इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैंग रेप के आरोपी सगे भाइयों को जमानत दी; पीड़िता ने मेडिकल जांच कराने से इनकार किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो सगे भाइयों को जमानत दी, जिन पर पीड़िता के साथ सामूहिक बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है।
कोर्ट ने देखा कि पीड़िता ने मेडिकल जांच कराने से इनकार किया है।
न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने दो सगे भाइयों / आरोपियों को जमानत देते हुए कहा,
"यह एक गंभीर मामला है जिसमें उपस्थित परिस्थितियों में आरोपों की प्रामाणिकता स्थापित करना आवश्यक है। बलात्कार के आरोप को प्रमाणित करने के लिए पीड़िता की ओर से खुद को चिकित्सकीय जांच करवाना अनिवार्य है। मेडिकल जांच कराना या न करना उसकी उसकी पसंद के अनुसार नहीं हो सकता।"
संक्षेप में मामला
कोर्ट विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अधिनियम)/अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, इलाहाबाद द्वारा पारित आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए दायर दो आपराधिक अपीलों से निपट रहा था, जिसमें अपीलकर्ताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 328, 343, 376-डी, 504, 506 और एस.सी./एस.टी. की धारा 3(2)V के तहत दर्ज मामले में जमानत आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों के अनुसार, पीड़िता का कुछ अज्ञात लोगों ने अपहरण किया, फिर बेहोश किया और उसके बाद उसे एक कमरे में बंद कर दिया। वे उसे शराब पिलाए और उसके साथ बार-बार दुर्व्यवहार करते रहे।
कथित तौर पर इसके साथ एक सप्ताह तक ऐसा होता रहा और इसके बाद, उन्होंने उसे रेलवे क्रॉसिंग के पास एक परित्यक्त स्थिति में छोड़ दिया। उसने अपने साथ सामूहिक बलात्कार करने के लिए सभी तीन नामित व्यक्तियों (सच्चे भाइयों) की पहचान की।
महत्वपूर्ण बात यह है कि अपीलकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि पीड़िता और उसकी मां को इस प्रकार की तुच्छ एफ.आई.आर. बनाने की आदत है।
कोर्ट की टिप्पणियां
कोर्ट ने देखा कि पीड़िता ने खुद का चिकित्सकीय जांच कराने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी विभिन्न घोषणाओं में स्पष्ट रूप से कहा है कि स्वतंत्र दस्तावेजी सबूत या अन्य विश्वास पैदा करने वाली सामग्री के बिना सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत पीड़ितों द्वारा दिए गए बयान पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए।
बेंच ने कहा कि तीन सगे भाइयों के खिलाफ इस तरह के गंभीर आरोप लगाने के बाद, यह तर्क दिया गया कि यह बहुत असंभव है कि तीन सगे भाई एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार कर सकते हैं, इस तथ्य के साथ कि पीड़िता ने कभी भी किसी भी चिकित्सा परीक्षा नहीं कराया ताकि इस सबूत की मदद से बलात्कार के आरोप को साबित किया जा सके।
अदालत ने अपील की अनुमति दी और उन्हें जमानत दे दी।
केस का शीर्षक - सुरेश यादव @ सुरेश कुमार यादव बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. एंड अन्य
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 16
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