इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के दिव्यांग कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु में वृद्धि की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने इस महीने की शुरुआत में दायर जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी। इस याचिका में राज्य सरकार के दिव्यांग कर्मचारियों के संबंध में सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता (रामकली सामाजिक उत्थान इवान जन कल्याण समिति) ने तर्क दिया कि चूंकि हरियाणा राज्य और पंजाब राज्य में कार्यरत दिव्यांग सरकारी कर्मचारियों को 62 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु का लाभ दिया गया है, जबकि यू.पी. विकलांग कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष है, इसलिए ऐसे कर्मचारी से यूपी में भेदभाव किया गया।
आगे यह तर्क दिया गया कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की योजना स्पष्ट रूप से कहती है कि दिव्यांग व्यक्तियों को सार्वजनिक रोजगार के मामले में किसी भी प्रकार के भेदभाव के अधीन नहीं किया जा सकता।
इसलिए, यह निवेदन किया गया कि हाईकोर्ट को यूपी राज्य को इसके दिव्यांग कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने के लिए निर्देश जारी करना चाहिए।
कोर्ट की टिप्पणियां
जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस रजनीश कुमार की पीठ ने शुरुआत में जोर देकर कहा कि अधिनियम, 2016 को समाज में अलग-अलग व्यक्तियों के सभी प्रकार के भेदभाव को प्रतिबंधित करने और समाज में उनकी प्रभावी भागीदारी और समावेश सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने के लिए बनाया गया। साथ ही ऐसा वातावरण बनाने के लिए जहां इस तरह के अलग-अलग व्यक्तियों के अंतर के लिए सम्मान होगा और अवसर की समानता आदि भी पैदा होगी।
इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, कोर्ट ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जहां याचिकाकर्ता यूपी राज्य में अलग-अलग सरकारी कर्मचारियों के साथ भेदभाव की ओर इशारा कर रहा है। यहां वह किसी भी तरह से अपने समकक्षों की तुलना में कमजोर नहीं हैं।
बल्कि, कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता ने हरियाणा राज्य और पंजाब राज्य में अपने समकक्षों की तुलना में यूपी राज्य में सेवानिवृत्ति की आयु के मामले में अलग-अलग सरकारी कर्मचारियों के साथ भेदभाव का अनुरोध किया है।
न्यायालय ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 को रेखांकित करने के लिए संदर्भित किया कि इसका अर्थ यह नहीं पढ़ा जा सकता कि सभी कानून सभी लोगों पर समान रूप से लागू होने चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 14 वर्गीकरण की अनुमति देता है। हालांकि, इस तरह के वर्गीकरण का कुछ उचित आधार होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि उचित वर्गीकरण वर्जित नहीं है।
अदालत ने आगे जोड़ा,
"हरियाणा राज्य और पंजाब राज्य द्वारा अपने अलग-अलग दिव्यांग कर्मचारियों के लिए निर्धारित सेवानिवृत्ति की आयु को तब तक लागू नहीं किया जा सकता है जब तक कि यूपी राज्य के अलग-अलग दिव्यांग कर्मचारियों का संबंध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 16 या दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 में निहित अधिकार के मामले में है। यूपी राज्य में अलग-अलग दिव्यांग कर्मचारी पंजाब और हरियाणा राज्य की सेवा करने वाले अलग-अलग दिव्यांग कर्मचारियों के अच्छी तरह से परिभाषित वर्ग से अलग वर्ग बनाते हैं।"
इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि वर्तमान मामले के तथ्यों में जहां तक उनकी सेवानिवृत्ति की आयु का संबंध है, उत्तर प्रदेश राज्य में अलग-अलग दिव्यांग कर्मचारियों के साथ विभेदक व्यवहार की दलील मान्य नहीं है।
केस टाइटल- रामकाली सामाजिक उत्थान इवान जन कल्याण समिति के माध्यम से सचिव सलाह मनोज कुमार यादव बनाम भारत संघ के माध्यम से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय नई दिल्ली और 2 अन्य
केस साइटेशन: लाइव लॉ (एबी) 387/2022
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