इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित मानहानिकारक न्यूज के लिए दैनिक जागरण के एडिटर-इन-चीफ के खिलाफ समन आदेश रद्द किया

Update: 2022-03-24 04:30 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने दैनिक जागरण (Dainik Jagran) के एडिटर-इन-चीफ संजय गुप्ता (Sanjay Gupta) के खिलाफ कथित मानहानिकारक न्यूज प्रकाशित पर मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा जारी समन आदेश को रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिजवी की खंडपीठ ने कहा कि एडिटर-इन-चीफ के खिलाफ विशेष आरोपों के अभाव में पद धारण करने वाले व्यक्ति को समन नहीं किया जा सकता है।

पूरा मामला

विरोधी पक्ष ने संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष एक शिकायत दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि अप्रैल 2016 में दैनिक जागरण के बरेली संस्करण में एक न्यूज प्रकाशित किया गया था, जिसमें शिकायतकर्ता के खिलाफ मानहानि और दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाए गए थे।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उस न्यूज में कहा गया था कि शिकायतकर्ता और उसके भाई के खिलाफ हत्या और मारपीट (मारपीट) के प्रयास के मामले में मामला दर्ज किया गया है, जबकि, वे प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति हैं और कोई आपराधिक मामला शामिल नहीं है।

आगे आरोप लगाया गया कि उक्त समाचार के माध्यम से ब्यूरो प्रमुख देवेन्द्र देवा, प्रधान संपादक संजय गुप्ता, मुद्रक एवं प्रकाशक तथा महाप्रबंधक अनुग्रह नारायण सिंह ने शिकायतकर्ता की बदनामी की।

शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 200 के तहत खुद का परीक्षण किया और धारा 202 सीआरपीसी के तहत अन्य गवाहों को पेश किया और उसके बाद, मजिस्ट्रेट ने आवेदक (गुप्ता) और तीन अन्य को धारा 500 आईपीसी के तहत अपराध के लिए मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया।

अदालत के समक्ष, आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि उक्त समाचार को एक प्राथमिकी के आधार पर प्रकाशित किया गया था जिसमें शिकायतकर्ता और अन्य को आरोपी के रूप में नामित किया गया था।

यह भी प्रस्तुत किया गया था कि आवेदक स्थानीय संस्करणों में दिन-प्रतिदिन की रिपोर्टिंग के लिए जिम्मेदार नहीं है और यह संपादकों और स्थानीय पत्रकारों के ज्ञान और पर्यवेक्षण के तहत किया जाता है।

न्यायालय की टिप्पणियां

कोर्ट ने कहा कि यह निर्विवाद है कि आवेदक जागरण प्रकाशन लिमिटेड का प्रधान संपादक है और शिकायत में उसके संबंध में कोई विशेष कथन नहीं है।

कोर्ट ने केएम मैथ्यू बनाम केरल राज्य 1991 लॉ सूट (एससी) 598 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों को ध्यान में रखा, जिसमें यह देखा गया था कि किसी समाचार पत्र के प्रधान संपादक पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है यदि उसके दोषी होने की शिकायत का कोई सकारात्मक तथ्य नहीं हैं।

इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि विवेक गोयनका बनाम महाराष्ट्र राज्य और एक अन्य 2007 सीआरआई एल जे 2194 के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि जिस व्यक्ति का नाम एडिटर या निवासी संपादक के रूप में छपा है, वह समाचार आइटम के प्रकाशन के लिए जिम्मेदार है और चेयरमैन या मैनेजिंग एडिटर प्रकाशित समाचार के लिए जिम्मेदार नहीं होगा।

इसे देखते हुए और वर्तमान मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने समन आदेश को रद्द कर दिया।

कोर्ट ने कहा,

"आवेदक के खिलाफ विशेष आरोपों की अनुपस्थिति में प्रधान संपादक होने के नाते कानूनी बार उसके खिलाफ लागू होगा। उसे समाचार पत्र के किसी भी संस्करण में प्रकाशित किसी भी समाचार के लिए जिम्मेदार और मुकदमा नहीं ठहराया जा सकता है। मजिस्ट्रेट मामले का कानूनी पहलू पर विचार करने में विफल रहा है और कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए समन आदेश पारित किया। इसलिए आवेदक के संबंध में समन आदेश टिकाऊ नहीं है और इसे रद्द किया जाता है।"

केस टाइटल - संजय गुप्ता बनाम यू.पी. राज्य एंड अन्य

केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ 133

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