'आरोपी जमानदार पेश करने में असफल रहा': दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत की शर्त को निजी बॉन्ड में संशोधित किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानदार पेश करने की शर्त की जगह निजी बॉन्ड जमा करने के रूप में जमानत की शर्त को संशोधित किया है। दरअसल आरोपी एक मजदूर है और वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण जमानदार पेश करने में असफल रहा था।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन में, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 440 के साथ पठित करते हुए नियमित जमानत आदेश को इस हद तक संशोधित करने का निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को केवल एक 5000 रूपये का निजी बॉन्ड प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा किया जाए।
याचिकाकर्ता को 24 अप्रैल, 2021 को भारतीय दंड संहिता की धारा 379,356, 34 के तहत दर्ज प्राथमिकी संख्या 305/2020 में नियमित जमानत दी गई थी। हालांकि, इसका लाभ नहीं उठाया जा सका क्योंकि वह एक शर्त पूरा करने में असफल रहा था। इसमें याचिकाकर्ता को 5000 रूपये के एक निजी बॉन्ड भरने और इतनी ही राशि का एक जमानतदार पेश करने की शर्त पर रिहा करने का आदेश दिया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता मजदूर होने के कारण इसे प्रस्तुत करने में असमर्थ है। इसके अलावा याचिकाकर्ता को आदेश दिनांक 28.02.2020 और 26.02.2020 के तहत दो अन्य प्राथमिकी में भी जमानत दी गई थी। उसने इन दो प्राथमिकी में ज़मानतदार पेश करने की शर्त को पूरा किया था, लेकिन उसके द्वारा अपेक्षित राशि के लिए एक तीसरा ज़मानतदार पेश करने की शर्त पूरी नहीं की जा सकी और परिणामस्वरूप वह जेल में ही है।
न्यायालय ने उपरोक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए आदेश को इस हद तक संशोधित किया कि याचिकाकर्ता को अन्य शर्तों के साथ 5000 रुपये का केवल एक निजी बॉन्ड भरने और इससे संबंधित जेल अधीक्षक/ड्यूटी एम.एम की संतुष्टि के आधार पर जमानत दी जाए।