में आरोपी द्वारा उसकी दोषसिद्धि के खिलाफ दायर एक अपील पर विचार करते हुए यह बात कही। इस सुनवाई में आरोपी की ओर से पेश वकील ने मुख्य मामले पर बहस करने के बजाय जमानत के लिए अधिक ज़ोर डाला।

अदालत ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि मामला अंतिम निपटान के लिए तैयार है, मामले में वकील दोषसिद्धि के गुण-दोष के आधार पर अपनी दलीलें देने के लिए तैयार नहीं हैं और इसके बजाय वह आरोपी की जमानत अर्जी की सुनवाई पर जोर दे रहे हैं।

अदालत ने कहा,

" मामला अंतिम निपटान के लिए तैयार है, बावजूद इसके कि इन मामलों में वकील दोषसिद्धि के गुण-दोष के आधार पर अपनी दलीलें देने के लिए तैयार नहीं हैं, बल्कि आरोपी के जमानत आवेदन पर सुनवाई करने पर जोर दे रहे हैं।"

संक्षेप में मामला

आरोपी अक्टूबर 2010 से जेल में है और अपराध की गंभीरता को देखते हुए पहले उसे ट्रायल के दौरान भी जमानत नहीं दी गई थी।

हाईकोर्ट के समक्ष, दूसरी जमानत याचिका दायर करते हुए आरोपी के वकील ने उसकी कारावास की लंबी अवधि के संबंध में तर्क दिया और सौदान सिंह बनाम पर उत्तर प्रदेश राज्य पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करने की मांग की।

हालांकि अदालत इससे प्रभावित नहीं हुई क्योंकि उसने नोट किया कि आरोपी का वकील पेपर बुक तैयार होने पर भी जमानत मांग रहा है और वकील मुख्य मामले पर बहस करने के लिए तैयार नहीं है।

न्यायालय ने इसी तरह के मामलों को भी ध्यान में रखा जो उसके सामने आए, जिनमें ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है कि सौदान सिंह के फैसले को लागू करने की मांग की जाए और वकील मुख्य मामले पर बहस करने से इनकार कर सकते हैं, हालांकि पेपर बुक तैयार है।

हाईकोर्ट ने इस प्रकार देख कर जमानत देने में असमर्थता व्यक्त की:

" इस तथ्य के बावजूद कि सभी पेपर बुक तैयार करने के लिए पहले के आदेश के बावजूद जमानत आवेदन दाखिल करने की प्रवृत्ति केवल पेंडेंसी बढ़ाएगी क्योंकि अभियुक्तों के लिए जमानत की मांग की जाती है और वकील बहस करने के लिए अनिच्छुक हैं। हाईकोर्ट के मामलों और सांख्यिकीय आंकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 1990 के मामले लंबित हैं जहां आरोपी जमानत पर हैं। यदि इस तरह के लंबित मामलों को सुलझाया नहीं गया और पेंडेंसी कम नहीं की गई तो बाद में भी ऐसी ही स्थिति बन जाएगी। इस मामले में वकील से मामले पर बहस करने का अनुरोध किया गया था उन्हें अवगत कराया गया था कि यह अदालत लागत लगाकर समझौता कर सकती है क्योंकि मामले में कोई नया आधार नहीं मांगा गया है, लेकिन इसमें सौदान सिंह (सुप्रा) का फैसला लागू करने का अनुरोध किया गया और आरोपी को जमानत देने की मांग की गई। हम इस प्रथा की निंदा करते हैं ...। "

इसके अलावा अदालत ने यह भी देखा कि वर्तमान जमानत आवेदन के लंबित रहने से यह पेंडिंग जमानत आवेदन की सूची में जुड़ जाती है, हालांकि यह बाद की जमानत याचिका है, जहां कैद की अवधि को छोड़कर कोई नया आधार नहीं दिया गया है।

कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि मुख्य मामले को गुण-दोष के आधार पर सुना जा सकता था, हालांकि, वकील के जमानत अर्जी पर बहस करने के आग्रह के कारण ऐसा नहीं हो सका और यह दर्शाता है कि वकील केवल जमानत पर बहस करना चाहता है।

न्यायालय ने जमानत अर्जी खारिज कर दी और मुख्य मामले/अपील को 17 अगस्त, 2022 को सूचीबद्ध किया।


केस टाइटल - उमेश गोसाई बनाम यूपी राज्य [आपराधिक अपील नंबर- 5926/2016]

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