डीएसएलएसए के साथ यौन अपराधों से संबंधित मामलों का डेटा साझा करने के लिए सभी जिला डीसीपी को संवेदनशील बनाया गया: दिल्ली पुलिस ने दिल्‍ली हाईकोर्ट को बताया

Update: 2022-01-25 10:26 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया है कि सभी जिलों के डीसीपी को संवेदनशील बनाया गया है और आवश्यक स्थायी आदेश जारी किए गए हैं ताकि यौन अपराधों से संबंधित मामलों के संबंध में संपूर्ण डेटा दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण डीएसएलएसए के साथ साझा किया जा सके।

जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की ओर से पीड़ितों को अंतरिम मुआवजा देने के उद्देश्य से डीएसएलएसए के यौन अपराधों से संबंधित एफआईआर की आपूर्ति की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की मांग के बाद उक्‍त जानकारी कोर्ट को दी गई है।

दिल्ली पुलिस द्वारा कोर्ट को सूचित किया गया कि सभी जिला डीसीपी ने हलफनामे में कहा है कि 2012 से 2018 तक के डेटा को पहले ही डीएसएलएसए के साथ साझा किया जा चुका है और कोई भी मामला छूटा नहीं है।

दूसरी ओर, डीएसएलएसए के सदस्य सचिव कंवल जीत अरोड़ा ने प्रस्तुत किया कि 11 जनवरी को एक संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें दिल्ली पुलिस के सभी अधिकारियों को आईपीसी की धारा 376 या 363 और पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर और अन्य मामले, जहां उक्त प्रावधान बाद में जोड़े गए हैं, उन्हें समय पर अग्रेषित करने के संबंध में जागरूक किया गया था।

उन्होंने बताया कि उक्त संवेदीकरण कार्यक्रम यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि योग्य मामलों में पीड़ितों को अंतरिम मुआवजा देने के लिए सभी आवश्यक कदम जल्द से जल्द उठाए जा सकें। आगे यह भी निवेदन किया गया कि भविष्य में भी संवेदीकरण कार्यक्रम जारी रहेंगे, जिसमें न केवल दिल्ली पुलिस के अधिकारी बल्कि दिल्ली महिला आयोग के काउंसलर भी शामिल होंगे।

अदालत ने मामले को आगली सुनवाई के लिए 16 फरवरी की तारीख तय करते हुए कहा , "प्रतिवादी/राज्य द्वारा सुनवाई की अगली तारीख से पहले अनुपालन हलफनामा दायर किया जाए, जिसकी अग्रिम प्रति पक्षकारों के विद्वान वकीलों को दी जाए।"

सुनवाई के अंतिम चरण के दौरान, यह ध्यान में रखते हुए कि डेटा साझा करने में इस तरह की चूक प्रकृति में आवर्ती है, अदालत ने यह सुनिश्चित करने के उपाय मांगे थे कि कोई भी पीड़ित बिना मुआवजे/परामर्श के न रहे।

डीएसएलएसए ने अदालत को सूचित किया था कि उसने जिला न्यायाधीश मुख्यालय को पत्र लिखा था, जिसमें पॉक्सो मामलों से निपटने वाले सभी विशेष न्यायाधीशों से यह रिकॉर्ड साझा करने के लिए कहा गया था कि उनके सामने कितने मामले हैं, जिनमें पीड़ितों को मुआवजा अभी तक नहीं दिया गया है।

इसके अलावा, उन्होंने कहा था कि एक पत्र अभियोजन महानिदेशक को संबोधित किया जाएगा, जिसमें उन्हें चार्जशीट दाखिल करने से पहले सभी अभियोजकों को यह जांचने के लिए कहा जाएगा कि पीड़ित को मुआवजा दिया गया है या नहीं।

इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि भविष्य में डेटा साझा करने में इस तरह की विसंगति को दोहराया ना जाए, अदालत को यह भी सूचित किया गया कि पुलिस आयुक्त, दिल्ली भी सभी जांच अधिकारियों को निर्देश देते हुए एक परिपत्र जारी करेगा कि जब भी एफआईआर में यौन अपराधों से संबंधित प्रावधानों को बाद के जरण में जोड़ा जाएगा तो उसकी एक प्रति डीएसएलएसए को भी भेजी जाएगी।

केस शीर्षक: उमेश बनाम राज्य (और अन्य जुड़े मामले)

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