एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोप लगाने के लिए अभियुक्तों को पीड़ित की जाति की जानकारी होना आवश्यकः गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने के लिए, यह स्थापित किया जाना चाहिए कि आरोपी को पीड़ित की जाति की जानकारी थी।
जस्टिस बीएन करिया ने कहा,
"यदि हम अधिनियम की धारा 3(5) (ए) का उल्लेख करते हैं तो आरोपी को यह जानकारी होना चाहिए कि ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की है। यह आरोप कही भी नहीं लगा है कि शिकायतकर्ता ने कहा कि आरोपियों को यह जानकारी थी कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की है।"
पीठ ने यह टिप्पणी अधिनियम की धारा 14 के तहत दायर एक आपराधिक अपील पर की, जिसमें अग्रिम जमानत की मांग की गई थी।
पृष्ठभूमि
मौजूदा मामले में आरोपी एक और दो ने कथित रूप प्रतिवादी संख्या दो के सथ यौन संबंध बनाने की मांग की थी और जब उसने अपने पति को बताया तो अन्य आरोपियों ने कथित रूप से उनकी जाति के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने एक अन्य गवाह को लात मारी। जिसके बाद प्रतिवादी संख्या दो ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई। वर्तमान अपीलकर्ताओं के नामों का एफआईआर में उल्लेख नहीं किया गया था और जांच के दरमियान अपीलकर्ताओं के नाम शामिल किए गए।
अपीलकर्ताओं ने सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के समक्ष एक आवेदन दायर किया था, जिसमें आईपीसी की धारा 354 (ए) (1), 354-डी, 323, 506 (2) और 114 और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3 (1)(आर), (एस), 3(1)(डब्ल्यू-1-2) और 3(2)(5ए) के तहत अग्रिम जमानत की मांग की गई। जज ने जमानत खारिज कर दी। जिससे व्यथित होकर उन्होंने हाईकोर्ट में अपील दायर की।
अपीलकर्ताओं का मुख्य तर्क था कि एससी एसटी एक्ट के तहत कोई अपराध नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि अपीलकर्ताओं ने शिकायतकर्ता की जाति का अपमान या दुरुपयोग नहीं किया है। इसके अलावा, कथित घटना 19 नवंबर को हुई थी लेकिन शिकायत 21 नवंबर को दर्ज की गई थी, जिसमें अपीलकर्ताओं के खिलाफ सामान्य और अस्पष्ट आरोप लगाए गए थे। घटना पक्षकारों के बीच राजनीतिक विवाद से जुड़ी हुई थी।
प्रतिवादी-राज्य ने दलील दी कि धारा 18 के कारण अपीलकर्ताओं को अग्रिम जमानत की मांग नहीं कर सकते। जांच के दरमियान, यह पता चला कि अपीलकर्ता घटना में शामिल थे और उनके खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए थे।
जजमेंट
सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य [2018 (6) एससीसी 454] का हवाला देते हुए बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की राय दोहराई, "अधिनियम के तहत मामलों में अग्रिम जमानत देने के खिलाफ कोई पूर्ण रोक नहीं है, यदि कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाया गया है या जहां न्यायिक जांच में शिकायत प्रथम दृष्टया दुर्भावनापूर्ण पाई जाती है।"
इस पृष्ठभूमि में, बेंच ने मौजूदा अपील की जांच की। बेंच ने नोट किया कि धारा 3(2)(5)(ए), 3(जी), 3(पी), 3(आर), 3(एस)(जेड)( सी) और अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 8 के तहत अपीलकर्ताओं पर कोई आरोप नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
"अपराध का मूल तत्व कथित शिकायत में मिसिंग हैं। केवल किसी जाति का आरोप लगाते हुए बोला गया कोई विशेष शब्द मौजूदा अपीलकर्ता को अपराध में शामिल नहीं करेगा।"
यह स्वीकार करते हुए कि अपीलकर्ताओं ने प्रतिवादी संख्या 2 की जाति के खिलाफ कथित तौर पर अपमान या किसी भी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, बेंच ने कहा कि प्रथम दृष्टया , एससी/एसटी एक्ट के तहत कोई अपराध नहीं बनाया गया था।
अपीलकर्ताओं के खिलाफ कोई आरोप नहीं था क्योंकि उन्होंने प्रतिवादी संख्या 2 के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं किया था। बेंच ने समझाया कि अधिनियम की धारा 3 (5) (ए) के तहत, आरोपी को यह पता होना चाहिए कि वह व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है। हालांकि, वर्तमान मामले में, अपीलकर्ताओं को प्रतिवादी संख्या दो की जाति की जानकारी नहीं थी।
तदनुसार, अपील की अनुमति दी गई और अपीलकर्ताओं को 10,000 रुपये के बांड के साथ जमानत देने का निर्देश दिया गया। उन्हें जांच में सहयोग करने और मामले से परिचित किसी भी व्यक्ति को प्रलोभन, धमकी या वादा करने से परहेज करने का निर्देश दिया गया। उन्हें सुनवाई की पहली तारीख और अन्य मौकों पर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने का भी निर्देश दिया गया।
केस शीर्षक: राजेशभाई जेसिंहभाई दायरा बनाम गुजरात राज्य
केस नंबर: आर/सीआर ए/96/2021