किसी व्यक्ति को कोरे कागज पर दस्तखत के लिए मजबूर करना जालसाजी नहीं : केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी अन्य व्यक्ति को कोरे कागज पर दस्तखत करने के लिए मजबूर करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 468 के तहत दंड के प्रावधान वाले फर्जी दस्तावेज बनाने के अपराध के दायरे में नहीं आता।
इस मामले में आरोपी-अपीलकर्ता के खिलाफ आरोपों में से एक यह था कि उसने एक व्यक्ति को 50 रुपये के स्टाम्प पेपर और राजस्व टिकट चिपके तीन खाली कागजों पर हस्ताक्षर करने को मजबूर किया था। इसलिए, कोर्ट के समक्ष विचार करने वाला प्रश्न था कि क्या दबाव में आकर किसी कोरे कागज पर हस्ताक्षर लेना फर्जी दस्तावेज तैयार कराना माना जायेगा?
न्यायमूर्ति वी जी अरुण ने भारतीय दंड संहिता में जालसाजी से संबंधित धाराएं 463, 464 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा :
" इस धारा का पहला और दूसरा खंड तब लागू होता है जब अभियुक्त खुद ही जालसाजी करता है, जबकि तीसरे के तहत, आरोपी किसी अन्य व्यक्ति को बेईमानी या छल से कोई काम करवाता है। लेकिन तीसरे खंड के तहत भी, कोरे कागज पर किसी अन्य व्यक्ति को हस्ताक्षर करने पर मजबूर करना फर्जी दस्तावेज बनवाने के अपराध के दायरे में नहीं आता।"
एक अन्य विचारणीय मुद्दा यह भी था कि क्या केवल हस्ताक्षर वाले कोरे कागज को 'दस्तावेज' की संज्ञा दी जा सकती है? आईपीसी की धारा 29 के तहत 'डॉक्यूमेंट' शब्द को परिभाषित किया गया है, जिसके तहत किसी भी विषयवस्तु के बारे में वर्णों, अंकों या निशानों अथवा इनमें से एक से अधिक तरीकों से व्याख्यायित या वर्णित किया जाता है, जिसे उस मामले के साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल करने का इरादा हो या इस्तेमाल किया जा सकता हो। भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत भी इसकी परिभाषा समान ही है।
कोर्ट ने कहा :-
" किसी चीज को दस्तावेज कहने के लिए परिभाषाओं के अनुसार, उस चीज पर वर्णों, अंकों या चिह्नों के तौर पर कुछ लिखा जाना होता है, और ये विषयवस्तु उस चीज के साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल करने के इरादे से होना चाहिए। यह संदेहास्पद है कि क्या कोरे कागज पर लिया गया हस्ताक्षर किसी विषयवस्तु को साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल के इरादे से अभिव्यक्त या वर्णित किया हुआ कहा जा सकता है और परिणामस्वरूप इसे आईपीसी की धारा के तहत दस्तावेज के दायरे में लाया जा सकता है?"
कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए कहा कि आईपीसी की धाराओं 365, 395 और 468 के तहत अपीलकर्ता की सजा को कानूनी रूप से बरकरार नहीं रखा जा सकता है।
केस का नाम : निसार बनाम केरल सरकार
केस नं.: क्रिमिनल अपील संख्या 481/2008
कोरम : न्यायमूर्ति वी जी अरुण
वकील : आर टी प्रदीप, वी. विजुलाल
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