इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी को मूर्छित पति का अभिभावक बनाया; केंद्र सरकार को क़ानून बनाने की सलाह दी

Update: 2020-06-16 15:00 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को दिए गए एक महत्त्वपूर्ण फ़ैसले में एक पत्नी की इस याचिका को स्वीकार कर लिया कि उसे अपने पति का अभिभावक नियुक्त किया जाए जो मूर्छित अवस्था में है।

न्यायमूर्ति शशि कांत गुप्ता और न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने कहा कि इसके बावजूद कि किसी मूर्छित व्यक्ति के अभिभावक की नियुक्ति के बारे में कोई क़ानून नहीं है, लेकिन अदालत नागरिकों के क़ानूनी संरक्षक (parens patriae) होने के कारण वह याचिकाकर्ता के साथ न्याय करने के लिए बाध्य है।

अदालत ने कहा,

"हम इस बात को नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकते कि हमसे 'parens patriae' के रूप में अपने अधिकार के प्रयोग को कहा गया है। अदालत संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आदेश दे सकती है और दिए गए निर्देश न्याय के हित में है, जब किसी भी क़ानून में मूर्छित अवस्था में किसी व्यक्ति के बारे में कोई प्रावधान नहीं है।"

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से आग्रह किया था कि वह उसे अपने पति का अभिभावक नियुक्त करे ताकि वह उसके हितों उसके बैंक खातों, निवेश, साझेदारी के व्यवसाय आदि की रक्षा कर सके और अगर ज़रूरत पड़े तो अचल संपत्ति को बेचकर उससे मिलने वाली राशि को उसके इलाज पर खर्च कर सके।

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता का पति पिछले डेढ़ साल से मूर्छित अवस्था में है और डॉक्टर का कहना है कि वह मृत्यु होने तक इसी अवस्था में रहेगा।

इसी वजह से पत्नी ने पति का अभिभावक बनाए जाने का आग्रह अदालत से किया था। अदालत ने पाया कि इस तरह के व्यक्ति के लिए अभिभावक की नियुक्ति का कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है।

अदालत ने पाया कि अनुच्छेद 226 के तहत 'parens patriae' के सिद्धांत का सहारा लेते हुए अपने अधिकारों का प्रयोग कर याचिकाकर्ता को अपने पति का अभिभावक नियुक्त कर सकती है।

अदालत ने ऐसा करते हुए शोभा गोपालकृष्णन और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य (2019) एससीसी ऑनलाइन केआर 739 मामले में दिए गए फ़ैसले पर भरोसा किया। इसके अलावा वंदना त्यागी बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार और अन्य (2020) एससीसी ऑनलाइन डेल 32 के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले पर भी भरोसा किया गया।

खंडपीठ ने याचिका को स्वीकार कर लिया पर कहा कि इस अदालत के रजिस्ट्रार जनरल की अनुमति के बिना याचिकाकर्ता अपने पति की कोई अचल संपत्ति नहीं बेचेगी।

अदालत ने कहा कि शोभा गोपालकृष्णन के मामले में मूर्छित व्यक्ति के अभिभावक की नियुक्ति को लेकर केरल हाईकोर्ट ने जो दिशानिर्देश जारी किया है वह काफ़ी ठोस है। अदालत ने कहा कि इन दिशानिर्देशों को फ़्रेमवर्क के रूप में तब तक के लिए प्रयोग किया जा सकता है जब तक कि उत्तर प्रदेश इस बारे में क़ानून नहीं बना लेता।

अदालत ने राज्य में जिन दिशानिर्देशों को अस्थाई तौर पर लागू करने का निर्देश दिया वे संक्षेप में इस तरह से हैं -

"(i) जिस व्यक्ति को अभिभावक नियुक्त किया जाना है वह मूर्छित व्यक्ति की पूरी चल अचल संपत्तियों का ब्योरा पेश करेगा।

(ii) अदालत मूर्छित व्यक्ति की एक मेडिकल बोर्ड गठित कर जांच कराएगी।

(iii) अदालत एसडीएम/तहसीलदार से उन जानकारियों की जाँच कराएगा जो मूर्छित व्यक्ति की संपत्तियों के बारे में उस व्यक्ति ने पेश किए हैं जो अभिभावक बनना चाहता है।

(iv) सामान्य रूप से सिर्फ़ वही व्यक्ति अभिभावक नियुक्त हो सकता है जो पति या पत्नी है या उसका वारिस है जो मूर्छित अवस्था में है।

अभिभावक बनाए जाने की इच्छा रखनेवाला व्यक्ति मूर्छित व्यक्ति के सभी क़ानूनी वारिसों का खुलासा करेगा। अगर मूर्छित व्यक्ति का कोई क़ानूनी वारिस नहीं है तो फिर अदालत जीएनसीटीडी के समाज कल्याण बोर्ड को निर्देश देकर समाज कल्याण अधिकारी रैंक के किसी सरकारी अधिकारी को उसका अभिभावक नियुक्त करने को कह सकता है।

(v) सिर्फ़ वही व्यक्ति अभिभावक नियुक्त हो सकता है जो क़ानून के तहत इसके लायक़ है।

(vi) अगर मूर्छित व्यक्ति के किसी रिश्तेदार या दोस्त को लगता है कि जिसे अभिभावक नियुक्त किया गया है वह उस व्यक्ति के सर्वोत्तम हित में काम नहीं कर रहा है तो उस व्यक्ति को इस अभिभावक को हटाने के लिए अदालत से उचित निर्देश प्राप्त कारने का अधिकार है।

अदालत ने केंद्र सरकार से इस विषय को लेकर उचित क़ानून बानाने का सुझाव दिया।

अदालत ने कहा,

"रजिस्ट्री इस आदेश की एक प्रति भारत सरकार के क़ानून एवं न्याय मंत्रालय में सचिव को भेजे ताकि वह इस पर उचित क़दम उठा सके।"

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