"अभियुक्त 'जांच करने के अनुभवी लोग हैं" : गुजरात हाईकोर्ट ने हिरासत में मौत के मामले की जांच स्थानीय पुलिस से सीआईडी को ट्रांंसफर की
''न्यायालय इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं हो सकता है कि वह उन व्यक्तियों के मामले पर विचार कर रहा है जो स्वयं जांच के क्षेत्र के अनुभवी व्यक्ति हैं और इस प्रक्रिया को ओवररिएक्ट करने की कला में भी महारत हासिल कर चुके होंगे।''
यह टिप्पणी करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार को वडोदरा कस्टोडियल डेथ केस की जांच सीआईडी क्राइम को स्थानांतरित कर दी है।
जस्टिस सोनिया गोकानी और एन वी अंजारिया की पीठ अहमदाबाद के एक व्यक्ति की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में कहा गया था कि उसके पिता 65 वर्षीय शेख बाबू शेख ऊर्फ रहीम शेख वाजिर 10 दिसम्बर 2019 से लापता हैं।
पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अपराधी पुलिस कर्मी कानून की प्रक्रिया का सामना करने के लिए उपलब्ध नहीं हो रहे हैं,जबकि उनके खिलाफ पहले से ही इस अदालत द्वारा जारी किए गए विस्तृत निर्देशों का पालन करते हुए कार्यवाही शुरू कर दी गई है। वहीं ''चौंकाने वाले विवरण'' यह हैं कि इतने दिन और महीने बीत जाने के बाद भी कैसे उस गुमशुदा व्यक्ति के बारे में कोई सुराग नहीं मिला है, जिसके बारे में लगातार पूछताछ की गई है।
बेंच ने कहा कि अदालत द्वारा पारित किए गए कई आदेशों के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई थी और उसे भी एक महीना बीत चुका है। प्राथमिकी दर्ज करने के बाद कुछ अधिकारियों ने इस मामले की जांच की। परंतु अभी तक गुमशुदा की तलाश की नहीं हो पाई है और न ही आज तक यह पता चल पाया है कि वह कहां है।
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, ''काफी समय पहले ही व्यतीत हो चुका है। ऐसे में और अधिक समय बीता तो सबूत नष्ट होने की आशंका है।''
पीठ ने इस तथ्य की सराहना की है कि अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, वडोदरा शहर ने इस मामले की जांच को संभाल लिया था और वो तत्काल मामले में शिकायतकर्ता भी हैं। इतना ही नहीं वह एफआईआर में संशोधन करके आईपीसी की धारा 302 को जोड़ने के लिए सहमत भी हो गए थे। जबकि पूर्व में एफआईआर धारा 304 के तहत दर्ज की गई थी।
हालाँकि, पीठ ने साथ ही यह भी कहा कि ''उनकी तरफ से प्रावधान को जोड़ने के लिए सहमति देना ,उनके कर्तव्य का पर्याप्त निर्वहन नहीं है।''
पीठ ने कहा कि ''कानून के न्यायालय के समक्ष वैध सबूतों की आवश्यकता होगी।''
याचिकाकर्ता ने जांच एजेंसी को बदलने की प्रार्थना पर जोर दिया था। तर्क दिया गया था कि आज तक एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है, जबकि सभी आरोपी पुलिस अधिकारी हैं।
पीठ ने कहा कि
''उनकी शिकायत यह है कि अभी तक गुमशुदा मिला नहीं है और हालांकि आईपीसी की धारा 302 को जोड़ भी दिया गया है परंतु अभी तक इस मामले में कोई स्पष्टता नहीं है।''
इस बात पर भी जोर दिया गया कि एक तरफ आरोपी जांच अधिकारी के समक्ष पेश नहीं हो रहे हैं और दूसरी और उन्होंने इस मामले को खत्म करने की मांग करते हुए अदालत के समक्ष एक याचिका दायर की है। यह तथ्य खुद ही ''मिलीभगत'' को दर्शा रहा है। इसलिए जांच एजेंसी को बदलने की बहुत आवश्यकता है।
बुधवार को पीठ ने कहा कि जांच एजेंसी के लिए यह ''अति आवश्यक'' है कि वह ''सभी महत्वपूर्ण सबूतों को इकट्ठा करके मामले की सच्चाई तक पहुंचे और यह भी सुनिश्चित करें कि यह सबूत नष्ट न हो पाएं।''
इस प्रकार, कोर्ट ने वडोदरा पुलिस को इस मामले में कुछ और समय की अनुमति देने के बजाय जांच एजेंसी को बदलने के अनुरोध को स्वीकार कर लिया क्योंकि इससे ''महत्वपूर्ण साक्ष्यों का नुकसान हो सकता था।''
हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि घटना वाले दिन उसके पिता अपनी साइकिल लेने के लिए वडोदरा रेलवे स्टेशन गए थे (जिस पर वह अपने कपड़े का खुदरा व्यापार करते थे) और वहाँ से उन्हें पूछताछ के लिए फतेहगंज पुलिस स्टेशन ले जाया गया था। उसके बाद से किसी ने उनको नहीं देखा है।
मामले पर संज्ञान लेने के बाद खंडपीठ ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, वडोदरा शहर की रिपोर्ट में पाया कि गुमशुदा को एक मामले में पूछताछ के लिए फतेहगंज पुलिस स्टेशन में 10 दिसम्बर 2019 को बुलाया गया था।
फतेहगंज पुलिस स्टेशन का एक निगरानी दस्ता उसे सुबह 11.30 बजे पुलिस स्टेशन लेकर गया था। थाने की डायरी में नोट करने के बाद उसे शाम को 17.25 बजे थाने से बाहर जाने की अनुमति दी गई थी। परंतु इस रिपोर्ट के अनुसार दस दिसम्बर 2019 को थाने से निकलने के बाद यह व्यक्ति कहां गया,इस बारे में कुछ नहीं पता चला।
परिणामस्वरूप, पीठ ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया था कि वह इस अदालत के समक्ष गुमशुदा को लाने के लिए हर संभव प्रयास करें।
इसके बाद, एडीशनल पुलिस कमीश्नर के निर्देश पर 6 जुलाई 2020 को आईपीसी की धारा 304, 201, 203, 204 और 34 के तहत दंडनीय अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी। प्रथम सूचना रिपोर्ट के तहत कोर्ट को बताया कि गुमशुदा अभी तक नहीं मिल पाया है। वहीं इस रिपोर्ट में दिए गए सभी तथ्य यह संकेत कर रहे थे कि गुमशुदा अब जिंदा नहीं है।
पीठ ने कहा कि इस मामले में जिन लोगों को अभियुक्त के रूप में आरोपित किया गया है, वे सभी फरार हैं और उन्हें गिरफ्तार करने के प्रयास जारी हैं। इसलिए इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को संशोधित करने की आवश्यकता है और आईपीसी की धारा 304 के बजाय 302 के प्रावधान जोड़ने की जरूरत है।