इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश पत्र पर हस्ताक्षर न करने पर एक सिविल न्यायाधीश को कारण बताओ नोटिस जारी किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को सिविल जज (जूनियर डिवीजन), दक्षिण, लखनऊ के न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को एक कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि आदेश पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करने के लिए क्यों नहींउनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की जाए।
जस्टिस संगीता चंद्रा की खंडपीठ ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन), दक्षिण, लखनऊ, पीयूष भारती को लिस्टिंग की अगली तारीख यानी 28 मार्च, 2022 तक अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
संक्षेप में मामला
दया अग्रवाल (आवेदक / वादी) ने प्रतिवादी के खिलाफ एक संपत्ति के संबंध में वादी के शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप से प्रतिवादी को रोकने के लिए प्रार्थना करते हुए स्थायी निषेधाज्ञा के लिए एक मुकदमा दायर किया था।
विशेष रूप से यह प्रार्थना की गई कि प्रतिवादी को संपत्ति के किसी भी हिस्से को वाद में ध्वस्त करने से रोका जाए, जिससे वादी और उसके बच्चों का जीवन खतरे में पड़ जाए।
ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी को उक्त मुकदमे के साथ अस्थायी निषेधाज्ञा के आवेदन पर नोटिस जारी किया और एक कमीशन जारी किया गया। ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत आयोग की रिपोर्ट ने संकेत दिया कि प्रतिवादी द्वारा विचाराधीन संपत्ति की छत को ध्वस्त किया जा रहा है।
चूंकि कोई राहत-अंतरिम निषेधाज्ञा नहीं दी गई है और केवल नोटिस जारी किए गए थे, याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी द्वारा किए जा रहे विध्वंस की तस्वीरों के साथ सीपीसी की धारा 151 के तहत एक आवेदन दिया और यह प्रार्थना की गई कि अस्थायी निषेधाज्ञा के लिए आवेदन पर विचार करने के लिए निर्धारित तिथियां स्थगित कर दी जाएं।
हालांकि, निचली अदालत ने कोई आदेश पारित नहीं किया और आवेदन को फाइल पर रखने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता ने आदेश 39 नियम 1 सीपीसी के तहत याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन पर जल्द से जल्द निर्णय लेने के लिए निचली अदालत को निर्देश जारी करने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया और इस बीच विरोधी पक्ष को निर्देश दिया कि वह मामले में उल्लेखित संपत्ति को ध्वस्त न करे।
कोर्ट का आदेश
शुरुआत में कोर्ट ने ऑर्डर शीट के साइटेशन को पेपर बुक के पेज 67 के रूप में देखा और पाया कि ट्रायल कोर्ट ने चार तारीखों यानी 29.10.2021, 12.11.2021, 06.12.2021 और 03.01.2022 को लगातार ऑर्डर शीट पर हस्ताक्षर नहीं किये।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, प्रतिवादी द्वारा संबंधित संपत्ति को वाद के लिए ध्वस्त किया जा रहा है।
याचिका पर अंतरिम राहत देते हुए न्यायालय ने कहा,
"ऐसे मामलों में निचली अदालत को इस तथ्य का संज्ञान लेना चाहिए कि विचाराधीन संपत्ति को गिराए जाने की स्थिति में वादी को अपूरणीय क्षति होगी, जो उसमें किरायेदार के रूप में रह रहा है। ऐसे मामलों में अस्थायी निषेधाज्ञा के लिए आवेदन पर शीघ्र विचार करने के लिए ट्रायल कोर्ट के लिए उपयुक्त है। वह भी तब जब प्रतिवादी पहले ही सूट में पेश हो चुके हैं और अपना वकालतनामा दायर कर चुके हैं।"
इसी के साथ विरोधी पक्षकार नंबर दो को नोटिस जारी किया गया और याचिकाकर्ता को तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया। मामले को 28 मार्च, 2022 को सूचीबद्ध करते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि सूचीबद्ध होने की अगली तारीख तक वाद के पक्षकारों द्वारा यथास्थिति को बनाए रखा जाएगा।
केस का शीर्षक - दया अग्रवाल बनाम द कोर्ट ऑफ सिविल जज (जूनियर डिवीजन) लखनऊ और अन्य
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