कर्नाटक हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा 'प्राइड मार्च' की अनुमति देने से इनकार के बाद फ्रीडम पार्क तक विरोध प्रदर्शनों को सीमित करने का अपना आदेश स्पष्ट किया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 1 अगस्त का उसका आदेश विरोध प्रदर्शनों, मार्चों और धरनों को केवल बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क तक सीमित करने वाला जश्न मनाने वाले मार्चों पर लागू नहीं होत।
जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने पुलिस द्वारा 'गौरव मार्च' की अनुमति देने से इनकार करने के बाद स्पष्ट किया कि उसके अगस्त के आदेश में 'विरोध, मार्च और धरना' शब्दों को 'विरोध, विरोध मार्च और धरना' शब्दों से बदल दिया जाएगा।'
इस प्रकार कोर्ट ने कोलिशन फॉर सेक्स वर्कर्स एंड सेक्सुअलिटी माइनॉरिटी राइट्स द्वारा दायर आवेदन का निस्तारण किया, जो बेंगलुरु में वार्षिक नम्मा प्राइड मार्च आयोजित करता है। इसने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार विरोध, प्रदर्शन और विरोध मार्च (बेंगलुरु शहर) आदेश, 2021 के लाइसेंसिंग और विनियमन के तहत अनुमति मांगने के लिए दायर आवेदनों से निपटने के लिए स्वतंत्र है।
आवेदक की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आदित्य सोंधी ने तर्क दिया कि आवेदक स्वतः जनहित याचिका का पक्षकार नहीं है, जो वास्तव में फ्रीडम पार्क को छोड़कर बैंगलोर में कहीं भी विरोध, मार्च और धरना पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है। प्राइड मार्च LGBTQIA+समुदाय के सदस्यों और दुनिया भर में समानता और सम्मान के उनके अधिकारों का समर्थन करने वाले सभी लोगों द्वारा किया जाने वाला वार्षिक वॉक है।
उन्होंने कहा,
"पिछले 14 सालों से यह पदयात्रा बिना किसी कानून-व्यवस्था के शांतिपूर्ण तरीके से हो रही है। समुदाय के लिए यह विचार है कि वह बहिष्कार और अस्वीकृति के दैनिक अनुभव से एक कदम दूर हो और दुनिया को दिखाए कि LGBTGIQ+ होना गलत नहीं है। वास्तव में यह पहचान है, जिस पर गर्व किया जा सकता है और होना चाहिए।"
इसके अलावा, उन्होंने कहा,
"गौरव का विचार सामने आना है और LGBTQIA+ समुदाय और देश की विविधता को कम और उचित समय के लिए सार्वजनिक सड़कों पर चलकर मनाना है। चलने का कार्य आम जनता को समुदाय को देखने की अनुमति देता है, अपने सदस्यों के साथ बातचीत करें और बातचीत के माध्यम से समुदाय के बारे में जानें। जनता द्वारा देखे जाने की अनुमति के बिना एक स्थान तक सीमित रहना और समुदाय के बारे में सार्वजनिक जागरूकता पैदा करना, गौरव कार्यक्रम के आवश्यक उद्देश्य को ही पराजित करता है।
आवेदन में कहा गया कि 4 नवंबर को संगठन ने 27 नवंबर को होने वाले लाइसेंसिंग अथॉरिटी के जुलूस के लिए नम्मा प्राइड आयोजित करने की अनुमति मांगी गई। हाईकोर्ट का अंतरिम आदेश तीन मार्च को जारी किया गया।
यह प्रस्तुत किया गया कि हाईकोर्ट का अंतिम आदेश विरोध, मार्च और धरने तक सीमित है। संविधान अनुच्छेद 19 (1) (ए) और (बी) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांति से इकट्ठा होने के अधिकार की गारंटी देता है और जारी किया गया पुलिस नोटिस उसी का घोर उल्लंघन है।
केस टाइटल: सू-मोटू बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: WP 5781/2021
सूरत: आवेदक के लिए एडवोकेट मोहम्मद अफीफ और सीनियर एडवोकेट आदित्य सोंधी। प्रतिवादी संख्या 1 से 4 के लिए अतिरिक्त सरकारी वकील प्रथिमा होनापुरा।