इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकीलों के खिलाफ रुपए वसूलने के उद्देश्य से आईपीसी की धारा 376 और एससी / एसटी अधिनियम के तहत दर्ज कथित फर्ज़ी मामलों में सीबीआई जांच का आदेश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को वकीलों और अन्य लोगों के खिलाफ रुपए वसूलने के उद्देश्य से बलात्कार के अपराध और अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत दर्ज कथित तौर पर झूठे मामलों की जांच करने का निर्देश दिया।
जस्टिस गौतम चौधरी की पीठ ने जोर देकर कहा कि न्याय के हित में और वकीलों के हितों की रक्षा के लिए जो केवल इस आधार पर झूठे आरोपों के शिकार हैं कि वे आरोपी व्यक्तियों की ओर से केस लड़ रहे हैं, यह आवश्यक है कि मामले की सीबीआई जांच की जाए।
संक्षेप में मामला
अदालत कथित पीड़ित द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोपी (एक वकील) के खिलाफ मुकदमे का शीघ्र निपटान करने की मांग की गई थी। वकील पर आईपीसी की धारा 376-डी, धारा 506 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 (2) (वी) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
जब मामला 21 जुलाई, 2022 को सुनवाई के लिए आया तो आरोपी वकील की ओर से पेश वकील ने कहा कि हाईकोर्ट में वकीलों का एक गिरोह चल रहा है जो इस प्रकार के फर्जी मामलों में लोगों को फंसाता है और चार्जशीट पेश करने बाद उनसे रुपए ऐंठता है।
आगे यह निवेदन किया गया कि इस गिरोह के सदस्य लोगों को एससी/एसटी एक्ट मामले में फंसाते हैं और सरकार से पैसे प्राप्त कर आपस में रुपए बांटते हैं।
इस दलील को संज्ञान में लेते हुए कोर्ट ने आरोपी-विपक्षी पक्ष संख्या 2 के वकील भूपेंद्र पांडे को ऐसे मामलों की सूची पेश करने को कहा, जो वकीलों सहित निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज किए गए हैं।
ऐसे 51 मामलों की एक सूची न्यायालय के समक्ष पेश की गई और यह प्रस्तुत किया गया कि झूठी और तुच्छ एफआईआर यहां तक कि जांच के स्तर पर बेगुनाहों से रुपए वसूलने लके बहाने ग्राम प्रधान और अन्य निर्दोष ग्रामीणों के खिलाफ भी मामला दर्ज कराया गया है।
यह आगे प्रस्तुत किया गया कि 'गिरोह' के सदस्यों द्वारा अपनाई गई योजना यह है कि जब आरोपी व्यक्ति उन्हें रुपये देने से इनकार करते हैं तो वे अपने वकीलों को उनके मामले न लड़ने की धमकी देते हैं कि ऐसा न करने पर उन्हें भी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के तहत मामले और बलात्कार के मामले में फंसाया जाएगा।
अंत में पीठ को सूचित किया गया कि उक्त साजिश में जिला प्रयागराज के कई वकीलों को झूठे आरोप का शिकार बनाया गया है।
न्यायालय की टिप्पणियां
प्रस्तुतियां और उसमें लगाए गए आरोपों के साथ मामलों की सूची को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने इसे एक गंभीर मामला बताया और इसलिए, आरोपों के पूरे पहलू की जांच करने के लिए मामलों को सीबीआई को देना उचित समझा।
"मामले की गंभीरता को देखते हुए कि गिरोह इलाहाबाद हाईकोर्ट के साथ-साथ जिला न्यायालय के वकीलों के खिलाफ तुच्छ एफआईआर दर्ज करने के लिए काम कर रहा है, क्योंकि वे आरोपी व्यक्तियों की ओर से मामले लड़ रहे हैं और दूसरी बात यह कि मामला वापस लेने के लिए रुपये की मांग की गई।
वर्तमान मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि न्याय का गर्भपात हुआ है। इस प्रकार पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य (सुप्रा) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर विश्वास जताते हुए और न्याय के हित और वकीलों के हितों की रक्षा के लिए जो केवल इस आधार पर झूठे आरोपों के शिकार हैं कि वे आरोपी व्यक्तियों की ओर से केस लड़ रहे हैं, यह आवश्यक है कि मामले की सीबीआई जांच की जाए।"
नतीजतन कोर्ट ने आदेश दिया कि वर्तमान मामले और सूची में उल्लेखित मामलों की सीबीआई जांच दो महीने की अवधि के भीतर की जाए।
कोर्ट ने ज्ञान प्रकाश, सीबीआई के सीनियर एडवोकेट, असिस्टेंट संजय कुमार यादव को सुनवाई की अगली तारीख पर न्यायालय के समक्ष एक सीलबंद लिफाफे में प्रारंभिक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सीबीआई द्वारा प्रारंभिक जांच रिपोर्ट जमा करने तक किसी भी आरोपी व्यक्ति या किसी अन्य पीड़ित व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं होगी।