अगर सत्र अदालत ने आपराधिक जांच में सहयोग करने की शर्त पर गिरफ्तारी से पहले जमानत दे दी तो आरोपी आमतौर पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की याचिका नहीं दायर कर सकते: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2022-09-14 07:35 GMT

Karnataka High Court

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक आरोपी जिसने क्षेत्राधिकार के सत्र न्यायाधीश के हाथों अग्रिम जमानत के आदेश प्राप्त किए हैं, जिसमें आरोपी को जांच प्रक्रिया में सहयोग करने की शर्त निर्धारित की गई है, वह आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकता है।

जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की एकल पीठ ने विजयकुमार और अबुबेकर द्वारा दायर दो याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा,

"याचिकाकर्ताओं ने क्षेत्राधिकार वाले सत्र न्यायाधीश के हाथों अग्रिम जमानत के आदेश प्राप्त किए हैं, जिसमें आरोपी के लिए जांच प्रक्रिया में सहयोग करने की शर्त निर्धारित की गई है। यह स्थिति होने के कारण, याचिकाकर्ता इस न्यायालय के समक्ष आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए नहीं आ सकते हैं। यह जांच एजेंसी पर है कि वह मामले की जांच करने और इसकी जांच की योग्यता के बारे में निर्णय ले।"

याचिकाकर्ताओं पर आईपीसी की धारा 504, 506, 406 और 420 सहपठित 34 के तहत अपराधों का आराप लगाया गया था। उन्होंने इस आधार पर आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दी थी कि जांच करने के लिए कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं है और आपराधिक कानून को कैजुअल तरीके से लागू नहीं किया जा सकता है।

परिणाम

पीठ ने सहमति व्यक्त की कि आपराधिक कानून को लागू करना एक गंभीर मामला है। हालांकि, इसने कहा कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करना भी एक गंभीर मामला है और इसलिए, अदालत को आपराधिक न्यायशास्त्र के इन दो प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों के बीच एक "सुनहरा संतुलन" बनाना होगा।

कोर्ट ने कहा,

"एफआईआर का एक सामान्य अवलोकन आईपीसी की कई धाराओं के तहत दंडनीय संज्ञेय अपराध को दर्शाता है....यह अदालत जांच को न्यायोचित ठहराने वाली साक्ष्य सामग्री का आंकलन नहीं कर सकती है, जो अनिवार्य रूप से ललिता कुमारी सुप्रा के तहत जांच अधिकारी के अधिकार क्षेत्र से संबंधित है।"

पीठ ने तब राय दी कि एफआईआर केवल एक साधन है जो आपराधिक कानून को गति प्रदान करता है और अदालत, धारा 482 सीआरपीसी के तहत सीमित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए, मामले में लगातार जांच नहीं कर सकती है।

कोर्ट ने कहा, "इस प्रकार के उपकरण के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, इसे जांच एजेंसी के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाह‌िए।"

हालांकि, इसने स्पष्ट किया कि पुलिस अनिश्चित काल के लिए एफआईआर को बिना कार्रवाई के नहीं रख सकती है। पीठ ने निष्कर्ष निकाला, "जांच की योग्यता के बारे में निर्णय जल्द से जल्द लिया जाना चाहिए। इस तरह के निर्णय लेने में देरी, यदि कोई हो, तो साक्ष्य सामग्री को गायब करने में मदद मिलेगी जो आपराधिक न्याय के प्रशासन को प्रभावित करेगी।"

केस टाइटल: विजयकुमार बनाम कर्नाटक राज्य

केस नंबर: CRIMINAL PETITION NO.3163 OF 2021 C/W CRIMINAL PETITION NO.4322 OF 2021

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 360

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