चार्जशीट के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल ना होने के कारण आरोपी डिफॉल्ट जमानत का हकदार नहीं: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि अगर पुलिस ने आरोप पत्र के साथ एफएसएल रिपोर्ट दर्ज नहीं की है तो एक अभियुक्त डिफॉल्ट जमानत का हकदार नहीं होगा।
जस्टिस समीर जे दवे की पीठ ने कहा कि एफएसएल रिपोर्ट संलग्न किए बिना दायर की गई चार्जशीट को दोषपूर्ण या अधूरा नहीं कहा जा सकता है और इस प्रकार, एफएसएल रिपोर्ट दाखिल न करने से अभियुक्त को डिफॉल्ट जमानत पाने का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं मिलता है।
मामला
अदालत एनडीपीएस एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले में एक अभियुक्त की ओर जमानत याचिका पर विचार कर रही थी। उसे कथित रूप से 29 अक्टूबर को गांजा के साथ गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद, अपराध की जांच शुरू हुई और 1 नवंबर, 2019 को एफएसएल भेजा गया।
जांच एजेंसी ने एफएसएल रिपोर्ट के बिना 24 दिसंबर, 2019 को चार्जशीट दाखिल की, जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि एक बार एफएसएल प्रमाण पत्र जारी हो जाएगी तो उसे पेश किया जाएगा।
इसके बाद, आरोपी ने सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग करते हुए अदालत का रुख किया और तर्क दिया कि चूंकि चार्जशीट अधूरी थी, इसलिए आरोपी जमानत का हकदार होगा।
यह प्रस्तुत किया गया था कि केवल एफएसएल की रिपोर्ट ही यह तय कर सकती है कि क्या जब्त मादक पदार्थ एनडीपीएस एक्ट के दायरे में आता है और इसलिए, एफएसएल प्रमाणपत्र के अभाव में, जांच को पूर्ण नहीं कहा जा सकता है और इस तरह के प्रमाण पत्र के अभाव में चार्ज शीट को अधूरी चार्जशीट नहीं कहा जा सकता।
दूसरी ओर, राज्य का तर्क था कि एफएसएल 26 नवंबर, 2019 को प्राप्त हुआ था, जिसके अनुसार जब्त की गई सामग्री को मादक पदार्थ गांजा के रूप में दिखाया गया था, और उसके बाद, अभियुक्तों के खिलाफ निर्धारित अवधि के भीतर 24.12.2019 को आरोप पत्र दायर किया गया था। कानून के तहत और इस प्रकार, अभियुक्तों को डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए कोई आधार नहीं बनाया गया था।
आदेश
अदालत ने शुरू में कहा कि मामले की जांच पूरी होने और मजिस्ट्रेट के सामने अंतिम रिपोर्ट पेश करने के बाद, जांच एजेंसी को और सबूत इकट्ठा करने और सक्षम अदालत के समक्ष पेश करने से रोका नहीं गया है।
इसलिए, अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में भले ही एफएसएल रिपोर्ट अंतिम रिपोर्ट के साथ न हो, उक्त रिपोर्ट को दोषपूर्ण या अपूर्ण नहीं कहा जा सकता है।
केस टाइटलः शंकर @ शिव महेश्वर सवाई बनाम गुजरात राज्य