सरकारी अधिवक्ता के कार्यालय का प्रशासन जवाबदेही के सिद्धांतों पर चलता है, तुष्टिकरण से नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2021-08-02 07:23 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सरकारी अधिवक्ता के कार्यालय का प्रशासन जवाबदेही के सिद्धांतों पर चलता है, तुष्टिकरण से नहीं। कोर्ट ने देखा कि न्यायालय द्वारा पारित आदेशों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है,

न्यायमूर्ति अजय भनोट की पीठ एक ऐसे मामले से निपट रही थी, जिसमें अदालत के निर्देशानुसार राज्य सरकार हलफनामा पेश करने में विफलता रही और अदालत ने कहा कि राज्य के वकीलों द्वारा लापरवाही दिखाई गई है।

न्यायालय को यह सूचित किया गया कि राज्य के संबंधित वकीलों ने स्पष्ट रूप से पुलिस अधिकारियों को न्यायालय द्वारा पारित आदेश के बारे में सूचित नहीं किया था और पूर्वोक्त के कारण न्यायालय ने कहा कि सीनियर पुलिस अधिकारियों को बिना किसी गलती के समन जारी किया जाए।

न्यायालय ने इस पृष्ठभूमि में इस प्रकार टिप्पणी की कि,

"जाहिर तौर पर इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। सरकारी अधिवक्ता के कार्यालय का प्रशासन जवाबदेही के सिद्धांतों पर चलता है, तुष्टिकरण से नहीं। इस स्थिति की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह न्यायालय किसी को भी बुलाने के लिए अनिच्छुक है। हालांकि, रिकॉर्ड की दृष्टि से जब न्यायालय को पता चलता है कि न्यायालय के आदेशों का राज्य के अधिकारियों द्वारा अत्यधिक अवहेलना के साथ व्यवहार किया जा रहा है और राज्य के वकील इसका हिसाब नहीं दे सकते हैं तो अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से बुलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यह स्पष्ट नहीं है कि राज्य के अधिकारी इस मामले में पीछे क्यों हट रहे हैं।"

इसके अलावा विधि परामर्शी, उत्तर प्रदेश सरकार को अदालत द्वारा पारित आदेशों का पालन करने में विफलता के संबंध में कारण बताने के लिए कहा गया है। विधि परामर्शी, उत्तर प्रदेश राज्य को 2 अगस्त, 2021 को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया है।

केस का शीर्षक - हसाए @ हसना वए एंड 11 अन्य बनाम यू.पी. राज्य एंड अन्य

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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