अभियुक्तों ने पूरी घटना को दबाया जैसे वे त्रासदी की प्रतीक्षा कर रहे हों : गुजरात हाईकोर्ट ने औद्योगिक दुर्घटना के लिए कारखाने के प्रबंधकों को माना प्रथम दृष्टया आईपीसी की धारा 304 का दोषी, अग्रिम ज़मानत देने से इनकार
''अगर कोई आज भी भोपाल का दौरा करता है, तो उस त्रासदी की दहशत आज भी मानव विवेक को हिला देती है।'' मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट ने दिसम्बर 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी का संदर्भ देते हुए राज्य के एक रासायनिक कारखाने के आरोपी प्रबंधकीय कर्मचारियों को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।
जून माह में इस कारखाने में हुई एक औद्योगिक दुर्घटना के चलते 10 श्रमिकों की मृत्यु हो गई थी और 77 अन्य घायल हो गए थे।
पीठ ने मई माह में एल.जी.पॉलिमर केमिकल प्लांट, विशाखापत्तनम ,आंध्र प्रदेश में हुई औद्योगिक दुर्घटना का भी उल्लेख किया और कहा कि इस घटना से पता चलता है कि कैसे ''गैस रासायनिक संयंत्र के आसपास के स्थानों में तेजी से फैलती है''। साथ ही यह भी कहा कि कैैसे '' लोग इस गैस और इसकी तीखी गंध को सहन करने में असमर्थ होने के कारण सड़कों पर गिर गए थे,इसकी फुटेज सभी ने देखी थी।''
गुजरात हाईकोर्ट ने अभियुक्त कर्मचारियों को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया, जिसमें प्रोडक्शन इंचार्ज, यूनिट हेड, प्लांट और लिक्विड स्टोरेज के प्रमुख, अग्नि और सुरक्षा प्रमुख शामिल हैं। कोर्ट ने इन सभी को प्रथम दृष्टया गैर इरादतन हत्या के मामले में दोषी माना है।
कोर्ट ने कहा कि कंपनी रासायनिक प्रसंस्करण के व्यवसाय में लगी हुई है और आवेदक, ''ऐसे खतरनाक रसायनों से निपटने के लिए विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता की आवश्यकता वाले विभिन्न तकनीकी पदों पर सेवारत हैं।'' इसलिए रासायनिक प्रतिक्रिया के प्रभाव को बेअसर करने के लिए उनकी तरफ से ''तत्काल सुधारात्मक उपाय करने की आवश्यकता थी।''
न्यायमूर्ति गीता गोपी ने कहा कि कोई सुधारात्मक उपाय करने के बजाय, आवेदक लगभग 24 घंटें तक इस गलत कार्य को दबा कर बैठे रहे।
यह दुर्घटना टैंकरों में निहित दो अलग-अलग रसायनों को एक गलत भंडारण कक्ष में हस्तांतरण करने के कारण हुई है। अदालत ने कहा कि आवेदक इन तरल पदार्थों के रासायनिक चरित्र से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। साथ ही उनको यह भी पता था कि दो रसायनों के मिश्रण से उत्पन्न होने वाली एक रासायनिक प्रतिक्रिया के क्या परिणाम होंगे। इसलिए रसायनों के गलत तरीके से हस्तांतरण होने की सूचना मिलने के बाद अगर वह तुरंत आवश्यक सुधारात्मक उपाय कर लेते तो शायद यह त्रासदी टल सकती थी और श्रमिकों की जान बचाई जा सकती थी।
इसे ''मामले के सबसे भयावह पहलू'' का नाम देते हुए, पीठ ने कहा कि 2 जून 2020 को दिन में लगभग 12 बजे, कंपनी के कारखाने के परिसर में दो टैंकर पहुंचे थे। एक टैंकर में एनए था और जबकि दूसरे में डीएमएस था। लगभग 18 टन एनए और 25 टन डीएमएस को उनमें से उतारा जा रहा था। इसी दौरान गलती से, टैंक के इन-लेट पाइप बदल गए और गलत भंडारण कक्षों से जुड़ गए थे। इस कारण रसायन गलत भंडारण कक्षों में स्थानांतरित हो गए थे।
पीठ ने अपना दुख जाहिर करते हुए कहा कि '
'2 जून 2020 को यह तथ्य आवेदकों के ध्यान में करीब 14ः30 बजे लाया गया। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि उसके बाद भी रासायनिक प्रतिक्रिया को बेअसर करने के लिए आवश्यक सुधारात्मक उपाय करने के बजाय आवेदकों ने कुछ नहीं किया और पूरी घटना को दबाकर बैठे रहे। शायद आवेदक इस त्रासदी की प्रतीक्षा कर रहे थे।''
पीठ ने कहा कि 3 जून 2020 को लगभग 12बजे नाइट्रिक एसिड युक्त भंडारण कक्ष 'बी' में एक रासायनिक प्रतिक्रिया के कारण विस्फोट हुआ। विस्फोट के परिणामस्वरूप, छह श्रमिकों की मौके पर ही मौत हो गई और चार श्रमिकों की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। कुल मिलाकर 10 लोगों की मौत हो गई और करीब 77 मजदूर घायल हो गए।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में बताया कि डीएमएस एक ऑयली तरल है जिसका उपयोग अल्काइलेटिंग एजेंट के रूप में बड़े पैमाने पर किया जाता है और यह मनुष्य के लिए अत्यधिक विषैला होता है। विशेष रूप से श्वसन तंत्र पर इसका तीव्र प्रभाव होता है। जबकि एनए एक रंगहीन, भाप जैसा और अत्यधिक संक्षारक तरल होता है। यह भी विषाक्त है और गंभीर जलन पैदा कर सकता है।
पीठ ने कहा कि
''इस प्रकार, यह एक स्पष्ट तथ्य है कि दो रसायन - डीएमएस और एनए, जिनके साथ आवेदक काम कर रहे थे, अत्यधिक विषाक्त पदार्थ हैं।''
न्यायालय के समक्ष आवेदकों ने आईपीसी की धारा 304, 337, 338, 203, 285, 286, 287,427 और 114 के तहत दंडनीय अपराधों के संबंध में दर्ज प्राथमिकी में अग्रिम जमानत दिए जाने की मांग की थी।